UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Bhasha Aur Vichar Study Material

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भाषा और विचार | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book Chapter 8 in PDF

‘स्वीट’ (Siveet)के अनुसार, ”भाषा, ध्वनियों द्वारा मानव के भावों की अभिव्यक्ति है। हरलॉक (Hurlock) के अनुसार, ”भाषा में सम्प्रेषण (विचारों का आदान-प्रदान के वे सभी साधन आते हैं, जिसमें विचारों और भावों को प्रतीकात्मक बना दिया जाता है, जिससे कि अपने विचारों और भावों को दूसरों से अर्थपूर्ण ढंग से कहा जा सके। लिखना, पढ़ना बोलना, मुखात्मक अभिव्यक्ति, हाव-भाव संकेतों का प्रयोग तथा कलात्मक अभिव्यक्तियाँ आदि भाषा में ही सम्मिलित हैं। भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकता है। यदि भाषा का विकास न हो तो निश्चय ही व्यक्ति की मानसिक योग्यताओं का विकास जिस सामान्य ढंग से होता है उस ढंग से नहीं होगा। भाषा के माध्यम से विचारों को प्रकट करने पर उनमें स्पष्टता आ जाती है; अतः प्रत्येक बालक के विकास क्रम में भाषा का विकास होना परम आवश्यक है।

भाषा विकास का महत्व Importance of Language Development

भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकता है तथ है व्यक्ति को सामाजिक, शारीरिक, मानसिक और शैक्षिक सभी क्षेत्रों में लाभ प्राप्त होत है। इसका महत्व निम्नलिखित है

(a) सामाजिक संबंधों में भाषा का महत्व (Importance of Language in Socies Relations) : भाषा के माध्यम से बालक अपनी बातों को दूसरे से कह सकता है तथ दूसरों की बात समझ भी सकता है तथा वाणी द्वारा वह सामाजिक मूल्यों, नियमों और आदर्शों आदि को सीखता है तथा समाज में समायोजन करने में सफल होता है। – एलिस के अनुसार, “भाषा वह प्राथमिक माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति अप समाज को प्रभावित करता है तथा समाज से प्रभावित होता है

(b) आत्म-मूल्यांकन में महत्व (Importance in Self Evaluation) : बालक ज ( अपने परिवार में होता है या अपने खेल के समूह में होता है अथवा अन्य किसी समूअ में होता है, उस समय दूसरे लोग उसके संबंध में क्या बोलते हैं और किस प्रकार (S मुखात्मक और शारीरिक अभिव्यक्ति करते हैं। इससे एक बालक सरलता से यह ज अ सकता है कि लोग उससे और उसकी वाणी से कितना प्रभावित हुए हैं।

(शैक्षिक उपलब्धि में महत्व (Importance in Academic Achievement): बाल अ को कैसे बोलना है, क्या बोलना है, उसका शब्द-भण्डार कितना है, इन सभी बातो अ उसकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ प्रभावित होती हैं। जिनका शब्द-भण्डार बड़ा होता है उस वाक्य विन्यास तथा भाषा प्रस्तुतीकरण अच्छा होता है।

(d) नेतृत्व के विकास में सहायक भाषा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने समूह का नेता बन सकता है। वह अपनी बात दूसरों को समझा सकता है तथा दूसरों की बात को सुन सकता है। विचारों को जो व्यक्ति कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त कर लेते हैं, उनकी वाणी व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। अतः नेतृत्व गुणों के विकास में भाषा सहयोग प्रदान करती है।

() व्यक्ति विकास में सहायक भाषा व्यक्ति विकास की आधारशिला है, जो बालक अपने विचारों का प्रकटीकरण सीमित, सन्तुलित तथा प्रभावशाली भाषा में करते हैं, वे जीवन में विकास की ओर बढ़ते हैं तथा उनका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होता है।

() सामाजिक मूल्यांकन में महत्व (Importance in Social Evaluation): जिस प्रकार सामाजिक परिस्थितियों में बालक दूसरों की वाणी सुनकर अपना या आत्म-मूल्यांकन करता है, ठीक उसी प्रकार सामाजिक परिस्थितियों में एक बालक क्या बोलता है या क्या उसकी वाणी सम्बन्धित अभिव्यक्ति है, इस आधार पर उस बालक का मूल्यांकन समाज के अन्य व्यक्ति करते हैं।

भाषा विकास के सिद्धांत Principle of Language Development

भाषा विकास के सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

(a) स्वर यंत्र की परिपक्वता (Maturation of Larynx): भाषा का विकास शरीर के अंग की परिपक्वता जैसे—स्वर यंत्र, जीभ, गला और फेफड़ा इत्यादि पर निर्भर करता है। यह सभी अंग जब तक एक विशेष परिपक्वता स्तर पर नहीं पहुँचते हैं तब तक भाषा का सामान्य विकास संभव नहीं है। इन सभी अंगों के अतिरिक्त भाषा का विकास होंठ, दाँत, तालु और नाक के विकास पर भी निर्भर करता है।

इन अंगों की परिपक्वता के अतिरिक्त वातावरण संबंधी कारक भी भाषा के विकास को प्रभावित करते हैं। भाषा के विकास में वातावरण संबंधी कारकों में अनुकरण के अवसर एक महत्वपूर्ण कारक हैं।

L) अनुबंधन (Conditioning) : अधिगम सिद्धान्तवादियों ने बालक में भाषा के विकास को उद्दीपक अनुक्रिया (S-R) के बीच स्थापित साहचर्य के आधार पर समझाया है। इस दिशा में स्किनर (Skinner) का प्रयास अति सराहनीय है। स्किनर ने पुनर्बलन Reinforcement) के आधार पर भाषा के विकास को समझाया। स्किनर का विचार है के अन्य व्यवहार कार्यों की तरह भाषा का विकास भी ‘आपरेन्ट अनुबंधन’ (Operant Conditioning) पर निर्भर करता है। इस सिद्धांत के अनुसार बालक द्वारा भाषा का अर्जित करना ध्वनि और ध्वनि-संयोजन (Sound Combination)के चयनात्मक पुनर्बलन |Selective Reinforcement) पर निर्भर करता है। स्किनर के अनुसार बालक स्वतः अनायास या अनुकरण के आधार पर बोलते हैं।

उद्दीपक अनुक्रिया के बीच स्थापित साहचर्य के आधार पर भी बालक शब्दों का प्रधिगम करता है। अतः स्किनर के अनसार बालक का शब्दों को सीखना आपरेन्ट अनुबंधन से अधिक सम्बन्धित है।

कोमास्की का सिद्धांत (Chomsky’s Theory):कोमास्की (Chomsky)का विचार कि बालक का शब्दों या भाषा का सीखना अनुकरण और पुनर्बलन पर आधारितअवश्य है परन्तु अनुकरण और पनर्बलन दोनों ही बालक द्वारा शब्दों को सीखने की प्रक्रिया को भली-भाँति स्पष्ट नहीं करते हैं। कोमास्की ने अपने सिद्धांत को निम्नलिखित मॉडल चित्र के द्वारा समझाया हैLinguistic Data T LAD The Ability to Understand & (Input) (Processing) Produce Sentence (Output)

