UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Uplabdhi ka Aaklan Study Material
UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Uplabdhi ka Aaklan Study Material : आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET & CTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books Chapter 15 उपलब्धि का आकलन एवं प्रश्नों के निर्माण की तकनीक Study Material in Hindi साथ में PDF Free download करने जा रहे है जिसका लिंक आप को सबसे निचे टेबल में दिया हुआ है |
उपलब्धि का आकलन एवं प्रश्नों के निर्माण की तकनीक | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 15 Study Material in Hindi
प्रश्नों का निर्माण
के अनुसार, “अच्छी प्रश्न कला की तकनीक को जानना एक नये यवा ‘शिक्षक का सर्वाधिक आवश्यक उद्देश्य होना चाहिए।” अध्ययन अध्यापन को सफल बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अतिआवश्यक एवं आदिकाल से चली आ रही शिक्षण कलाओं में प्रश्न निर्माण, प्रश्न पूछना और प्रश्नों के द्वारा विषय को आगे बढ़ाना तथा फिर मूल्यांकन करना है।
प्रश्नों के आदान-प्रदान से ही कक्षा को जीवन्त बनाया जा सकता है।
प्रश्न के द्वारा शिक्षक और छात्र दोनों के बीच संवाद की ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पूरी कक्षा को क्रियाशील बनाया जा सकता है तथा चिन्तन की प्रक्रिया और दिशा शुरू की जा सकती है। प्रश्नों के उद्देश्य Objective of Questions > क्रमिक रूप से प्रश्नों के द्वारा बालकों को विषय को गहनता से जानने में मदद मिलेगी। > नये विचारों, दृष्टिकोणों की खोज को आगे बढ़ाने में मदद करना ।
> किसी भी आदर्श एवं उच्च स्तरीय वर्णन को समझने की कला का विकास करना। किसी भी जानकारी को समझने में आने वाली कठिनाई को जानना तथा उसे दूर करना। कभी-कभी वक्तव्यों के रूप में प्रश्न पूछ कर किसी मुद्दे पर दबाव बनाना, जिससे महत्वपूर्ण तथ्य छूट न जाए। – पहले प्राप्त अध्ययन का पुनरावलोकन करना। – किसी भी आदर्श एवं उच्च स्तरीय वर्णन को समझने की कला का विकास।
प्रश्नों के प्रकार Types of Questions
प्रश्नों के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न
A. प्रत्यास्मरण प्रकार के प्रश्न
B. प्रत्याभिज्ञान प्रकार के प्रश्न
सामान्य प्रत्यास्मरण रिक्त स्थान सत्य/असत्य मिलान बहावक
। सत्य/असत्य मिलान बहुविकल्प वर्गीकरण प्रश्न
पूर्ति प्रश्न प्रश्न प्रश्न प्रश्न प्रश्न
A. प्रत्यास्मरण प्रकार के प्रश्न निम्नलिखित है
(a) सामान्य प्रत्यास्मरण प्रश्न (Simple Recall Type Items) इस प्रकार के प्रश्नों में सीधे सीधे प्रश्न पूछे जाते हैं और उनका संक्षिप्त तथा विशिष्ट उत्तर देना होता है। इसमें विद्यार्थी को केवल एक शब्द में या अंक में अपना उत्तर लिखना होता है। सामान्य प्रत्यास्मरण प्रश्नों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
★ तुलसीदास किस काल के कवि थे? * ओडिशा की राजधानी कहाँ है ? (b) रिक्त स्थान की पूर्ति प्रश्न (Completion Type Items) इस प्रकार के प्रश्नों को अपूर्ण कथन या वाक्यों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विद्यार्थी अपने ज्ञान के आधार पर स्मरण करके इस शब्द या अंक को लिखकर वाक्य की पूर्ति करता है। रिक्त स्थान पूर्ति के प्रश्नों के उदाहरण निम्नलिखित हैं
