UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Aaklan Evam Mulyankan Study Material
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आकलन एवं मूल्यांकन | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 14 Study Material in Hindi
मल्यांकन शिक्षण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है। वैदिक काल में शिक्षार्थी का मल्यांकन मौखिक परीक्षाओं के रूप में होता था। इनका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी की स्मृति तथा स्वीकृति (Recall and Recognition) की क्षमता का मूल्यांकन करना होता था। हमारे देश में 1854 ई. में वुड (Wood) के घोषणा-पत्र के पश्चात् तथा अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के प्रसार के फलस्वरूप परीक्षाओं को महत्व मिलने लगा। – मूल्यांकन की प्रक्रिया मापन एवं परीक्षा के अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत प्रक्रिया है।
मूल्यांकन के अन्तर्गत शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया, शिक्षण विधियों, शैक्षिक उद्देश्यों, शिक्षण प्रभावशीलता, विद्यार्थी की सफलता को जानकर उसको उचित निर्देश देना इत्यादि आता है। -कोठारी आयोग (1964-66) का मत है कि “मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जो शिक्षा की सम्पूर्ण प्रणाली का अभिन्न अंग है तथा जिसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह शिक्षार्थी की आदतों तथा अध्यापक के पढ़ाने की पद्धतियों पर गहरा प्रभाव डालती है तथा इस प्रकार यह शैक्षिक उपलब्धि के मापन एवं सुधार में सहायक होता है।” मुदालियर कमीशन ने कहा है-‘परीक्षा और मूल्यांकन का शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षार्थियों ने अपने अध्ययनकाल में किस सीमा तक उन्नति की है,
इसकी जाँच शिक्षक तथा अभिभावक दोनों के लिए आवश्यक है।” क्षिक मूल्यांकन के उद्देश्य ims of Educational Evaluationशैक्षिक मूल्यांकन निम्नलिखित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है—
विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि के स्तर का निर्धारण करने के लिए। विद्यार्थियों की शैक्षिक निष्पत्ति के आधार पर निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करने के लिए।
* विद्यार्थियों की असफलताओं का कारण पता कर उनका उपचार करने हेतु।
* विद्यार्थियों की ग्रेडिंग, वर्गीकरण तथा प्रोन्नति करने के लिए।
* विधार्थियों की योग्यता के आधार पर पुरस्कार एवं छात्रवृत्ति प्रदान करने हेतु ।
* शिक्षण में गुणात्मक सुधार हेतु अधिगम के वातावरण में सुधार करने के लिए। * समाज तथा अभिभावकों को जवाबदेही हेतु नियमित रूप से उनके बच्चों की उपलब्धि एवं उन्नति का पता लगाने हेतु ।
* शिक्षक की शिक्षण प्रभावशीलता को जानने के लिए।
शिक्षण विधियों में परिवर्तन या सुधार करने हेतु
। _* पाठ्यक्रम एवं पाठ्य-पुस्तकों में ऐसे बिन्दुओं का पता लगाना जिनमें परिजन या परिमार्जन की आवश्यकता है।
मूल्यांकन के प्रकार Kinds of Evaluation
मूल्यांकन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है-
1. अल्पकालीन या क्रमानुसार मूल्यांकन (Short Term or Formative Evaluation अल्पकालीन मूल्यांकन का अभिप्राय उस मूल्यांकन से है जो सत्र के बीच में अनेक का विद्यार्थियों की शैक्षिक एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी उन्नति एवं विकास को जानने के लि किया जाता है। इस मूल्यांकन द्वारा विद्यार्थी के विकास तथा पाठ्यक्रम के विकास पता लगाया जाता है।