“उपर्युक्त मॉडल के अनुसार बालक जो कुछ भी सुनता है उसे Language Acquisition Device) के द्वारा समझता है तथा उसे पुनरोत्पादित कर सकता है तथा नये शब्द भी बोल सकता है।

(d) सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory) : इस सिद्धांत के प्रतिपादकों में बन्डुरा (Bandura) का नाम प्रमुख है। इस सिद्धांत के समर्थकों का कहना है कि बालक भाषा के संबंध में जो कुछ भी सीखता है, वह मॉडल के व्यवहार के निरीक्षण .और अनुकरण पर आधारित होता है। इस प्रकार का सीखना पुनर्बलन के साथ भी हो , सकता है और पुनर्बलन की अनुपस्थिति में भी हो सकता है।

इन सिद्धांतवादियों का कहना है कि बिना किसी मॉडल के बच्चे शब्दों और भाष – की संरचना को नहीं सीख सकते हैं। बालक जिस वातावरण में रहते हैं, उसमें रहने । वाले अन्य व्यक्ति जो भाषा और शब्द बोलते हैं, वह बच्चा सुनता रहता है। कई बार कि वह शब्दों का तुरंत अनुकरण नहीं कर पाते हैं। फिर भी वे शब्दों और भाषा के बारे में। कुछ सूचना अवश्य ग्रहण करते हैं।

भाषा-विकास की अवस्थाएँ Stages of Speech Development

बालकों में भाषा-विकास की कई अवस्थाएँ हैं, जो इस प्रकार है-

A. बोलने की तैयारी

क्रन्दन (Crying) शिशु के जन्म से ही क्रन्दन प्रारम्भ हो जाता है, जो उसर्व वा भाषा का प्रारम्भिक रूप है। यदि बालक सामान्य रूप से रोता है तो रोने से उस आवश्यकता की पूर्ति होती है। साथ ही उसकी माँसपेशियों का अभ्यास भी हो जात । है। इस अभ्यास से उसकी माँसपेशियों की वृद्धि होती है और माँसपेशियों का समन्वय (Ordination) बढ़ता है। रोने से उनको अच्छी नींद आती है एवं उनकी भूख बढ़ती है 3 रोने से बच्चों का संवेगात्मक तनाव भी दूर होता है, परन्तु आवश्यकता से अधिध रोना बालक के लिए शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों रूप से हानिकारक होता है।

  • वा तक चलता है। बबलाने से बालकों के स्वर-यन्त्र की परिपक्वता को बल मिलता बालक आय बढ़ने के साथ अधिक से अधिक ध्वनियाँ बोलने लगता है। बबलाने में वा स्वरों को पहले और व्यंजनों को उनके साथ मिलाकर दुहराता है।

हाव भाव (Gestures): बालकों द्वारा हाव-भाव का प्रदर्शन भाषा के पूरक के रूप किया जाता है। बच्चों के हाव-भाव की उत्पत्ति बबलाने के साथ साथ ही हो जाती बच्चा अपने हाव-भाव का प्रदर्शन, मुस्कुराकर, हाथ फैलाकर, अँगुली दिखाकर, मूक में करता है। अतः बच्चों के लिए हाव-भाव विचारों की अभिव्यक्ति का एक सुगम मशन है, जो शब्दों के स्थान पर प्रयुक्त किया जाता है।

वास्तविक भाषा की अभिव्यक्तियाँ

(a) आकलन शक्ति (Comprehensive Power) : बालकों की वह क्षमता जिसके द्वारा वह दूसरों की क्रियाओं तथा हाव-भाव का अनुकरण कर लेता है, ‘आकलन शक्ति कहलाती है। हरलॉक के अनुसार, बालक में आकलन शक्ति का विकास शब्दों के प्रयोग से पहले हो चुका होता है। प्रायः यह देखा गया है कि बालक उन वाक्यों को जल्दी सीखता है, जिनमें शब्दों के साथ-साथ कुछ हाव-भाव भी जुड़े होते हैं।

(b) उच्चारण (Pronunciation): लगभग 1 वर्ष के बालकों में शब्दों के अनुसार उच्चारण की तत्परता (Readiness) एवं योग्यता आ जाती है। इस समय वह अनेक ऐसी सरल ध्वनियों को उच्चारित कर सकता है जिनका उच्चारण उसने पहले कभी नहीं किया था। यह वह अनुकरण द्वारा सीखता है।

(c) शब्द-भण्डार (Vocabulary) : बालक के शब्द-भण्डार में वृद्धि उसके आयु में वृ द्धि के साथ-साथ होती है।

बालक का शब्द-भण्डार Vocabulary of Child

बालक का शब्द भण्डार

विशिष्ट शब्दावली का रूप शिष्टाचार से सम्बन्धित शब्द-भण्डार (Etiquette Vocabulary) गुप्त शब्द भण्डार (Secret Language) अशिष्ट शब्द भण्डार (Slang Vocabulary) धन से सम्बन्धित भण्डार (Money Vocabulary) रंगों से सम्बन्धित भण्डार (Colour Vocabulary) संख्याओं से सम्बन्धित भण्डार (Number Vocabulary) समय संबंधी शब्द (Time Vocabulary) atrafor (Sentence Formation) शुद्ध उच्चारण (Correct Pronunciation) साधारण शब्द भण्डार भाषा या वाणी शब्द (Speech Defects) शब्द-अर्थ से सम्बधित दोष वाक्य-निर्माण में दोष उच्चारण में दोष (Defects in Pronunciation)

> थॉमसन तथा लिपसिट के अनुसार,

10 शब्द 18 माह के बालक का शब्द भण्डार

272 शब्द 2 वर्ष

450 शब्द 2, वर्ष

1000 शब्द 3 वर्ष

1250 शब्द 37 वर्ष

1600 शब्द 4 वर्ष

1900 शब्द 4 वर्ष

2100 शब्द 5 वर्ष

50,000 शब्द छठी कक्षा में पढ़ने वाले बालक का शब्द-भण्डार हाई स्कूल80,000 शब्द >

बालकों की तुलना में बालिकाओं का शब्द-भण्डार अधिक होता है।

सामान्य भाषा या वाणी विकार Some Common Speech Defects

अधिकांशतः वाणी संबंधी विकार उन बच्चों में अधिक पाया जाता है जिनके पारिवारिक संबंध खराब होते हैं। उन बालकों की भाषा धीमी गति से व क्रमिक होता है। सामान्य भाषा में दोष निम्नलिखित प्रकार से होते हैं

(a) भ्रष्ट उच्चारण (Lisping) : सामान्य वाणी दोषों में मुख्यतः भ्रष्ट उच्चारण-दोष पाया जाता है। मुख्य रूप से जबड़ों, दाँतों और होंठों की रचना ठीक न होने के कारण : या परिवार के सदस्यों द्वारा भ्रष्ट उच्चारण करना या फिर शैशवावस्था में बच्चों द्वार । उच्चारित शब्द का माता-पिता द्वारा आनन्द लेना तथा भ्रष्ट उच्चारण को प्रोत्साहित करन = इत्यादि भ्रष्ट उच्चारण-दोष को बढ़ावा देता है।