★ तुलसीदास काल के कवि थे।
* ओडिशा की राजधानी ………… है।
B. प्रत्याभिज्ञान प्रकार के प्रश्न (Recognition Type Items): इस प्रकार के अनेक संभावित उत्तर दिये जाते हैं और विद्यार्थी को उनमें से सही उत्तर की पहचान करनी होती है अर्थात विद्यार्थी को अपने तर्क एवं बोध की सहायता से सही उत्तर का चयन करना होता है। इसलिए इन्हें प्रत्याभिज्ञान प्रश्न कहते हैं। इन प्रश्नों को चयन प्रश्न भी कहते हैं। प्रत्याभिज्ञान प्रश्न चार प्रकार के होते हैं
(a) सत्य/असत्य प्रश्न (Trues/False Type Items): इस प्रकार के प्रश्नों में कुछ कथन दे दिये जाते हैं। परीक्षार्थी को इन कथनों के आगे सही और गलत में चिह्न लगाना होता है। कभी-कभी सही के लिए ‘T’ तथा गलत के लिए ‘F’ का प्रयोग करते हैं। जैसे★ कोशिका प्राणी के शरीर की इकाई है।
-सत्य/असत्य (b) मिलान प्रकार के प्रश्न (Matching Type Items): इस प्रकार के प्रश्नों में, एक प्रश्न को दो स्तम्भों में लिखा जाता है। प्रश्न के एक भाग का सम्बन्ध दूसरे स्तम्भ में लिखे भाग से होता है। दोनों स्तम्भों में प्रश्न के अंश का क्रम एक नहीं होता है। विद्यार्थी को एक स्तम्भ में लिखे प्रश्न के वाक्यांश के लिए दूसरे स्तम्भ में से शेष वाक्यांश ढूँढ़ना होता है।
(बहुविकल्प प्रश्न (Multiple Choice Items): इसमें प्रश्न को एक कथन के रूप में दे दिया जाता है, जिसके साथ उसके कई उत्तर लिख दिये जाते हैं। इनमें से केवल एक ही उत्तर सही होता है, अन्य इससे मिलते-जुलते होते हैं, परन्तु ये सही नहीं होते हैं। छात्र को अपने ज्ञान के आधार पर सही उत्तर छाँटना होता है।
प्रथम स्तम्भ
द्वितीय स्तम्भ 1. न्यूटन
A. तैरना 2. आर्कमीडिज
B. गुरुत्वाकर्षण 3. डार्विन
C. डी. एन. ए. 4. खुराना
D. विकास
(d) वर्गीकरण प्रकार के प्रश्न (Classification Type Items): इस प्रकार के प्रश्नों में विद्यार्थी के सम्मुख जी के सम्मुख कई शब्दों का समूह प्रस्तुत किया जाता है, जिनमें से एक को सभी शब्द आपस में मिलते-जुलते होते हैं या वे किसी एक क्रिया से सम्बन्धित या परे समूह में एक शब्द असंगत होता है। उस असंगत शब्द को ही विद्यार्थी को ढूँढ़ना होता होता है। यह कार्य विद्यार्थी अपने ज्ञान एवं अवबोध की सहायता से करता के लिए निम्नलिखित शब्द-समूहों में से असंगत शब्द को अलग करना।
हैदराबाद, इन्दौर, लखनऊ, चेन्नई
* तुलसी, जायसी, महादेवी वर्मा, प्रेमचन्द
निबन्धात्मक प्रश्न निबन्धात्मक प्रश्न का तात्पर्य ऐसे लिखित उत्तर से है जो एक दो पष्ठों में हो। निबन्ध प्रकार के प्रश्नों का उद्देश्य यह है कि बालकों का भाषाओं में लिखने का परीक्षण किया जाय। इसे निबन्ध परीक्षा कहा जाता है। इनके द्वारा विभिन्न योग्यताओं का परीक्षण किया जाता है, जो इस प्रकार है-
★ एकत्रित की गई सूचना का प्रयोग करके उसके प्रमाण का जायजा लेना।
★ अर्जित ज्ञान से मिलते-जुलते तथ्य का चयन करना।
★ समस्या और मुद्दे के प्रति आन्तरिक अभिवृत्ति का प्रदर्शन करना । ज्ञान के विभिन्न पहलुओं के बीच उनकी पहचान करना और उनके आपस का सम्बन्ध निर्धारित करना ।