> इस मूल्यांकन से शिक्षण और अधिगम की प्रक्रियाओं को पुनर्बलन मिलता है।
> इस मूल्यांकन के अन्तर्गत कक्षा में दिन-प्रतिदिन किया जाने वाला मूल्यांक – साप्ताहिक तथा मासिक मूल्यांकन, प्रयोगशाला में मूल्यांकन एवं अनेक कार्यक्र/ का ल्यांकन आता है।
> कुछ विद्यालयों में इसे आन्तरिक मूल्यांकन (Internal ssessment) भी कहते है। लाभ S emaller System Merits LaT oo अल्पकालीन मूल्यांकन से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं> इस प्रकार का मूल्यांकन विद्यार्थी को व्यक्तिगत रूप देने में सहायक होता है। > इससे विद्यार्थी अपनी उन्नति को जानकर अपनी शैक्षिक उपलब्धि में सुधार सकता है।
इस मूल्यांकन के अंतर्गत विषय-वस्तु को छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटा जाता जिससे छात्रों को सम्पूर्ण विषय को समझना सरल हो जाता है। शिक्षक तथा विद्या दोनों ही व्यवस्थित ढंग से शिक्षण और अधिगम का कार्य कर सकते है।
> इस विधि के द्वारा विद्यार्थी विषय का अध्ययन अधिक गहनता से करता है। पर के समय छात्रों को गेस पेपर या गाइड जैसी पुस्तकों का सहारा लेना नहीं पड़ता। दोष Demertis अल्पकालीन मूल्यांकन के दोष निम्नलिखित हैं> इसमें शिक्षक को अधिक कार्य करना पड़ता है। शिक्षण के कार्यों के अतिति शिक्षक को अनेक प्रतिलेखो एवं पंजिकाओं का रख-रखाव करना पड़ता है। ~ समय एवं अर्थ के दृष्टिकोण से ये अधिक खर्चीले होते हैं। कभी-कभी शिक्षक का पक्षपातपूर्ण व्यवहार बार-बार मूल्यांकन को प्रभावित लगता है।
2. दीर्घकालीन या योगात्मक मूल्यांकन (Long Term or Summative Evaluatil योगात्मक मूल्यांकन का अभिप्राय उस मूल्यांकन से है जो सत्र के अन्त में वार्षिक परीक
किया जाता है। अतः इसके अन्तर्गत वे एकत्रित मूल्यांकन करते हैं जिनके मोन्नति, चयन, पदोन्नति, भविष्यवाणी इत्यादि की जाती है। इस प्रकार मल्यांकन में पूरे सत्र का कुल मूल्यांकन आता है।
लाभ Merits
दीर्घकालीन मूल्यांकन के लाभ निम्नलिखित हैं-
(a) समय एवं अर्थ के दृष्टिकोण से यह कम खर्चीली होती है। प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी यह आसान होती है, क्योंकि इनकी तैयारी अवस्था. प्रतिलेखन भी एक ही बार तैयार करना पड़ता है। शिक्षक के लिए भी अधिक कार्य नहीं बढ़ता है। (d) पूरे पाठ्यक्रम को इकाइयों में विभाजित नहीं करना पड़ता और एक ही बार में पूरे विषय की परीक्षा ले ली जाती है। Demerits । दीर्घकालीन मूल्यांकन में निम्नलिखित दोष होते हैं
(a) दीर्घकालीन परीक्षाओं की वैधता एवं विश्वसनीयता कम होती है, क्योंकि पूरे ठ्यक्रम के कुछ ही अंशों का प्रतिनिधित्व प्रश्नपत्र में होता है।
(b) इससे गेस पेपर, गाइड, चयनित अध्ययन, कोचिंग को बढ़ावा मिलता है। वैद्यार्थी विषय की गहनता से अध्ययन नहीं करता। | (c) विद्यार्थी को अपने में सुधार लाने का अवसर नहीं दिया जाता है।
(d) शिक्षक भी अपनी प्रभावशीलता को नहीं जान पाता है।
दानो प्रकार के मूल्यांकन लाभप्रद हैं। अतः एक विद्यालय में दोनों ही प्रकार की मूल्यांकन प्रणाली को अपनाना चाहिए। ये दोनों प्रकार के मूल्यांकन एक-दूसरे के
