UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Samajikaran ki Prakriya Study Material

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समाजीकरण की प्रक्रियाएँ (UPTET Bal Viks Evam Shiksha Shastra Chapter 4 Study Material in Hindi)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जन्म के समय शिशु न सामाजिक (Social) होता है और न ही असामाजिक ( Anti Social), बल्कि वह समाज के प्रति उदासीन होता है। आयु बढ़ने के साथ साथ वह सामाजिक गुणों से सुशोभित होता जाता है और कुछ ही वर्षों बाद वह सामाजिक प्राणी कहलाने लगता है।

बालक सामाजिक गुणों को सामाजिक विकास की अवस्थाओं के अनुसार ग्रहण करता है। प्रारम्भ में बालक में सामाजिक विकास तीव्र गति से होता है, फिर धीमी गति से होता है। समय और परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन होता रहता है और सामाजिक विकास एक निश्चित दिशा की ओर बढ़ता जाता है। समाजीकरण की प्रक्रिया (Socialization Processes) निरन्तर चलती रहती है।

चाइल्ड (Child 1954) के अनुसार — ‘‘सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति में उसके समूह मानकों के अनुसार वास्तविक व्यवहार का विकास होता

सारे व टेलफोर्ड (Sare & Taleford) के अनुसार, ‘समाजीकरण की प्रक्रिया शिशु के दूसरे व्यक्तियों के साथ प्रथम सम्पर्क से आरम्भ होती है, और आजीवन चलती रहती है।

हरलॉक (Hurlock) के अनुसार, “सामाजिक विकास का अर्थ उस योग्यता को अर्जित करना है जिसके द्वारा सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार किया है जा सके।” “कोई भी बालक सामाजिक पैदा नहीं होता। वह दूसरों के होते हुए भी अकेला होता है। वह समाज में दूसरों के सम्पर्क में आकर समायोजन की प्रक्रिया सीखता व है। इसलिए समाजीकरण की प्रक्रिया बालक के सामाजिक विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है।”

रॉस (Ross) के अनुसार, “सहयोग करनेवालों में ‘हम’ की भावना का विकास । और उनके साथ काम करने की क्षमता का विकास एवं संकल्प समाजीकरण | कहलाता है।”

सोरेनसन (Sorenson) के अनुसार, “सामाजिक अभिवृद्धि और विकास का अर्थ अपनी और दूसरों की उन्नति के लिए योग्यता की वृद्धि।’ समाजीकरण की प्रक्रिया में तीन प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं –

  1. समाज द्वारा मान्य व्यवहार का विकास करना। प्रत्येक समह के व्यवहार संबंध कुछ मानक (Norms) होते हैं। बच्चे यदि इन्ही व्यवहार मानकों का अधिगम करते है तो उनका व्यवहार समाज द्वारा मान्य होता है।
  2. 2. समाज द्वारा मान्य व्यवहारों के अनुसार क्रियाएँ करना। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों, अध्यापकों, माता और पिता आदि सबके लिए कुछ निश्चित कार्य होते हैं, इनको  न्हीं के अनुसार व्यवहार करना होता है।
  3. 3. सामाजिक अभिवृत्तियों का विकास करना। इन अभिवृत्तियों के विकास के कारण ही बालक सामाजिक कार्यक्रमों, समाज के अन्य व्यक्तियों को पसन्द करता है।

 जब किसी व्यक्ति में उपर्युक्त तीन बातें पायी जाती हैं तो वह व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में सफलता प्राप्त करता है ।

सामाजिक विकास की विशेषताएँ Characteristics of Social Development

सामाजिक विकास की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. सामाजिक प्रतिक्रियाएँ ही सामाजिक विकास का प्रारम्भिक चरण है।

2. बालक खेल के माध्यम से समूह में अपनी सामाजिक प्रतिक्रियाएँ करता है।

3. सामाजिक प्रतिक्रियाओं में सामाजिक सदस्यों के साथ अपने विचारों का आदान प्रदान करता है।

अपना सहयोग देकर तथा दूसरों से सहयोग लेकर कोई भी व्यक्ति बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है।