★ अनुमान के आधार पर सूचनाओं को व्यवस्थित करना, उनका विश्लेषण करना, तथ्यों की व्याख्या करना और अन्य प्रकार की सूचनाएँ एकत्र करना ।
★ अपने विचारों को तथ्यों, आँकड़ों के आधार पर बनाये रखना। निबन्धात्मक प्रकार के प्रश्नों का आरम्भ प्रायः परिभाषा, व्याख्या तथा तुलनात्मक विश्लेषण से होता है।
निबन्ध प्रकार के प्रश्न अच्छे होते हैं जब उनका समूह छोटा व समय-सीमा के अन्तर्गत परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है। यह लिखित अभिव्यक्ति के लिए भी उचित है। उदाहरण के लिए : जल प्रदषण का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? चचा कीजिए। (कारण या प्रभाव वाले प्रश्न)
★ चाणक्य की नीति क्या थी?
साक्षप्त उत्तर वाले प्रश्न : संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्नों के लिए बिल्कल सही उत्तर का आवश्यकता होती है। इनके कछ विशिष्ट लक्षण इस प्रकार है:
ऐसे प्रश्न में अपेक्षित उत्तर के बारे में दिशा-निर्देश समावेशित रहते है।
प्रायः ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने में 1 से 5 मिनट का समय लगता है। इन्हें दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। आर पूर्ति करना : इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए छात्र को सही-सही पूरा करने के लिए एक या दो शब्द जोड़ने होते हैं। लुप्त शब्द पूर्ति किये जाने वाले कथन में ही छुपे होते है उन्हें सामान्यतया निवश प्रकार का कथन कहा जाता है।
इनका प्रयोग अपूर्ण मानचित्रों, सूत्र गणना, रेखाचित्रों और इसी तरह के कार्यों का आधारित अत्यन्त उपयोगी प्रश्न तैयार करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए:
sin (A + B) = sinA.cosB + … sinB (a-b) = a + b2-… ab (b)
विस्तृत उत्तर वाले प्रश्न (Descriptive Question Answer): विस्तृत उत्ता वाले वे प्रश्न होते हैं जिनमें बालकों द्वारा संक्षिप्त विवरण लिखना, परिभाषा या सत्र वाक्य का अनुवाद करना, गणना करना इत्यादि लिखने के कार्य शामिल रहते हैं।
सम्भवतः स्कूलों में प्रयोग में लाये जानेवाले प्रश्नों की यह सबसे सामान्य प्रकार है और परीक्षा-बोर्डों द्वारा भी इसका प्रायः प्रयोग किया जाता है। भ्रामक रूप से इनको सेट करना सरल है और गति व मिलान की दृष्टि से समंकन (Data) कार्य सामान्यतः कठिन है।
उदाहारण
★ जल-प्रदूषण क्या है ? जल-प्रदूषण को प्रभावित करनेवाले कारक की व्याख्या करें।
उपलब्धि का मूल्यांकन
> उपलब्धि का मूल्यांकन करने के लिए कई विधियों को अपनाया जाता है, किन्तु ग्रेडिंग पद्धति का प्रयोग इस कार्य हेतु बेहतर होता है। विभिन्न क्षेत्रों में विद्यार्थियों की उपलब्धियों की रिपोर्ट तैयार करते समय समग्र ज्ञान में अप्रत्यक्ष ग्रेडिंग के पाँच बिन्दुओं का प्रयोग किया जा सकता है। इन ग्रेड में अंकों का वितरण इस प्रकार किया जाना चाहिए।
सर्वोत्कृष्ठ
90% – 100% उत्कृष्ठ
75% – 89% बहुत अच्छा 56% – 74% अच्छा
35% – 55% औसत
35% से कम ~ बालक का ग्रेड उपलब्धि कार्ड में दर्शाया जाना चाहिए, जो प्रतिशतता की उपरोक्त