(b) अस्पष्ट उच्चारण (Slurring) : बच्चे जब शब्दों को अस्पष्ट बोलते हैं तो इस 2 प्रकार का विकार भाषा विकार कहलाता है। लगभग 5 वर्ष की अवस्था तक बच्च में अस्पष्ट उच्चारण करता है लेकिन आयु बढ़ने के साथ-साथ इस प्रकार का विकार स्वाद ही दूर हो जाता है।

(c) तुतलाना (Sluttering) : वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिकांश बालकों में यह भाषा दोष 2 वर्ष की अवस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है। बालकों का समायोजन जैसे जैसे अच्छा होता है, उसका तुतलाना कम हो जाता है।

हकलाना (Stammering) : वैज्ञानिकों का मानना है कि हकलाने का कारण बालकों का भय और घबराहट है। इसके अतिरिक्त स्वरयन्त्र, गला, जीभ, फेफड़ों तहा होंठ सभी का सन्तुलन ठीक न होने पर बालकों में यह दोष उत्पन्न हो जाता है। ट्रेविस मतानुसार, हकलाने का कारण मस्तिष्क में श्रवण एवं वाक् केन्द्रों का विकृत हो जाना के

(e) तीव्र अस्पष्ट वाणी (Cluttering) : बच्चे की वाणी तीव्र अस्पष्ट होती है। इस बच्चे के बोलने की गति तीव्र हो जाती है और साथ साथ शब्द अस्पष्ट होते हैं। तीव्र और अस्पष्ट होने के कारण बोलने वाले की भाषा कहीं कहीं समझ में नहीं आती है।

भाषा और विचार कास को प्रभावित करने वाले कारक Factors Affecting Language Development,

भाषा-विकास में वैयक्तिक करनेवाले कारक निम्नलिखित हैं-

में वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती है। भाषा-विकास को प्रभावित विभिन्न अंगों की परिपक्वता अ पता (Maturation) : जिस प्रकार क्रियात्मक विकास के लिए शरीर के की परिपक्वता आवश्यक है। उसी प्रकार भाषा-विकास के लिए भी होंठ. साडे स्वरयंत्र और मस्तिष्क आदि की परिपक्वता आवश्यक है। मस्तिष्क का विशेष रूप से परिपक्व होना आवश्यक है। इन विभिन्न अंगों के परिपक्व होने पर ही बालक भाषा सीख सकता है।

बदि (Intelligence) विभिन्न अध्ययन में यह देखा गया है कि जिन बच्चों की

उच्च होती है, उनका कम IQ वाले बालकों की अपेक्षा शब्द-भण्डार अधिक ना है। उच्च IQ वाले बालक शुद्ध और बड़े वाक्य भी बोलते हैं। अधिक बुद्धि वाले बालकों में शब्द-भण्डार एवं वाक्य-रचना की अधिक क्षमता और शुद्ध उच्चारण की क्षमता भी पायी जाती है।

(c) स्वास्थ्य (Health) : यदि बालक लंबी अवधि तक बीमार रहता है, विशेष रूप 5 से दो वर्ष की आयु की अवधि तक तो उसके भाषा का विकास कमजोर स्वास्थ्य और 5 अभ्यास न कर सकने के कारण पिछड़ जाता है। बीमार बालक में भाषा बोलने के लिए (सीखने की प्रेरणा का अभाव भी पाया जाता है।

(d) यौन (Sex) : मैकनील का विचार है कि प्रत्येक आयु के बालक भाषा-विकास ग में बालिकाओं से पीछे रहते हैं। लड़कियों का शब्द-भण्डार, वाक्य में शब्दों की संख्या, – शब्द-चयन और वाक्य-प्रयोग आदि में लड़कों से अच्छा होता है। लड़कियाँ लड़कों की जा अपेक्षा जल्दी बोलना सीखती हैं।

(e) सामाजिक अधिगम के अवसर (Social Learning Opportunity) : बालक को – भाषा सीखने के लिए सामाजिक अवसर जितने ही अधिक प्राप्त होते हैं या जिन परिवार म बच्चे अधिक होते हैं, उन परिवार के बच्चे भाषा बोलना जल्दी सीख जाते हैं, क्योंकि पूसर बच्चे को सुनकर उनका अनुकरण करने के अवसर अधिक प्राप्त होते हैं।

जब परिवार में बच्चे न हों तो माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बालक को पड़ोस क बच्चों के साथ खेलने का अवसर दें जिससे कि बच्चा दूसरे बच्चों का अनुकरण करके भाषा जल्दी सीख जाय।

दशन (Guidance) : बालकों की भाषा के विकास के लिए माता-पिता और का आदि का निर्देशन भी आवश्यक है। बालक की भाषा उतनी ही अच्छी विकसित जितने अच्छे उसके सामने मॉडल प्रस्तुत किये जाते है। | (Motivation): अभिभावकों को चाहिए कि वे बालकों को हमेशा सीखने करते रहें। अभिभावक को बालकों के रोने पर वह चीज उपलब्ध नहीं जसक लिए वह रो रहा है तथा बालक यदि संकेत और हाव-भाव क । ता भी उपलब्ध न कराएँ, क्योंकि इस प्रकार बालक शब्दों को अध्यापकों आदि का निर्देशन भ क) (g) प्रेरणा (Motivation) : आ के लिए प्रेरित करते रहे। अ किराना चाहिए जिसके लिए प्रयोग में कोई चीज माँगे ता सीखने के लिए प्रेरित होंगे।

(h) सामाजिक आर्थिक स्थिति (Socio-Economic Status) : ऐसे बालक जिसक सामाजिक आर्थिक स्तर उच्च रहता है, निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर वाले बालकों की अपेक्षा भाषा ज्ञान में आगे होता है। उच्च सामाजिक स्तर वाले बालक पहले बोलना अधिक बोलना व अच्छा बोलना अपेक्षाकृत शीघ्र सीखते हैं।

(i) शारीरिक स्वास्थ्य व शरीर रचना (Physical Health and Body Structures जो बच्चे स्वस्थ, निरोगी होते हैं उनका भावात्मक विकास शीघ्र होता है। शारीरिक रचन भी भाषा विकास को प्रभावित करती है। शरीर रचना या शारीरिक रचना से अभिप्राय स्वरयंत्र, तालु, जीभ, दाँतों आदि की बनावट से है, क्योंकि ये अंश बोलने की क्रिय में भाग लेता है। ____6) व्यक्तिगत विभिन्नताएँ (Individual Differences) जो बच्चे उत्साही होते। उनमें शान्त प्रकृति के बच्चों की अपेक्षा भाषा शीघ्र विकसित होती है।

(K) कई भाषाओं का प्रयोग (Bilingualism): छोटे बच्चों के माता-पिता की भाष यदि अलग-अलग हो, तो बच्चे में भाषा का विकास अवरुद्ध होकर मन्द गति से होता है |