5. समाज की सीमा में प्रवेश करके प्रतिस्पर्धा का विकास बालकों में होता है।

6. सामाजिक विकास के साथ बालक में सहयोग और सहानुभूति जैसे सामाजिक व्यवहार विकसित होते हैं।

7. कभी कभी निषेधात्मक (Negative) अवस्था में बालक तर्क भी करने लगते हैं; ऐसे करके बालक अपने सम्मान की रक्षा करते है।

8. बालक समाज व समूहों के आदर्शों, रीति रिवाजों, परम्पराओं, लोकाचार तथा धार्मिक रीति रिवाजों को सीखता है । सामाजिक अन्तःक्रियाएँ करना भी सामाजिक विकास के साथ-साथ सीखता है।

9. सामाजिक विकास द्वारा ही बालक में अहं (Ego) भाव विकसित होता है।

विभिन्न अवस्थाओं में समाजीकरण की प्रक्रिया (Socialization Process in Different Stages) : बालक में जन्म के बाद उसकी विभिन्न अवस्थाओं में सामाजिक विकास भिन्न-भिन्न ढंग से होता है। जो इस प्रकार है1.

शैशवावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in Infancy) : हरलाक (THurlock) के अनुसार सामाजिक विकास निम्न क्रम में होता है

महीना मानव और अन्य ध्वनियों में अंतर समझना।

2 महीना मानव ध्वनि को पहचानना और व्यक्तियों का मुस्कान के साथ स्वागत करना।

3 महीना अपनी माता को पहचानना और उससे दूर होने पर दुःखी होना।

4 महीना व्यक्तियों के चेहरों को पहचानना ।

.5 महीना प्यार या क्रोध की आवाज समझना ।

6 और 7 महीना परिचितों का मकान के साथ स्वागत करना ।

8 से 9 महीना अपनी ही परछायी के साथ खेलना तथा उसे चूमना ।

24 महीना बड़ों के विभिन्न कार्यों में हाथ बँटाने का प्रयास करना ।

इस काल में बालक की सामाजिक विकास संबंधी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

★ सामाजिक खेल का विकास ★ माता पिता पर आथित

★ स्पर्धा की भावना ★ सामाजिक स्वीकृति

★ स्वयं केन्द्रित बालक ★ मैत्री और सहयोग

2. बाल्यावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in Childhood) : इस आयु वर्ग में बालक के सामाजिक विकास के कई महत्वपूर्ण पहलू देखने को मिलते हैं । बालक में कई सामाजिक परिवर्तन आ जाते हैं। ये इस प्रकार हैं-

 सहयोग की भावना का विकास ★ दूसरों से स्नेह की अपेक्षा

★ छोटे समूहों में खेलना ★ आदतों का निर्माण

★ सामाजिक सूझ का विकास ★ प्रिय कार्यों में रुचि

★ मित्रों का चुनाव

हरलॉक (Hurlock) के अनुसार, बाल्यावस्था में बालक का सामाजिक विकास निम्न क्रम में होता है-

लगभग 6 वर्ष की आयु में बालक प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करता है। वह एक नये वातावरण में अनुकूलन करना, सामाजिक कार्यों में भाग लेना और नये मित्र बनाना सीखता है।

अनुकूलन करने के उपरान्त बालक के व्यवहार में उन्नति और परिवर्तन आरम्भ हो जाता है। फलस्वरूप उसमें स्वतन्त्रता, सहायता और उत्तरदायित्व के गुणो का विकास होने लगता है।

विद्यालय में बालक किसी-न-किसी समूह का सदस्य हो जाता है। यह समूह उसके वस्त्रों के रूपों, खेल के प्रकारों और उचित-अनुचित के आदर्शों का निर्धारित करती है। इस प्रकार, बालक के सामाजिक विकास को एक नवीन दिशा प्राप्त होती है।

★ टोली या समूह में बालक में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार, ”इस अवस्था में बालक अपने शिक्षक का सम्मान तो करता है, पर उसका परिहास करने की अपनी प्रवत्ति का दमन नहीं कर पाता है।”

3. किशोरावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in Adolescence) को एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार-‘जब बालक 13 या 14 वर्ष की आयु में प्रवेश करता है तब उसके प्रति दूसरों के और दूसरों के प्रति उसके कुछ दृष्टिकोण से उसके अनुभवों में एक सामाजिक संबंधों में परिवर्तन होने लगता है।” इस परिवर्तन के कारण उसके सामाजिक विकास का स्वरूप निम्नांकित होता है

1. बालकों और बालिकाओं में एक दूसरे के प्रति बहुत आकर्षण उत्पन्न होता है। अतः वे अपनी सर्वोत्तम वेश भूषा और बनाव शृंगार में अपने को एक दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

बालक और बालिकाएँ दोनों अपने अपने समूहों का निर्माण करते हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है—मनोरंजन जैसे पर्यटन, पिकनिक, नृत्य, संगीत इत्यादि ।

कुछ बालक और बालिकाएँ किसी भी समूह के सदस्य नहीं बनते हैं वे उनसे अलग रहकर अपने या विभिन्न लिंग के व्यक्ति से घनिष्ठता स्थापित कर लेते हैं और उसी के साथ अपना समय व्यतीत करते हैं।

4. बालकों में अपने समूह के प्रति अत्यधिक भक्ति होती है। वे उसके द्वारा स्वीकृत वेश-भूषा, आचार-विचार, व्यवहार आदि को अपना आदर्श बनाते हैं।

5. समूह की सदस्यता के कारण उनमें नेतृत्व, उत्साह, सहानुभूति, सद्भावना आदि । सामाजिक गुणों का विकास होता है।

इस अवस्था में बालकों और बालिकाओं का अपने माता-पिता से किसी-न-किसी बात पर संघर्ष या मतभेद हो जाता है।

किशोर बालक अपने भावी व्यवसाय का चुनाव करने के लिए सदैव चिन्तित रहता है। इस कार्य में उसकी सफलता या असफलता उसके सामाजिक विकास  को निश्चित रूप से प्रभावित करती है।

किशोर बालक और बालिकाएँ सदैव किसी-न-किसी चिन्ता या समस्या में उलझे रहते हैं; जैसे—धन, प्रेम, विवाह, कक्षा में प्रगति, पारिवारिक जीवन इत्यादि । ये समस्याएँ उनके सामाजिक विकास की गति को तीव्र या मन्द, उचित या अनुचित दिशा प्रदान करती है।

विभिन्न अवस्थाओं में कुछ विशिष्ट सामाजिक क्रियाएँ Some Special Social Behaviours of Different Stages

  1. बचपनावस्था की विशिष्ट सामाजिक व्यवहार

व्यवहार क्रियाएँ

ध्यानाकर्षण (Attention Seeking) 1 वर्ष 6 महीने

अनुकरण (Imitation) 1 वर्ष

पराश्रितता (Dependency) 0-2 वर्ष

लज्जाशीलता (Shyness) 1-2 वर्ष

ईर्ष्या (Rivalry)  1 वर्ष

सहयोग (Co-operation) 1-1 वर्ष 6 महीने

स्व प्रेमी (Self-Centered) 1 वर्ष

निषेधात्मक प्रवृत्ति (Negativism) 1 वर्ष वर्ष 6 महीने

2. पूर्व-बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख सामाजिक व्यवहार

खेल (Play) 2-5 वर्ष

अनुकरण (Imitation)  3.-4 वर्ष

निषेधात्मक (Negativism) 2-5 वर्ष

झगड़ा तथा मार-पीट (Quarrel and Aggression)

सहयोग और सहानुभूति (Co-operation and Sympathy)

चिढ़ाना व तंग करना (Teasing)

आक्रामकता (Aggression)

इर्ष्या (Rivalry)

प्रतियोगिता (Competition)

मित्रता (Friendship)

3. उत्तर-बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

सामुदायिकता (Gregariousness)

सहयोग (Co-operation)

समूह भक्ति (Group Loyalty)

सहानुभूति (Sympathy)

मित्रता (Friendship)

खेल (Play)

यौन-विरोध (Sex Antagonism)

सहिष्णुता (Tolerance)

नेतृत्व (Leadership) प्रतियोगिता एवं स्पर्धा (Competition and Rivalry)