पूरक भी हैं। – विद्यालय में वार्षिक मूल्यांकन के अलावा साप्ताहिक, मासिक मूल्यांकन भी अवश्य लाना चाहिए तभी विद्यालय के शिक्षण एवं अधिगम में सुधार किया जा सकता है।
मूल्यांकन प्रक्रिया के पद (Steps of Evaluation Process) सामान्य उद्देश्यों का निर्धारण करना विशिष्ट उद्देश्यों का निर्धारण करना शिक्षण बिन्दुओं का चयन करना अधिगम क्रियाएँ व्यवहार परिवर्तन विद्यार्थी का मूल्यांकन करना पृष्ठपोषण
शैक्षिक मूल्यांकन का क्षेत्र Scope of Educational Evaluation
1. शारीरिक विकास का मूल्यांकन (Evaluation of Physical Development शारीरिक विकास का तात्पर्य विद्यार्थी के स्वास्थ्य सम्बन्धी मूल्यांकन से है। विद्यार्थी उचित मानसिक विकास के लिए उसे स्वस्थ भी होना चाहिए। शारीरिक विकास मूल्यांकन हेतु विद्यार्थी का समय समय पर अच्छे चिकित्सक द्वारा निरीक्षण होना चाहि और किसी भी प्रकार के शारीरिक दोषों को दूर करने हेतु सही समय पर चिकित्सक की राय लेनी चाहिए।
> शारीरिक विकास हेतु एक विद्यालय को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।
(a) विद्यार्थी की प्रत्येक सत्र में एक बार शारीरिक जांच, कुशल चिकित्सक द्वार करवायी जाय।
(b) ऐसे विद्यार्थियों की जिनमें किसी प्रकार की शारीरिक अपंगता है, उनका रिकाः रखना चाहिए। ___(c) विद्यार्थियों की शारीरिक क्षमता का मूल्यांकन एक निश्चित समयावधि के बाद अवश्य होना चाहिए।
(d) अगर किसी विद्यार्थी में कोई असामान्यता हो तो उसके अभिभावक को तुरन. सूचना देना चाहिए।
2. Athifor fact CT Areich (Evaluation of Social Development) = विद्यार्थी विद्यालय में शिक्षकों तथा अनेक अन्य विद्यार्थियों के सम्पर्क में आते हैं और अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। इसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी में सहानुभूति सहयोग, सहभागिता तथा अनुशासन जैसी क्षमताओं का विकास होता है, जो उन्हें एक कुशल सामाजिक प्राणी बनाते हैं। इस उद्देश्य हेतु विद्यालय को निम्नलिखित कार्य कर चाहिए-
(a) विद्यार्थी की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों जैसे प्रार्थना सभा में भाषण, खेल-ककार्यक्रम, गाइडिंग या स्काउटिंग इत्यादि की ओर ध्यान दिया जाय तथा उन्हें रिका कर लिया जाय।
(b) इन कार्यक्रमों के प्रति विद्यार्थी का दृष्टिकोण किस प्रकार का है।
(c) विद्यार्थी का अपने मित्रों एवं सहपाठियों के साथ व्यवहार किस प्रकार का प्र सामाजिक विकास का पता लगाने के लिए सामान्यतः शिक्षक निरीक्षण विधि ही प्रयोग करते हैं, परन्तु विशेष परिस्थितियों में रेटिंग स्केल या प्रश्नावली की समाजमिति की सहायता ली जा सकती है।
व्यक्तित्व के विकास का मूल्यांकन (Evaluation of Personality Developmem व्यक्तित्व के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक गुण जैसे मिलनसारिता, समाजसेवा, बुनि चरित्र स्वभाव मनोवैज्ञानिक तथा वेशभूषा, शारीरिक गठन वाणी जैसेशागार गुण समाहित होते हैं।
विधालय का यह प्रयास होता है कि वह विद्यार्थी में इन सब गणों का विकास कर के अच्छे व्यक्तित्व को विकसित कर सके। विद्यालय में व्यक्तित्व विकास के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए-
विद्यार्थी को प्रतिदिन अपनी डायरी बनाने को कहना चाहिए, जिसमें वह अपनी प्रतिदिन की घटनाओं का विवरण लिखें।
को शिक्षक को विद्यार्थी के व्यवहार का निरीक्षण करना चाहिए और असामान्य वहार करने वाले विद्यार्थियों के बारे में अपनी डायरी में नोट करना चाहिए।
