बाल केन्द्रित तथा प्रगतिशील शिक्षा | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 6 Study Material in Hindi
बाल-केन्द्रित शिक्षा Child-Centered Education
UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Bal Kendrit Shiksha Study Material : बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत उन्हीं शिक्षण विधियों को प्रयोग में लाया जाता है जो बालकों के सीखने की प्रक्रिया, महत्वपूर्ण कारक, लाभदायक व हानिकारक दशाएँ, रुकावटें, सीखने के वक्र तथा प्रशिक्षण इत्यादि तत्वों को सम्मिलित करती हैं तथा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित होती हैं।
बाल केन्द्रित शिक्षा का श्रेय शिक्षा मनोविज्ञान को दिया जाता है। जिसका उद्देश्य बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उसकी अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करना है।
वर्ष 1919 में प्रगतिशील शिक्षा सुधारकों ने (कोलम्बिया विश्वविद्यालय) बालकों के हितों के लिए सीखने की प्रक्रिया के केन्द्र में बालक को रखने पर बल दिया अर्थात . अधिगम प्रक्रिया में केन्द्रीय स्थान बालक को दिया जाता है।
भारत में गिजभाई बधेका (गुजरात) ने डॉ. मारिया मॉण्टेसरी के शैक्षिक विचारों एवं विधियों से प्रभावित होकर बाल शिक्षा को एक नया आयाम (Dimension) प्रदान किया। उन्होंने 1920 ई० में बाल मन्दिर नामक संस्था की स्थापना की, जिसका केन्द्र बिन्दु उन्होंने बालक को रखा।
बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत बालक की शारीरिक और मानसिक योग्यताओं के विकास के आधार पर अध्ययन किया जाता है तथा बालक के व्यवहार और व्यक्तित्व में असामान्यता के लक्षण होने पर बौद्धिक दुर्बलता, समस्यात्मक बालक रोगी बालक, अपराधी बालक इत्यादि का निदान किया जाता है।
मनोविज्ञान के ज्ञान के अभाव में शिक्षक मार पीट के द्वारा इन दोषों को दूर करने का प्रयास करता है, परन्तु बालकों को समझने वाला शिक्षक यह जानता है कि इन दोषों का आधार उनकी शारीरिक, सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं में ही कहीं न कहीं है। वैयक्तिक भिन्नता की अवधारणा ने शिक्षा और शिक्षण प्रक्रिया में व्यापक परिवर्तन किया है। इसी के कारण बाल केन्द्रित शिक्षा का प्रचलन शुरू हुआ।
बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम विद्यार्थी को शिक्षा प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु माना जाता है। बालक की रुचियों, आवश्यकता एवं योग्यताओं के आधार पर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। बाल केन्द्रित शिक्ष के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप निम्नलिखित है-
पाठ्यक्रम पूर्वज्ञान पर आधारित होना चाहिए।
है, जिसमें पलकर बालक के सामाजिक व्यक्तित्व का विकास हो सके और व जनतंत्र के योग्य नागरिक बन सके। डीवी ने शिक्षक को समाज में ईश्वर के प्रतिनिधि की संज्ञा दिया है। विद्यालय में स्वतंत्रता और समानता के मूल्य को बनाये रखने के लिए शिक्षक को अपने को बालकों से बड़ा नहीं समझना चाहिए। शिक्षकों को आज्ञाओं और उपदेशों के द्वारा अपने विचारों और प्रवृत्तियों का भार बालकों पर देने का प्रयास नहीं करना चाहिए। बालक को प्रत्यक्ष रूप से उपदेश न देकर उसे सामाजिक परिवेश दिया जाना चाहिए। और उसके सामने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किये जाने चाहिए कि उसमें आत्मानुशासन उत्पन्न हो और वह सही अर्थों में सामाजिक प्राणी बने । आधुनिक शिक्षा में वैज्ञानिक सामाजिक प्रवृत्ति प्रगतिशील शिक्षा का योगदान है प्रगतिशील शिक्षा के सिद्धान्तों के अनुरूप ही आजकल शिक्षा को अनिवार्य और सार्वभौमिक बनाने पर जोर दिया जाता है। शिक्षा का लक्ष्य व्यक्तित्व का विकास है और प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व का विकास करने के लिए शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
परीक्षोपयोगी तथ्य बाल केन्द्रित शिक्षा का उद्देश्य बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उसकी अधिगम संबंधी कठिनाइयों को दूर करना है। बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत बालक की शारीरिक और मानसिक योग्यताओं के विकास के आधार पर अध्ययन किया जाता है। > बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम में बालक की रुचियों, आवश्यकताओं एवं योग्यताओं के
आधार पर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य बालकों में शिक्षा के माध्यम से जनतंत्रीय मूल्यों की स्थापना करना है। जॉन डीवी का प्रगतिशील शिक्षा के विकास में सराहनीय योगदान है। इन्होंने प्रगतिशील शिक्षा में दो तत्वों को विशेष महत्वपूर्ण माना है-मचि और प्रयास।
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