() पारिवारिक संबंध (Family Relationship) जिन बच्चों के पारिवारिक संबं अच्छे नहीं होते हैं उनमें अनेक भाषा संबंधी दोष उत्पन्न हो जाते हैं। परिवार का आका भी भाषा विकार को प्रभावित करता है। जब परिवार का आकार छोटा होता है तब माता-पिता बालकों की ओर अधिक ध्यान देते हैं। फलस्वरूप उनमें भाषा का विकार शीघ्र होता है। परन्तु यदि माता-पिता ध्यान नहीं देते तो बच्चों में भाषा का विकास दे से होता है।

बालकों की भाषा में सुधार के सुझाव Suggestions for Improving Children’s Speech

बालकों की भाषा में सुधार के सुझाव निम्नलिखित हैं-

(a) बालकों को उसकी उम्र के बराबर के बच्चों में अक्सर रखना चाहिए और बच्च को हमउम्र बच्चों से बात करने के लिए उत्साहित करना चाहिए।

(b) बच्चों की भाषा की ओर ध्यान आकर्षित कर उनमें भाषा के प्रति रुचि उत्पन् करनी चाहिए।

4) बच्चों की त्रुटिपूर्ण, दोषपूर्ण या विकारयुक्त वाणी की आलोचना नहीं कर चाहिए, ताकि बच्चों में भाषा बोलने के प्रति आत्मविश्वास जागृत हो।

(d) बालकों को कठोर नियंत्रण में नहीं रखना चाहिए। (e) जिन बालकों में भाषा-दोष हो उनका उपहास नहीं करना चाहिए।

(6) बालकों में अच्छी वाणी के विकास के लिए उनके सामने अच्छी भाषा का प्रय करना चाहिए ताकि बच्चे वाक्यों का अनुसरण करें। भाषा सीखने के साधन (a) अनुकरण (Imitation) ___(b) खेल (Play) (c) कहानी सुनना (Listening of Stories) (d) वार्तालाप तथा बातचीत (Talking) (e) प्रश्नोत्तर (Question -Answer)

विचार Thought

भाषा-सम्प्रेषण के माध्यम कौशल आदि सीखाने का प्रयास क पण के माध्यम से बालक नये भाव, दृष्टिकोण, सूचना, व्यवहार तथा ल सीखाने का प्रयास करता है। यह प्रक्रिया तभी संभव होती है जब शिक्षक और बालक क लक के उस भाषा का ज्ञान हो। सम्प्रेषण को समझने के बाद बालक अपनी स न अनक्रिया विचार के रूप में व्यक्त करता है।

विचार के प्रकार

शाब्दिक विचार मौखिक विचार

दृष्टि-विचार → मौखिक दृष्टि विचार

लिखित विचार

अशाब्दिक विचार शारीरिक भाषा कूट भाषा

परीक्षोपयोगी तथ्य

 > भाषा विकास से तात्पर्य एक ऐसी क्षमता से होती है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने भावों, विचारों तथा इच्छाओं को दूसरे तक पहुँचाता है तथा दूसरों की इच्छाओं एवं

भावों को ग्रहण करता है।

> मनोवैज्ञानिकों ने भाषा विकास के चरणों की व्याख्या मोटे तौर पर दो भागों में बाँटकर किया है-

बोलने की तैयारी और वास्तविक भाषा की अभिव्यक्तियाँ। बोलने की तैयारी में क्रन्दन, बबलाना एवं हाव-भाव शामिल है। वास्तविक भाषा की अभिव्यक्ति में आकलन शक्ति, उच्चारण, शब्द-भण्डार इत्यादि शामिल है।

शिक्षा मनोवैज्ञानिकों तथा विकासात्मक मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भाषा विकास एक खास क्रम में होता है। इस क्रम का पहला चरण ध्वनि की पहचान तथा अंतिम चरण भाषा विकास की पूर्णावस्था है।

बालकों के भाषा विकास कई कारणों से प्रभावित होते हैं जिनमें बुद्धि, स्वास्थ्य, बान-भिन्नता, सामाजिक-आर्थिक स्तर, परिवार का आकार, बहुजन्म, एक से अधिक भाषा-उपयोग, साथियों के साथ संबंध तथा माता-पिता द्वारा प्रेरणा प्रधान है।

बालका में दो तरह के शब्दावली विकसित होते हैं सामान्य शब्दावली तथा विशिष्ट शब्दावली।

भाषा-विकास में घर पर माता-पिता द्वारा दी गई अनौपचारिक शिक्षा तथा स्कूल में ससका द्वारा दी गई अौपचारिक शिक्षा का काफी महत्व होता है।

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Buddhi Nirman Avm Bahuayami Buddhi Study Material : आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book Notes Chapter 7 Buddhi Nirman Ttha Bahuayami Buddhi Study Material in Hindi PDF Download करने जा रहे है | अभ्यर्थियो को बता दे की Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book के सभी Chapter in PDF में आपको निचे दी गयी UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book and Notes in Hindi PDF में मिल जायेंगे |

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बुद्धि-निर्माण तथा बहुआयामी बुद्धि

बद्धि (Intelligence) वेशलर (IVechsler, 1939) के अनुसार, “बुद्धि एक समुच्चय या सार्वजनिक क्षमता है, जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिंतन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है।”

 > रॉबिन्सन तथा रॉबिन्सन (Robinson & Robinson, 1965)के अनुसार, “बुद्धि से तार पर्य संज्ञानात्मक व्यवहारों (Cognitive Behaviours) के संपूर्ण वर्ग से होता है, जो व्यक्ति में सूझ-बूझ द्वारा समस्या समाधान करने की क्षमताएँ, नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की क्षमताएँ, अमूर्त रूप से सोचने की क्षमता तथा अनुभवों  से लाभ उठाने की क्षमता को दिखाता है।

> स्टोडार्ड (Stoddard, 1941) के अनुसार, “बुद्धि उन क्रियाओं को समझने की क्षमता है जिनकी विशेषताएँ हैं—कठिनता, जटिलता, अमूर्त्तता, मितव्ययिता, किसी लक्ष्य के प्रति अनुकूलनशीलता, सामाजिक मान (Value) और मौलिकता की उत्पत्ति और कुछ परिस्थिति में वैसी क्रियाओं को करना जो शक्ति की एकाग्रता तथा सांवेगिक कारकों का प्रतिरोध (Resistance) दिखाता है।”

> पी. ई. वर्नन (P. E. Vernon, 1969) बुद्धि संप्रत्यय के तीन अर्थ बतलाये हैं जो लोकप्रिय और आकर्षक दिखते हैं। ये अर्थ इस प्रकार हैं-

(a) जननिक क्षमता के रूप में बुद्धि (Intelligence as Genetic Capacity): इस अर्थ में बुद्धि पूर्णतः वंशागत (Inherited) होती है। इसे हेब (Hebb) ने बुद्धि ‘ए’ (Intelligence A)कहा है, जो स्पष्टतः बुद्धि का एक जीनोटाइपिक (Genotypic)प्रकार है तथा इसमें बुद्धि को व्यक्ति का एक आनुवंशिक गुण माना जाता है।