विशेष व्यवहारों का पता लगाने के लिए विभिन्न व्यक्तित्व परीक्षणों की सहायता हनी चाहिए। समय समय पर TAT एवं CAT व्यक्तित्व मापनियों की सहायता से विद्यार्थियों का व्यक्तित्व मापन करना चाहिए।
4. शैक्षिक उपलब्धियों का मापन (Evaluation of Educational Achievement) विद्यालय में शैक्षिक उपलब्धियों का मापन करने के लिए मासिक तथा सात्रिक परीक्षाएँ ली जाती हैं। विद्यार्थी को कक्षोन्नति भी इन्हीं परीक्षाओं के आधार पर दी जाती है। शैक्षिक उपलब्धियों को जाँच करने हेतु विद्यालय में निम्नलिखित क्रियाएँ होनी चाहिए :
(a) विद्यालय का प्रतिदिन कार्य नियमित रूप से जाँचा जाय ।
(b) जब कभी विद्यार्थी को गृह-कार्य दिया जाता है तो शिक्षक को उसका मूल्यांकन अवश्य करना चाहिए।
(c) प्रत्येक शिक्षण इकाई के समाप्त होने पर प्रत्येक माह विद्यार्थियों की परीक्षा लेनी चाहिए।
(d) विद्यार्थी को जो भी प्रदत्त कार्य (Assignments) दिये जायें, उनका मूल्यांकन भी अवश्य होना चाहिए।
(d) सत्र पूरा होने पर वार्षिक परीक्षाएँ भी अवश्य होनी चाहिए।
भार्नडाइक के सीखने के सिद्धांत का शैक्षिक आशय एवं मूल्यांकन
थार्नडाइक ने सीखने के सिद्धांत में शैक्षिक उपयोगिता एवं शैक्षिक आशय को महत्व दिया है। न्होंने शिक्षा मनोविज्ञान की पुस्तक भी लिखी, जिसका प्रकाशन 1913 में हुआ। थार्नडाइक का मत था कि कक्षा के उद्देश्य (Objective) स्पष्टतः परिभाषित होनी चाहिए तथा वे शिक्षार्थियों की क्षमताओं (Capacities) की पहुँच के भीतर होनी चाहिए।
थानडाइक के सीखने के सिद्धांत का शैक्षिक आशय यह है कि शिक्षार्थी का व्यवहार बाह्य पुनर्बलकों (External Reinforces) से अधिक प्रभावित है, आंतरिक प्रेरणा (Internal Motivations) से कम। शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों को सही अनुक्रि या करने के लिए प्रेरित करें और यदि वे सही अनुक्रिया करते हैं, तो उन्हें पुरस्कार (Reward) दें। यानडाइक का मत था कि कक्षा में छात्रों द्वारा सीखे गये कौशलों (Skills) का वास्तविक जिंदगी (Real Life) में तभी हस्तांतरण होगा जब दोनों परिस्थितियाँ काफी समान हों। यह बात थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित शिक्षण हस्तांतरण के समरूपता सिद्धांत से स्पष्ट हो जाता है।
> छात्रों को प्रायः कठिन विषयों को पढ़ने पर बल नहीं देना चाहिए।
> थार्नडाइक के अनुसार अध्यापन (Tecaching) की सबसे महत्वपूर्ण विधि वह होता है जिसमें शिक्षक को यह स्पष्ट रूप से पता होता है कि उसे क्या पढ़ाना है।
परीक्षोपयोगी तथ्य
> मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जो शिक्षा की सम्पूर्ण प्रणाली के अभिन्न अंग है तथा जिसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ संबंध है। अल्पकालीन मूल्यांकन के द्वारा विद्यार्थी के विकास तथा पाठ्यक्रम के विकास के पता लगाया जाता है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में, व्यापक मूल्यांकन का तात्पर्य शैक्षिक एवं सह-शैक्षित क्षेत्र के मूल्यांकन से है।
> बच्चों का मूल्यांकन सतत एवं व्यापक मूल्यांकन द्वारा होना चाहिए। विद्यालय आधारित आकलन में बाह्य परीक्षकों की अपेक्षा शिक्षक अपने शिक्षार्थिय की क्षमताओं को बेहतर जानते हैं।
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