  • किशोरावस्था में सामाजिक विकास

समूह का सदस्य होना  स्पर्धा और प्रतियोगिता

सामाजिक संबंधों की स्थापना नेतृत्व (Leadership)

सामाजिक रुचियों का विकास मित्रता (Friendship)

सामाजिक चेतना का विकास  सामाजिक परिपक्वता (Social Maturity)

पारिवारिक संबंधों में सुधार

सामाजिक विकास की कसौटियाँ Criteria of Social Development

बालक के सामाजिक विकास को विभिन्न कसौटियों के आधार पर मापा जा सकता है-

1.सामाजिक समायोजन (SocialAdjustment): जिन बालकों का समायोजन जितना अच्छा होता है उन बालकों का सामाजिक विकास भी उतना ही अच्छा होता है। विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ बालक का समायोजन जितना ही अच्छक होगा उसका सामाजिक विकास भी उतना ही अच्छा होगा।

2. सामाजिक अनुरूपता (Social Conformity): इसका अर्थ है समाज के मानका आदर्शों और मूल्यों के अनुरूप व्यवहार करना । बालकों के व्यवहार में सामाजिक अनुरूपता जितनी ही अधिक होती है उन बालकों का सामाजिक विकास उतना ही अच्छा होता है। सामाजिक विकास और सामाजिक अनुरूपता में धनात्मक सह संबंध है।

3. सामाजिक परिपक्वता (Social Maturity) समाज के मूल्यों, नियमों, अभिवृत्तियों और सामाजिक व्यवहार, रीति, प्रथाओं और परम्पराओं तथा सामाजिक कार्य आदि की परिपक्वता यदि एक व्यक्ति में समाज की इच्छाओं के अनुसार विकसित हो चुके हैं तो वह व्यक्ति समाज की दृष्टि से पूर्ण रूप से सामाजिक प्रौढ़ता रखता है। सामाजिक परिपक्वता का विकास धीरे धीरे आयु के साथ साथ होता है।

4. सामाजिक अन्तःक्रियाएँ (Social Interactions) सामाजिक अन्तःक्रियाओं का अर्थ है दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक क्रियाएँ । सहयोग, सहानुभूति, व्यवस्थापन, समीकरण आदि कुछ संगठनात्मक प्रकार की सामाजिक अन्तःक्रियाएँ हैं। इसी प्रकार से तनाव, संघर्ष आदि कुछ विघटनात्मक प्रकार की सामाजिक अन्तःक्रियाएँ हैं। बालक में सामाजिक विकास जितना ही अधिक होता है उसमें संगठनात्मक सामाजिक अन्तः क्रियाएँ उतनी ही अधिक होती हैं ।

5. सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेना (Social Participation) बालक दूसरों के साथ खेलने, बातचीत करने और घूमने में अपनी रुचि लगभग 1, वर्ष की अवस्था से ही प्रदर्शित करने लग जाता है। 5-6 वर्ष की अवस्था में सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने का महत्व उसकी समझ में आने लगता है। दूसरे बच्चों के साथ सामूहिक खेलों से समाज के अनेक नियमों और मूल्यों को सीखता है तथा अनेक सामाजिक कौशलों को भी सीखता है।

बालक को सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के जितने ही अधिक अवसर प्राप्त होते हैं, इन अवसरों से वह उतना ही अधिक लाभ उठाता है तथा उस बालक का सामाजिक विकास उतना ही अच्छा माना जाता है।

सामाजिक परिपक्वता की अध्ययन विधि Learning Method of Social Maturity

वाइनलैंड सामाजिक परिपक्वता माप (The Vineland Social Maturity Scale)

> डॉ. एडलर डोल ने सामाजिक परिपक्वता का मापन करने के लिए इस विधि का निर्माण किया है। वाइनलैंड सामाजिक परिपक्वता माप को प्रमाणीकृत कर लिया गया है तथा इसका प्रयोग भिन्न अवस्था के बालकों के सामाजिक व्यवहार का मापन करने के लिए किया जाता है।

डॉ. डोल ने इस माप के अन्तर्गत 117 सामाजिक क्रियाओं को रखा है, जिनका संबंध जन्म से लेकर किशोरावस्था तक है।

सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक Factors Influencing Social Development