(b) प्रेक्षित व्यवहार के रूप में बुद्धि (Intelligence as Observed Behaviour): इस अर्थ में बुद्धि व्यक्ति के जीन एवं वातावरण की अंतःक्रिया (Interaction) का परिणाम होता है तथा जिस सीमा तक व्यक्ति बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से व्यवहार करता है, उस सीमा तक उसे बुद्धिमान समझा जाता है। बुद्धि का यह अर्थ फीनोटाइपिक (Phenotypic) प्रारूप का है। उसे हेब (Hebb) ने बुद्धि ‘बी’ (Intelligence ‘B’) कहा है।

(c) परीक्षण प्राप्तांक के रूप में बुद्धि (Intelligence as a Test Score) इस अर्थ में बुद्धि की एक क्रियात्मक परिभाषा दी गई। इस अर्थ में बुद्धि वही है जो बुद्धि परीक्षण मापता है। इसे हेब (Hebb) ने बुद्धि ‘सी’ (Intelligence ‘C’) की संज्ञा दी है।

बुद्धि के प्रकार Type of Intelligence

ई. एल. थॉर्नडाइक (E. L. Thorndike) ने बुद्धि के तीन प्रकार बताये हैं20 सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) सामाजिक बुद्धि से तात्पर्य वैसी सामान्य

मानसिक क्षमता से होता है जिसके सहारे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को ठीक ढंग : समझता है तथा व्यवहारकशलता भी दिखाता है। ऐसे लोगों का सामाजिक संबंध (Socia Relationship) अच्छा होता है।

-ईवर एवं वालरस्टीन (Drever & Vallerstein) के अनुसार, “सामाजिक बुद्धि बुद्धि का एक प्रकार है जो किसी व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों एवं सामाजिक संबंधों के प्रति व्यवहार में निहित होता है।” जिन व्यक्तियों में सामाजिक बुद्धि होती है उनमें अन्य लोगों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवहार करने की क्षमता, अच्छा आचरण करने की क्षमता एवं समाज के अन्य लोगों से मिल जुलकर सामाजिक कार्यों में हाथ बँटाने की क्षमता अधिक होती है। सामाजिक बुद्धि एक ऐसी बुद्धि है जो व्यक्ति को सामाजिक परिस्थितियों में समायोजित होने में मदद करती है।

(ii) अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) : अमूर्त्त विषयों के बारे में चिंतन करने की क्षमता को ही अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) कहा जाता है। ऐसी बुद्धि में व्यक्ति शब्द, प्रतीक तथा अन्य अमूर्त्त चीजों के सहारे अच्छे से चिंतन कर लेता है। इस प्रकार की क्षमता दार्शनिकों, कलाकारों, कहानीकारों आदि में अधिक होती है।

टरमैन (Terman) के अनुसार, अमूर्त्त बुद्धि का महत्व छात्रों में विद्यमान अन्य दूसरे तरह की बुद्धि से अधिक होती है, अमूर्त्त बुद्धि को कुछ लोगों ने सैद्धान्तिक बुद्धि (Theoretical Intelligence) भी कहा है।

जिन व्यक्तियों में अमूर्त्त बुद्धि अधिक होती है वे सफल कलाकार, पेंटर, गणितज्ञ एवं कहानीकार आदि बनते हैं।

(iii) मूर्त्त बुद्धि (Concrete Intelligence) मूर्त्त बुद्धि से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता से होता है जिसके सहारे व्यक्ति मूर्त या ठोस वस्तुओं के महत्व को समझता है, उनके बारे में सोचता है तथा अपनी इच्छा एवं आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन लाकर उन्हें उपयोगी बनाता है। इसे व्यावहारिक बुद्धि (Practical Intelligence) भी कहा जाता है।

बुद्धिलब्धि  Intelligence Quotient

बुद्धि मापने के लिए सबसे पहला बुद्धि परीक्षण बिने (Binet)तथा साइमन (Simon) ने 1905 में विकसित किया। इस परीक्षण में बुद्धि को मानसिक आयु (Mental Age) के रूप में मापकर अभिव्यक्त किया गया। 1916 ई० में बिने साइमन परीक्षण का सबसे महत्वपूर्ण संशोधन टरमैन (Terman ने स्टैंडफोर्ड विश्वविद्यालय में किया। इसी संशोधन में बुद्धिलब्धि (IQ) के संप्रत्यय (Concept) का जन्म हुआ और बुद्धि को मापने में मानसिक आय की जगह र बुद्धिलब्धि (IQ) का प्रयोग होने लगा। बद्धिलब्धि (IQ) मानसिक आयु (Mental Age)तथा तैथिक आयु (Chronological Age) का एक ऐसा अनुपात है जिसमें 100 से गुणा कर प्राप्त किया जाता है। इसलिए इसे अनुपात बुद्धिलब्धि (Ratio IQ) भी कहा जाता है।

जहाँ MA मानसिक आय, CA तैथिक आय वाला > मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धिलब्धि के भिन्न भिन्न मानों (Values) के अर्थ को स्पष्ट एवं वस्तुनिष्ठ करने लिए निम्नलिखित मान तथा उनके अर्थ दिये हैं> मनोवैज्ञानिक ने 25 30 वर्ष या इससे ऊपर की आयु के व्यक्ति के बुद्धि को मापने के लिए बुद्धि की जगह एक नयी धारणा (Concept) का प्रयोग किया, जिसे विचलन बुद्धिलब्धि (Deviation IQ) की संज्ञा दी गई है।

विचलन बुद्धिलब्धि ज्ञात करने के लिए पहले मानक प्राप्तांक ज्ञात किया जाता है और फिर इस प्राप्तांक को एक मापनी (Scale) (जिसका माध्य (Mean) 100 तथा मानक विचलन (Standard Deviation) 15 होता है) में बदल दिया जाता है।

बुद्धिलब्धि के मान तथा उनके अर्थ

बुद्धिलब्धि के मान (Value of IQ)

अर्थ (Meaning) 140 या इससे अधिक

प्रतिभाशाली (Genius) 120 से 139 तक

अतिश्रेष्ठ (Very Superior) 110 से 119 तक

श्रेष्ठ (Superior) 90 से 109 तक

सामान्य (Normal) 88 से 89 तक

मन्द (Dull) 70 से 79 तक

सीमांत मन्दबुद्धि (Borderline Feeble Minded) 60 से 69 तक

मूढ़ बुद्धि (Moron) 20 से 59 तक

हीन बुद्धि (Imbecile) 20 या इससे कम बुद्धि

जड़ बुद्धि (Idiot)

उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को एक बुद्धि परीक्षण पर 60 अंक प्राप्त हुए। उसी परीक्षण को उस व्यक्ति के समान उम्र के व्यक्तियों पर (N= 100) क्रियान्वयन करने । पर माध्य = 30 तथा मानक विचलन = 10 प्राप्त हुआ।

Xमानक प्राप्तांक (Standard Score) A,

बुद्धि की माप Measurement of Intelligence

बुद्धि की माप बुद्धि परीक्षण (Intelligence Test) द्वारा की जाती है। सबसे पहला बुद्धि परीक्षण बिने (Binet)तथा साइमन (Simon) ने मिलकर 1905 में बनाया था। यह बुद्धि परीक्षण आनेवाले वर्षों में मनोवैज्ञानिकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसमें भी कई मनोवैज्ञानिक द्वारा संशोधन किया गया।