श्रेणी में व्यवहार के सूचक के अनुसार प्रतिशतता पर आधारित हो। बालक की उपलब्धि का मूल्यांकन सतत रूप से होते रहना चाहिए। सतत एक व्यापक मूल्यांकन, सतत निदान, उपचार, प्रोत्साहन और सराहना करके विद्यार्थी की उपलब्धियों में सुधार लाने के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं। – इसके लिए प्रधानाचार्य, अध्यापक और माता पिता को अभिमुखी और ठोस प्रयास करने होंगे ताकि बालक के व्यक्तित्व का चहुँमुखी विकास हो सके। संलग्न रेटिंग मान से विभिन्न ग्रेडों के रूप में विधार्थियों को उचित रूप से रखने में अध्यापक को मदद मिलती है।
निर्देशन (Guidance): निर्देशन एक प्रकार की व्यक्तिगत सहायता है जो एक व्यक्ति सक्ति को जीवन-लक्ष्यों को विकसित करने में, समायोजन करने में तथा अपने नि लक्ष्य की प्राप्ति की राह में आनेवाली समस्याओं का समाधान करने में दी जाती है।
निर्देशन के प्रकार
शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से निर्देशन को तीन भागों में बाँटा है तिगत निर्देशन (Personal Guidance): व्यक्तिगत निर्देशन वैसे निर्देशन को बनाता है जिसमें व्यक्ति को व्यक्तिगत समस्याएँ, जैसे—स्वास्थ्य-संबंधी समस्याएँ, गात्मक समायोजन (EmotionalAdjustment)संबंधी समस्याएँ, सामाजिक समायोजन संबंधी समस्याएँ, चरित्र-निर्माण संबंधी समस्याएँ, विश्राम एवं समय के उपयोग संबंधी समस्याओं के समाधान करने में मदद मिलती है। यहाँ निर्देशन देनेवाला व्यक्ति विशेष सझाव देकर एक ऐसा माहौल व्यक्ति के सामने उपस्थित करता है जहाँ उसे इन व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान करने में विशेष मदद मिल पाती है।
2. शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance): स्कूल या कॉलेज में विभिन्न विषयों की शिक्षा के संबंध में छात्रों को जो निर्देशन दिया जाता है, उसे ही शैक्षिक निर्देशन की संज्ञा दी जाती है। इसमें शिक्षक विशेष निर्देष (Instruction), परीक्षण (Testing) एवं परामर्श के सहारे छात्रों को शैक्षिक कार्य करने में मदद करते हैं।
3. व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance): व्यावसायिक निर्देशन वह है जहाँ व्यक्ति को किसी खास या उपयुक्त व्यवसाय के चयन में मदद की जाती है। इसमें कई तरह के परीक्षण जैसे बुद्धि परीक्षण, व्यावसायिक परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण, उपलब्धि परीक्षण इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।
शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Educational Guidance)
★ पाठ्यक्रम के चयन में मदद करना।
* छात्रों को अपनी अंतःशक्तियों को समझने में मदद करना ।
* छात्रों में अध्ययन संबंधी अच्छी आदतों के विकास में मदद करना।
– अतःशक्तियों को उचित ढंग से विकसित करने के ख्याल से आत्म-निर्देशित प्रयास करने में छात्रों की मदद करना।
* व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति में मदद करना।
* सामाजिक कल्याण में सहायता करना।
* स्वस्थ समायोजन करने में मदद करना।
* उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग करने में मदद करना।
शक्षिक निर्देशन की प्रविधियाँ (Techniques दशन की कई प्रविधियाँ हैं जिन्हें मुख्य रूप से दाम (a)व्यक्तिगत निर्देशन की प्रविधि (Techniqu । प्रावधियाँ (Techniques of Educational Guidance): शैक्षिक धया है जिन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा गया है नका प्रविधि (Techniqueof Individual Guidance): वैयक्तिक प्रावधि एक ऐसी प्रविधि है जिसमे निर्देशक छात्रों से व्यक्तिगत स्तर पर