स्किनर व हैरीमन के शब्दों में- वातावरण और संगठित सामाजिक साधनो के कुछ ऐसे विशेष कारक हैं जिनका बालक के सामाजिक विकास की दशा पर निश्चित और विशिष्ट प्रभाव पड़ता है।

  1. वंशानुक्रम (Ileredity) कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि बालक के सामाजिक विकास पर वंशानुक्रम का कुछ सीमा तक प्रभाव पड़ता है। इनकी पुष्टि में क्रो एवं क्रो ने लिखा है.. “शिश की पहली मस्कान या उनका कोई विशिष्ट व्यवहार वंशानुक्रम से उत्पन्न होनेवाला हो सकता है।”

2. शारीरिक व मानसिक विकास स्वस्थ और अधिक विकसित मस्तिष्क वाले बालक का सामाजिक विकास अस्वस्थ और कम विकसित मस्तिष्क वाले बालक की अपेक्षा अधिक होता है।

3. संवेगात्मक विकास (Emotional Development) बालकों की संवेगात्मकता उनके सामाजिक विकास को प्रभावित करती है। जो बालक विनोदप्रिय और हँसमख होते हैं उनके दोस्त और साथी समूहों की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार के बालकों में सामाजिक विकास भी अन्य प्रकार के बालकों की अपेक्षा अधिक मात्रा में पाया जाता है।

4. पारिवारिक वातावरण (Family Environment) परिवार ही वह स्थान है, जहाँ सबसे पहले बालक का समाजीकरण होता है परिवार के बड़े लोगों का जैसा व्यवहार और आचरण होता है, बालक वैसा ही आचरण और व्यवहार करने का प्रयत्न करता है।

5. आर्थिक स्थिति (Economic Status) माता-पिता की आर्थिक स्थिति का बालक के सामाजिक विकास पर उचित या अनुचित प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ, धार्मिक माता-पिता के बालक अच्छे पड़ोस में रहते हैं, अच्छे व्यक्तियों से मिलते-जुलते हैं और अच्छे विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते हैं। स्वाभाविक रूप से ऐसे बालकों का सामाजिक विकास उन बालकों से कहीं अधिक उत्तम होता है जिन्हें निर्धन माता-पिता की संतान होने के कारण उपयुक्त सुविधाएँ नहीं मिलती हैं।

6. पालन पोषण की विधि (Methods of Nurture) अभिभावक के द्वारा बालक के पालन पोषण की विधि उसके सामाजिक विकास पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। जैसे—समानता के आधार पर पाला जानेवाला बालक कहीं भी हीनता का अनुभव नही करता है और लाड़ से पाला जाने वाला बालक दूसरे बालकों से दूर रहना पसन्द करता है। अतः दोनों का सामाजिक विकास दो विभिन्न दिशाओं में होता है।

7. पड़ोस और विद्यालय (Neighborhood and School) बालक के सामाजिक विकास के दृष्टिकोण से परिवार के बाद विद्यालय का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यदि विद्यालय का वातावरण जनतंत्रीय है तो बालक का सामाजिक विकास अविराम गति से उत्तम रूप ग्रहण करता चलता है। इसके विपरीत, यदि विद्यालय का वातावरण एकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार दण्ड और दमन पर आधारित है तो बालक का सामाजिक विकास कुण्ठित हो जाता है।

8. मनोरंजन (Recreation) जिन बालकों को अच्छे मनोरंजन के जितने अधिक अवसर प्राप्त होते हैं उनका सामाजिक विकास उतना ही अधिक अच्छा होता है। स्वस्थ, नाटक सिनेमा, सर्कस, सैर पार्टियों में जाना आदि बच्चों का मनोरंजन करते हैं। मनोरंजन से बालक स्वस्थ व प्रसन्न रहता है।

9. समूह या टोली (Groups) बालक के समूह के साथी अधिक हैं तो सामाजिक विकास तीव्रता से होता है, क्योकि समूह के बीच ही बालक विभिन्न सामाजिक मल्यो व सामाजिक स्वरूपों को सीखता है।