इस परीक्षण का सबसे महत्वपूर्ण संशोधन टरमैन (Terman) द्वारा 1916 में स्टैडफोर्ड विश्वविद्यालय (Standford University) में किया गया। इस संशोधन में सबसे

पहली बार पिलब्धि की धारणा का वृद्धि मापने के सूचक (Index) के रूप में प्रयोग किया |

इसके बाद अनेक मनोवैज्ञानिकों जैसे वेश्लर (Mechsler), अर्थर (Arthur), कैटेल M (Cattees) रेवेन (Ranen) गडएनफ (Goodenough) आदि मनोवैज्ञानिको ने भी बुद्धि परीक्षण बनाकर बुद्धि मापन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत ।। में भी कई मनोवैज्ञानिको ने बुद्धि परीक्षण का निर्माण किया है। इनमें डॉ. एस है जलोटा, डॉ मोहनचंद जोशी, डॉ. एस एस मुहसिन आदि प्रमुख है। इनमें मह मे वपूर्ण बुद्धि परीक्षण निम्नलिखित है-

  1. विने साइमन परीक्षण (Binet Simon Test) इस परीक्षण का निर्माण बिने तथा पर साइमन ने फ्रेंच भाषा में 1005 में किया। यह एक प्रकार का वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण पर (Individual Intelligence Test) 81
  2. पेशलर बद्धि परीक्षण (Techsler Intelligence Test) वेश्लर ने बुद्धि मापने । के दो नियम दिये। वयस्कों की बुद्धिमापने के लिए 193) में एक मापक तैयार किया, जिसका नाम वेश्चर वेलेब्यू मापनी रखा गया। इस परीक्षण में दो फार्म थे, दोनों में 10 10 वि उपपरीक्षण (Subtest)थे। 10 में 5 शाब्दिक मापनी (Terbal Scale) थे, और 5 क्रिया मक मापनी (Performance Scale) थे। इस परीक्षण का 1955 में संशोधन किया गया के और इसका नाम वेश्लर वयस्क बुद्धि मापनी AIAIS) रखा गया। 1981 में इसमें फिर जि संशोधन कर इसका नाम |AIS R रखा गया। इस परीक्षण में वृद्धि की माप तीन तरह ब की बुद्धिलब्धि (IQ) द्वारा होती है।

X शाब्दिक मापनी का बुद्धिलब्धि (IQ)

क्रियात्मक मापनी का बुद्धिलब्धि (IQ)

* सम्पूर्ण मापनी का बुद्धिलब्धि (IQ)

इसके अंतर्गत 16-01 वर्ष के व्यक्तियों की बुद्धि का मापन किया जाता है। वेश्लर ने बच्चों की बुद्धि मापने के लिए दूसरा परीक्षण 1919 में किया, जिसे । ‘वेश्लर’ बुद्धि मापनी बच्चों के लिए (IVISC) कहा गया। इस मापनी द्वारा 6-16 वर्ष तक के बच्चों की बुद्धि की माप की जाती है। इस परीक्षण का संशोधन 1974 में किया गया, इसे ||ISC-Rकहा गया।

  • कैटेल संस्कृतिमुक्त बुद्धि परीक्षण (Cattell Culture Free Intelligence Test) इस परीक्षण का निर्माण कैटेल (Cattel) ने किया है, जिसमें तीन मापक है. मापक-1-1-8 वर्ष के बच्चे तथा मानसिक दोष वाले वयस्क। मापक-11-8-13 वर्ष की आयुवाले बच्चे और औसत वयस्क के लिए।  मापक-1, हाई स्कूल के छात्रों, कॉलेज के छात्रों तथा 14 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों पर।

रेवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज (Raren’s Progressive Matrices) इस परीक्षण का निर्माण रैवेन (Raven) ने 1938 में किया था। इस परीक्षण के दो फार्म है एक बच्चो के लिए तथा दूसरा वयस्कों के लिए। बच्चों के लिए प्रयोग होनेवाले फार्म को रंगीन

प्रोग्रेसिव मैटिसेज (Coloured Progressive Matrices) कहा जाता है तथा वयस्कों के का प्रयोग होनेवाले मैट्रिसेज को स्टैण्डर्ड प्रोग्रेसिव मेट्रिसेज (Standard Progressive Matrices) कहा जाता है।

कछ प्रमुख भारतीय बुद्धि परीक्षण (Some Important Indian Intelligence Posts) बन्दि मापने का प्रयास भारतीय मनोवैज्ञानिकों द्वारा भी काफी अधिक किया गया है। इनमें प्रमुख है-डॉ. एम. सी. जोशी द्वारा मानसिक योग्यता परीक्षण 1960, डॉ प्रयाग मेहता द्वारा सामूहिक बुद्धि परीक्षण (1962), डॉ. आर. के. टंडन द्वारा सामहिक मानसिक योग्यता परीक्षण (1971), प्रो. आर. के. ओझा तथा प्रो. राय चौधरी द्वारा वाचिक बुद्धि परीक्षण (1971), डॉ. एस. एस. जलोटा द्वारा मानसिक योग्यता की संशोधित सामूहिक परीक्षा (1972) तथा डॉ. एस. एस. मुहसिन द्वारा सामान्य बुद्धि परीक्षण।

बुद्धि परीक्षण के प्रकार Type of Intelligence Test

मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की माप के परीक्षण को दो कसौटी के आधार पर वर्गीकृत किया है-

1.क्रियान्वयन (Administration) के तरीकों (Mode) के आधार पर क्रियान्वयन के तरीकों के आधार पर बुद्धि परीक्षण दो प्रकार का होता है। एक तो वे परीक्षण हैं जिनका क्रियान्वयन एक समय में एक ही व्यक्ति पर किया जा सकता है। इस प्रकार के बुद्धि परीक्षण को मनोवैज्ञानिकों ने वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण की संज्ञा दी है। सबसे पहला वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण बिने (Binet) तथा साइमन (Simon) द्वारा 1905 में विकसित किया गया है। इसे बिने साइमन परीक्षण कहा जाता है।

कोह ब्लॉक डिजाइन परीक्षण (Koh Block Design Test), पास अलाँग परीक्षण (Pass Along Test) तथा घन रचना परीक्षण (Cube Construction Test) भी वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण के उदाहरण हैं।

क्रियान्वयन के आधार पर दूसरे प्रकार के बुद्धि परीक्षण वे हैं जिनको एक समय में एक से अधिक व्यक्ति, अर्थात जिनको व्यक्तियों के समूह में किया जा सकता है। इस प्रकार के परीक्षण को सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group Intelligence Test) की संज्ञा दी गई है। आर्मी अल्फा परीक्षण (Army Alpha Test) तथा आर्मी बीटा परीक्षण (Army Beta Test) इत्यादि सामूहिक बुद्धि परीक्षण के अंतर्गत आते हैं।

2. एकांशों (Items) के स्वरूप के आधार पर : बुद्धि परीक्षणों को एकांश के स्वरूप के आधार पर निम्नांकित चार भागों में बाँटा गया है

a) शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Verbal Intelligence Test): ऐसे बुद्धि परीक्षण जिनमें लिखित शब्दों (Words) अर्थात लिखित भाषा का प्रयोग निर्देश देने तथा परीक्षण के एकाशा या प्रश्नों में किया जाता है. शाब्दिक बद्धि परीक्षण कहलाता है। शाब्दिक बुद्धि परीक्षण को निम्नांकित दो भागों में बाँटा गया है-