संपर्क स्थापित करता है तथा उनकी विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करके परामर्श है। है। इस प्रविधि में प्रमुख है-
साक्षात्कार (Interview)
बुद्धि परीक्षण (Intelligence Test)
उपलब्धि परीक्षण (Achievement Test)
प्रश्नावली (Questionnaire)
जीवनी-आँकड़ों का रेकार्ड (Record of Bio-data)
(b) सामूहिक निर्देशन की प्रविधियाँ (Technique of Group Guidance) : सामहिक निर्देशन की प्रविधि से तात्पर्य वैसी क्रियाओं से होता है जिनके सहारे शैक्षिक निर्देशन देनेवाला व्यक्ति समान समस्याओं वाले छात्रों का एक छोटा समूह तैयार कर लेता है और उनको यथासंभव एक साथ परामर्श देकर उन्हें रास्ते पर लाने की कोशिश करता है। इन प्रविधि में प्रमुख हैं–
साक्षात्कार (Interview) सामान्य अनुकूलन वार्ता (General Orientation Talk) मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Tests) प्रश्नावली (Questionnaire) अनुवर्ती क्रियाएँ (Follow-up Actions) व्यावसायिक निर्देशन की प्रविधियाँ Techniques of Vocational Guidance * मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Tests) * प्रश्नावली (Questionnaire) ★ साक्षात्कार (Interview)
* सामान्य अनुकूलन वार्ता (Genereal Orientation Talks) ★ जीवनी-आँकड़ों का संग्रहण परामर्शन Counselling > परामर्शन एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें अनेक उपागमों (Approaches) एव प्रविधियों का उपयोग करके व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास तथा उसके समस्यामा का समाधान करके उसके जीवन को उद्देश्यपूर्ण एवं संतोषप्रदायी बनाने का यथासंभव प्रयास किया जाता है।
पेरेज (Perez) के अनुसार, “परामर्शन एक अंतःक्रियात्मक प्रक्रिया होती है जा परामर्शी जिसे मदद की आवश्यकता होती है तथा परामर्शदाता जो प्रशिक्षित होता है एवं वह मदद करने के लिए प्रशिक्षित भी होता है, को एक साथ मिलाता है।” – परामर्शन परामर्शी (Client) तथा परामर्शदाता के बीच एक अंतःक्रियात्मक प्रक्रिया होता है।
परामर्शन एक सतत प्रक्रिया होता है जिसमें कई आनुक्रमिक गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं। सामर्शन की प्रक्रिया में परामर्शदाता अपने प्रशिक्षण, शिक्षा तथा अनुभव के आधार पर परामर्शी को सहायता प्रदान करता है।
न परामर्शी के लिए एक अधिगम की परिस्थिति उत्पन्न करता है जिनके द्वारा व्यक्ति के संज्ञान (Cognition), अनुभूति, अनुक्रिया एवं अंतर्वैयक्तिक संबंधों में ऐच्छिक परिवर्तन उत्पन्न करने में मदद की जाती है। परामर्शन जिसका स्वरूपविकासात्मक (Developmental), विरोधात्मक (Preventive), उपचारात्मक (Therapeutic) होता है, परामर्शी के हित की दिशा में हमेशा उन्मुख होता है। परामर्शदाता-परामर्शी संबंध आकस्मिक तथा व्यवसाय-समान न होकर एक उत्तम बोध, अनुक्रियाशीलता तथा हार्दिकता पर आधारित होता है। परामर्श के नवीनतम ट्रेड Recent Trends of Counselling