10. संस्कृति (Culture) मानव की संस्कृति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके सामाजिक व्यवहार का प्रभाव पड़ता है, जिसके बीच वह प्रारंभ से पलता और बड़ा होता है। भारतीय व पाश्चात्य संस्कृति में पर्याप्त अंतर है। कोई भी समाज अपने सदस्यों से अपनी संस्कृति के विरुद्ध कार्य करने की अपेक्षा नहीं रखता है। अतः सामाजिक प्राणी होने के नाते संस्कृति के अनुसार ही सामाजिक व्यवहारों को किया जाता है।

11. लिंग (SC) लिंग भेद सामाजिक व्यवहारों में भिन्नता पैदा करते हैं। प्रायः लड़कों को प्रारम्भ से अधिक स्वतंत्रता मिलने के कारण वे अधिक क्रोधी झगड़ालू होते हैं, जबकि लडकियाँ सहनशील होती हैं। बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा सहनशक्ति, सहिष्णुता, सहानुभूति और त्याग की सामाजिक प्रतिक्रियाएँ अधिक होती हैं।

12. वृद्धि (Growth) : सामाजिक विकास विभिन्न आयु स्तरों पर वृद्धि के अनुसार अलग अलग होता है। प्रारम्भ में बच्चा पूरी तरह दूसरों पर निर्भर होता है। परन्तु उम्र के साथ साथ वह आत्मनिर्भर होता जाता है। वह स्वयं समाज में नेतृत्व करने योग्य हो जाता है तथा उत्तरोत्तर वृद्धि सामाजिक विकास में परिपक्वता लाती है।

13. भाषा विकास (Language Development) : भाषा एक माध्यम है, जिसके द्वारा बालक अपनी बातों, विचारों आदि का आदान-प्रदान दूसरों से करते हैं। भाषा के उचित प्रयोग से बालक अपना सामाजिक दायरा बढ़ा सकते हैं।

14. हीनता की भावना (Inferiority Complex) प्रायः जिन बालकों में हीनता की _ भावना अधिक मात्रा में पायी जाती है उनमें सामाजिक विकास कम गति से होता है। वे बालक दूसरों से मिलना-जुलना पसन्द नहीं करते हैं। अपनी हीनता की भावना के कारण उनमें आत्मविश्वास भी कम हो जाता है जिससे उन्हें अपना सामाजिक दायरा बनाने में कठिनाई होती है।

15. व्यक्तित्व विकास (Personality Development): बालकों का व्यक्तित्व भी • उसके सामाजिक विकास को प्रभावित करता है। प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व का निर्माण अलग ढंग से होता है। कुछ बालक बहिर्मुखी तथा कुछ अन्तर्मुखी होते हैं। बहिर्मुखी बालकों का सामाजिक दायरा बड़ा होता है। वे प्रसन्न एवं मिलनसार होते हैं, जिससे वे समाज में लोकप्रिय हो जाते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास की भावना बढ़ जाती है।

16. सामाजिक व्यवस्था (Social System) सामाजिक व्यवस्था बालक के सामाजिक विकास को एक निश्चित रूप और दिशा प्रदान करती है। समाज के कार्य, आदर्श और प्रतिमान बालक के दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं। यही कारण है कि ग्राम और नगर, जनतंत्र और तानाशाही में बालक का सामाजिक विकास विभिन्न प्रकार से होता है।

परीक्षोपयोगी तथ्य

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति उसके समूह मानकों (Norms) के अनुसार वास्तविक व्यवहार का विकास करता है।

सामाजिक विकास का अर्थ उस योग्यता को अर्जित करना है जिसके द्वारा सामाजिक प्रत्याशाओं (Expectation) के अनुसार व्यवहार किया जा सके।

सामाजीकरण में तीन प्रक्रियाएँ सम्मिलित है(a) वह प्रक्रिया जिससे बालक में

समाज द्वारा मान्य व्यवहार का विकास होता है। (b) बालक समाज में मान्य रोल्स सीखता है। (c) सामाजिक अभिवृत्तियों का विकास।

सामाजिक प्रौढता (Social Maturity) का अर्थ है- समाज के मूल्यों नियमों अभिवृत्तियों और सामाजिक व्यवहार तथा सामाजिक रोल्स आदि की प्रौढ़ता।