* शाब्दिक वैयक्तिक वृद्धि परीक्षण (Verbal Individual Intelligence Test)

शाब्दिक समूह वृद्धि परीक्षण (Verbal Group Intelligence Test)

(b) अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Non-Verbal Intelligence Test) : ऐसे बुद्धि को परीक्षण जिसमें भाषा (Language) अर्थात शब्दों, वाक्यों तथा संख्या का प्रयोग निर्देशन (Instruction) में निश्चित रूप से होता है, परन्तु उनके एकांशों (Items) में प्रयोग नहीं होता है। इसलिए इसका प्रयोग छोटे बच्चों, कम पढ़े लिखे व्यक्तियों तथा मानसिक रूप से मंदित बच्चों के लिए आसानी से किया जा सकता है।

(c)क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण (Performance Intelligence Test) फ्रीमैन (Freeman) के अनुसार, क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण वैसे बुद्धि परीक्षण को कहा जाता है, जिनमें भाषा का प्रयोग निर्देश (Instruction) में भी हो सकता है या चित्राभिनय (Pantomine तथा हाव भाव (Gesture) द्वारा निर्देश देने पर भाषा का प्रयोग नहीं भी हो सकता है। क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण की निम्नांकित तीन विशेषताएँ हैं-

★ इस परीक्षण के निर्देश में भाषा या संख्या का प्रयोग कभी होता है और कभी नहीं भी होता है।

★ इस परीक्षण के एकांश (Items) में भाषा का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं होता।

★ इस परीक्षण में व्यक्ति के सामने वस्तुओं को वास्तविक रूप में उपस्थित किया थ जाता है और उसमें जोड़-तोड़ करना पड़ता है।

(d)अभाषायी बुद्धि परीक्षण (Non-Language Intelligence Test) अभाषायी बुद्धि परीक्षण वैसे परीक्षण को कहा जाता है जिसमें भाषा का प्रयोग एकांश (Items)और निर्देश में नहीं होता है। प्रायः इस तरह के परीक्षण में निर्देश हाव-भाव (Gesture), निर्देशन (Demonstration)तथा चित्राभिनय (Pantomine) द्वारा दिया जाता है। अभाषायी बुद्धि परीक्षण के निम्नांकित गुण हैं

★ ऐसे परीक्षणों में निर्देश (Instruction) हाव-भाव (Gesture), चित्राभिनय (Pantomine) तथा निर्देशन (Demonstration) द्वारा दिया जाता है, न कि > किसी प्रकार की भाषा द्वारा।

★ इन परीक्षणों के एकांश में भाषा का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं होता।

★ इन परीक्षणों के परीक्षार्थियों (Testees) को कुछ वस्तुएँ (Objects) जैसा कि क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण में दिया जाता है, नहीं दिया जाता है। बद्धि के सिद्धान्त Theories of Intelligence में एक कारक सिद्धान्त (Uni-factor Theory) : इस सिद्धान्त का प्रतिपादन बिन (Binet) ने किया और इस सिद्धान्त का समर्थन तथा इसको आगे बढ़ाने का श्रेय टरमैन और स्टर्न जैसे मनोवैज्ञानिकों को है।

इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि को एक शक्ति या कारक के रूप में माना गया है। इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि, वह मानसिक शक्ति है जो व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों का संचालन करती है और व्यक्ति के समस्त व्यवहारों को प्रभावित करती है। वर्तमान में इस सिद्धान्त को कोई नहीं मानता है।

2.द्वि कारक सिद्धान्त (Two-factor Theory) इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन (Spearman)है। इनके अनुसार बुद्धि मे दो प्रकार की मानसिक योग्यताओं की आवश्यकत

होती है |  प्रथम, सामान्य मानसिक योग्यता (General Mental Ability G), द्वितीय, शिष्ट मानसिक योग्यता (Specific Mental Ability-S)।

सामान्य योग्यता सभी प्रकार के मानसिक कार्यों में पायी जाती है, जबकि विशिष्ट मानसिक योग्यता केवल विशिष्ट कार्यों से (S, ही सम्बन्धित होती है। प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य योग्यता के अतिरिक्त कुछ न कुछ विशिष्ट योग्यताएँ पायी जाती हैं। एक व्यक्ति में एक विशिष्ट योग्यता भी हो सकती है और एक से अधिक विशिष्ट योग्यताएँ भी हो सकती हैं।

दिये हये चित्र में ओवरलैप करने वाला सम्पूर्ण क्षेत्र G कारक का प्रतिनिधित्व कर रहा है। शेष दोनों परीक्षणों का स्वतन्त्र क्षेत्र S, और S, द्वारा प्रदर्शित किया गया है। उपर्युक्त चित्र से यह स्पष्ट है कि विशिष्ट योग्यताएँ एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं तथा सामान्य योग्यता की आवश्यकता भी इन विशिष्ट योग्यताओं में पड़ती है।

प्रतिदर्श (नमूना) सिद्धान्त (Sampling Theory) इस सिद्धान्त का प्रतिपादन थॉम्प्सन (Thompson) ने किया। थॉम्प्सन ने अपने प्रतिदर्श सिद्धान्त का प्रतिपादन स्पीयरमैन के द्वि कारक सिद्धान्त के विरोध में किया।

> थॉम्प्सन के अनुसार, व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है। परन्तु, इन स्वतंत्र योग्यताओं का क्षेत्र सीमित होता है। यदि कोई एक बुद्धि परीक्षण भरवाया जाये तो बौद्धिक तत्वों का एक विशिष्ट प्रतिदर्श ही सामने आता है। इसी प्रकार से यदि दूसरा परीक्षण भरवाया जाये तो बौद्धिक तत्वों का एक भिन्न प्रतिदर्श उस परीक्षण के सामने आयेगा।

विभिन्न संज्ञानात्मक अथवा बौद्धिक परीक्षणों में जो धनात्मक सह संबंध पाये जाते हैं वह विभिन्न प्रतिदर्थों के अथवा योग्यताओं के नमूने की ओवरलैपिंग से स्पष्ट होते हैं।

चित्र में छोटे वृत्त विशिष्ट कारकों अथवा मानसिक योग्यताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि बड़े दोनों वृत्त दो परीक्षणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। परीक्षण A से आठ विशिष्ट कारकों के प्रतिदर्श प्रदर्शित किये गये हैं, जबकि B से ग्यारह विशिष्ट कारकों के प्रतिदर्शों का प्रदर्शन किया गया है। क्योंकि दोनों परीक्षणों में छह विशिष्ट कारक सामान्य हैं अतः इनमें धनात्मक सह संबंध है।

4.. समूह कारक सिद्धान्त (Group Factor Theory) इस सिद्धान्त के प्रतिपादक पटन (Thurston) है। थर्स्टन का सिद्धान्त बुद्धि का एक महत्वपूर्ण और मात्रात्मक सिद्धान्त है। थर्स्टन ने अपने कारक विश्लेषण (Factor Analysis) के आधार पर निम्न 7 मौलिक मानसिक योग्यताओं का पता लगाया है-