परामर्श का संबंध जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी समस्याओं से होता है। इसके अनेक प्रयोजन भी होते हैं। इन्हीं प्रयोजनों, क्षेत्रों एवं लक्ष्यों की भिन्नता के आधार पर परामर्श के कई नवीन ट्रेंड विकसित हुए हैं, जो इस प्रकार है-
1.जेरेन्टोलॉजिकल काउंसिलिंग (Generontological Counselling): यह उन वृद्ध व्यक्तियों के पेशागत एवं व्यक्तिगत निर्देशन से संबंधित होता है जिसमें सेवानिवृत्ति की समस्या (Retirement Problems), बौद्धिक एवं संवेगात्मक विकृति पाये जाते हैं। ऐसे लोगों के मन में इच्छा होती है कि परिवार के सदस्य उन्हें पहले जैसा मान-सम्मान करें लेकिन अत्याधुनिक जीवन-शैली जी रहे उनके परिजनों से प्रायः ऐसा संभव नहीं हो पाता है और वृद्ध व्यक्ति अपने ही घर में बोझिल एवं उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। ____ 2. वैवाहिक परामर्श (Marriage Counselling): वैवाहिक परामर्श के अंतर्गत वयुवक एवं नवयुवतियों को उपयुक्त जीवन-साथी के चयन के लिए सुझाव दिया जाता । इसक अतर्गत चिकत्सीय, आनवंशिक, मनोवैज्ञानिक, धार्मिक, सामाजिक, कानूनी
घरलू अर्थशास्त्र के मद्दे शामिल हैं। इसके जरिए पारिवारिक बजट बनाने से लेकर सा आनुवंशिक रोग के संचरण वैवाहिक जोडे के चयन से लेकर पारिवारिक जीवन क अंतर्वैयक्तिक द्वंद्व को सुलझाया जाता है। 3.पारिवारिक परामर्श (Family Counselling) इनक परामर्श (Family Counselling) इनके अंतर्गत पारिवारिक अत्याचार नवविवाहिता एवं उसके पति को अपने परिवार में सौहार्द्रपूर्ण समायोजन की से पीड़ित नवविवाहिता एव सलाह दी जाती है।
4. आनुवंशिक परामर्श (Genetic Counse परामर्श देने की एक नवीन त गर्भपात कराने की सलाह देते ह आनुवंशिक रोगयक्त पैदा हो सकता है।
मिश (Genetic Counselling): जेनेटिक सलाह जीन चिकित्सीय ” एक नवीन तकनीक है, जिसमें जेनेटिक सलाहकार उन युगलों को का सलाह देते हैं जिन्हें यह शंका होती है कि उनके गर्भ में पल रहा बच्चा
पुनर्वास परामर्श (Rehabilitation Counselling) इस काउंसेलिंग के अंतर्गत परामर्श प्रार्थी (Counsellee) को पुर्नवास संबंधी परामर्श दी जाती है।
6. कैरियर परामर्श (Career Counselling) कैरियर काउंसेलिंग, कांउसेलिंग की। मनोवैज्ञानिक विधि है जिसके तहत काउंसेलर कैरियर संबंधी समस्याग्रस्त व्यक्ति के स्वयं की भावना को जगाकर उसको इस लायक बना देता है ताकि अपने समस्या का समाधान वह खुद करे । कैरियर काउंसेलिंग लक्ष्य निर्धारण, विषय के चयन में, रुचियों के मुताबिक । कैरियर चयन में, अपनी खूबियों एवं खामियों को जानने में मददगार साबित होता है।
परीक्षोपयोगी तथ्य
> प्रश्न शिक्षक और छात्र दोनों के बीच संवाद की ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पूरी कक्षा को क्रियाशील बनाया जा सकता है तथा चिन्तन की प्रक्रिया और दिशा शुरू की जा सकती है।
> प्रश्न मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं—
वस्तुनिष्ठ प्रश्न, निबंधात्मक प्रश्न एवं संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न । परामर्श (Counselling) का उद्देश्य है बच्चों को समझना, बच्चों में कमी के कारणों का पता लगाना तथा बच्चों को समायोजन में सहायता प्रदान करना।
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