बहिर्मुखी व्यक्तियों में सामाजिक प्रौढ़ता अन्तर्मुखी व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक पायी जाती है।

सामाजिक अनुरूपता (Social Conformity)का अर्थ है समाज के मानकों (Norms) आदर्शों तथा मूल्यों इत्यादि के अनुरूप व्यवहार करना।

सामाजिक विकास और सामाजिक अनुरूपता में धनात्मक सह संबंध है।

बालक में विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ बालक का समायोजन जितना अच्छा होगा, उसका सामाजिक विकास भी उतना ही अच्छा होगा।

सामाजिक अन्तःक्रिया का अभिप्राय है दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक क्रियाएँ।

संगठनात्मक सामाजिक अन्तःक्रियाएँ हैं सहयोग, सहानुभूति, व्यवस्थापन, सात्मीकरण इत्यादि।

विघटनात्मक सामाजिक अन्तःक्रियाएँ हैं तनाव, संघर्ष इत्यादि।

बालक का सामाजिक विकास उतना अधिक अच्छा माना जाता है जितना ही अधिक वह सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेता है।

बचपनावस्था (Babyhood) में बालकों में होनेवाली सामाजिक अनुक्रियाएँ हैंअनुकरण (Imitation), आश्रितता (Dependency), ईर्ष्या (Rivalry), सहयोग (Cooperation), शर्माहट (Shyness), ध्यान आकर्षित करना (Attention Seeking), अवरोधी व्यवहार (Resistant Behaviour)।

पूर्व बाल्यावस्था (Early Childhood) में होनेवाली सामाजिक अनुक्रियाएँ हैंआक्रामकता झगड़ा (Quarreling), चिढ़ना (Teasing), निषेधात्मक व्यवहार (Negative Behaviour), सहयोग (Co-operation), ईर्ष्या (Rivalry), उदारता (Generosity), सामाजिक अनुमोदन की इच्छा, आश्रितता (Dependency), बालको में मित्रता, सहानुभूति (Sympathy)।

उत्तर बाल्यावस्था (Late Childhood) में होनेवाली सामाजिक अक्रियाएँ हैंसामाजिक अनुमोदन (Social Approval), सुझाव ग्रहणशीलता (Suggestibility), स्पर्धा और प्रतियोगिता (Rivalry and Competition), खेल (Sports), पक्षपात और सामाजिक विभेदीकरण (Prejudice and Social Discrimination), उत्तरदायित्व (Responsibility), सामाजिक सूझ (Social Insight), यौन विरोधी भाव (Sex Antagonism)।

सामाजिक विकास को प्रभावित करनेवाले कारक हैं- शारीरिक बनावट और स्वास्थ्य, परिवार पडोस और वातावरण, मनोरंजन (Recreation), व्यक्तित्व, संवर्द्धन अभिप्रेरक, संवेगात्मक विकास, हीनता की भावना, साथी समूह ।

किशोरावस्था में बालकों में होनेवाले सामाजिक परिवर्तन हैं साथियों के समूह का प्रभाव, सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन, नया सामाजिक समूहन, दोस्तों में चयन का नया मूल्य, सामाजिक स्वीकृति में नया मूल्य इत्यादि ।

ब्रोनफेनब्रेन्नर (Bronfrenbrenner) ने पारिस्थितिपरक सिद्धांत (Ecological Theory) की व्याख्या बच्चे के विकास के सामाजिक संदर्भ (Social Context) में किया है। इस सिद्धांत के अनुसार पर्यावरणी तल के पाँच स्तर होते हैं. लघुमंडल (Micro System), मध्यमंडल (Mesosystem), बाह्यमंडल (ExOSystem), वृहत्तमंडल (Macrosystem), घटनामंडल (Chromosystem)।

इरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत में पूरे जीवन अवधि में विकास को आठ अवस्थाओं में बाँटा गया है।

> सामाजिक विकास में शिक्षकों की भूमिका काफी अधिक है, क्योंकि शिक्षकगण बालकों के सामाजिक विकास को सीधे प्रभावित करते हैं। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिससे बच्चे और वयस्क सीखते हैं परिवार से, विद्यालय  से और श्रेष्ठ जनों से

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