पाचिक भाषिक योग्यता (Verbal Ability) यह वह योग्यता है जिसकी सहायता व्याक्त शाब्दिक विचारों को समझता और उनका उपयोग करता है।

(b) सख्यात्मक योग्यता (Number Ability) यह वह योग्यता है जिसके द्वारा व्यक्ति रण गणितीय प्रकार्यों जैसे-जोड़ना, घटाना, गुणा, भाग आदि को करता है।

वस्त प्रेक्षण योग्यता (Spatial Ability) इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति वस्तु प्रेक्षण करता है तथा वस्तु प्रेक्षण सम्बन्धों को समझता है, जैसे ज्यामितीय समस्याओं में।

((d) प्रत्यक्षपरक योग्यता (Perceptual Ability) इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति वस्तुओं को शीघ्र पहचानता है तथा उनका शुद्ध प्रत्यक्षीकरण करता है। जैसे पढ़ने के शब्दों को पहचानना।

1) स्पति योग्यता (Memorn Ability) इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति अधिगम B करता है तथा प्राप्त सूचना का धारण करता है।

(O तार्किक योग्यता (Reasoning Ability) इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति अमूर्त संबंधों का प्रत्यक्षीकरण करता है तथा उनका उपयोग करता है।

(g) शाब्दिक योग्यता (Word Ability) इस योग्यता के द्वारा शब्दों के संबंध में व्यक्ति चिन्तन करता है। थर्स्टन के बाद के अध्ययनों के आधार पर तर्कशक्ति में दो योग्यताएँ मानी गयी हैं—

आगमन योग्यता (Inductive Ability) और निगमन योग्यता : (Deductive Ability)

गिलफोर्ड का सिद्धान्त (Guilford’s Theory) गिलफोर्ड (Guilford) ने बौद्धिक योग्यताओं के 5 मुख्य समूह बतलाये है

ka) संज्ञान (Cognition) इस बौद्धिक योग्यता में खोज, पुनर्योज जैसी योग्यताएँ सम्मिलित है।

(b) अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) यह वह बौद्धिक योग्यताएँ हैं जिसके द्वारा एक व्यक्ति प्राप्त सूचना का उपयोग इस प्रकार करता है कि उपयुक्त उत्तर दे सके।

(c) अपसारी चिंतन (Divergent Thinking) : इस बौद्धिक योग्यता के द्वारा व्यक्ति विभिन्न दिशाओं में चिन्तन करता है या खोज करता है।

(d) स्पति (Memory): इस बौद्धिक योग्यता के द्वारा व्यक्ति संज्ञान (Cognition के द्वारा जो कुछ ग्रहण करता है, उसका धारण करता है।

(e) मूल्यांकन (Evaluation): इस योग्यता के द्वारा व्यक्ति, शुद्धता और उपयुक्तता आदि के संबंध में निर्णय लेता है।

6. पदानुक्रमिक सिद्धान्त (Hierarchical Theory) : इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन के विचारों के समर्थक रहे हैं। इनमें वरनन (Vernon) का नाम प्रमुख है। इस सिद्धान्त में क्रमबद्धता के आधार पर सामान्य मानसिक योग्यता के दो मुख्य वर्ग बताये गये हैं—प्रथम वर्ग में बुद्धि के प्रायोगिक, शारीरिक कारक हैं तथा द्वितीय वर्ग में मौखिक, सांख्यिकी, शैक्षिक इत्यादि कारक हैं। इन कारकों के आगे क्रम में विशिष्ट मानसिक योग्यताओं से सम्बन्धित कारक हैं। इन कारकों का सम्बन्ध विभिन्न ज्ञानात्मक क्रियाओं से है। यह सिद्धान्त भी कारक विश्लेषण (Factor Analysis) पर आधारित है।

मकरोल का त्रिस्तरीय मॉडल (Carroll’s Three Stratum Model): जॉन बी कैरोल (John B Carroll) ने बुद्धि का त्रिस्तरीय मॉडल विकसित किया। इस मॉडल के अनुसार मानसिक कौशल के तीन स्तर बतलाए गये हैं. सामान्य (General), विस्तृत (Broad), कौशल (Mental Skills)। यह एक समाकलानात्मक मॉडल है, जिसमें स्पीयरमैन

Spearman), थर्टन (Thurston) तथा केटेल हॉर्न के सिद्धातों के तत्वों को समन्वित किया गया है।

General (Stratum II

जिन्नत तरल ठोस सामान्य विस्तृत विस्तृत विस्तृत विस्तृत गति संसाधन Broad बन्दि बन्दि स्मृति एवं दष्टि श्रवण पन प्राप्ति मज्ञानात्मक प्रतिक्रिया समय अधिगम प्रत्यक्षण प्रत्यक्षण क्षमता तीव्रता निगमन गति

(Stratum 1) की स्तर संज्ञानात्मक क्षमता के अध्ययन में व्यवहत संज्ञानात्मक, प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक तथा Narrow प्रगति कार्य (Stratum 1)

गार्डनर का बहबुद्धि सिद्धांत (Gardner’s Theory of Multiple Intelligence) गार्डनर ने इस सिद्धांत में यह स्पष्ट किया कि बुद्धि का स्वरूप एकाकी (Singular) न होकर बहकारकीय होता है। उनके इस सिद्धांत का आधार उनके द्वारा न्यूरोमनोविज्ञान (Neuropsychology) तथा मनोमितिक विधियों (Psychometric Method) के क्षेत्र में किये गये शोध हैं।

गार्डनर ने मुख्य रूप से सात प्रकार की बुद्धि का वर्णन किया। 1998 में उन्होंने इसमें 8वाँ प्रकार तथा 2000 में उन्होंने नौवाँ प्रकार जोड़ा। इस प्रकार वर्तमान में गार्डनर के अनुसार बुद्धि के 9 प्रकार हैं-

भाषाई बुद्धि (Linguistic Intelligence)

तार्किक गणितीय बुद्धि (Logical Mathematical Intelligence)

* स्थानिक बुद्धि (Spatial Intelligence)

* शारीरिक गतिक बुद्धि (Body-Kinesthetic Intelligence)

* सांगीतिक बुद्धि (Musical Intelligence)

व्यक्तिगत आत्मन् बुद्धि (Personal-Self Intelligence) व्यक्तिगत अन्य बुद्धि (Personal-others Intelligence)

प्रकृतिवादी बुद्धि (Naturalistic Intelligence)

अस्तित्ववादी बुद्धि (Existentialistic Intelligence)

स्टनबर्ग का सिद्धात (Sternberg’s Theory) स्टर्नबर्ग के अनुसार बुद्धि भिन्न भिन्न प्रकार के मूल कौशल (Basic Skills) या घटक में बँटी होती है। प्रत्येक घटक के आधार पर व्यक्ति को कुछ विशेष सुचनाएँ मिलती हैं, जिनको वह संसाधित करता है उनकी विवचना करता है और समस्या का समाधान करता है। स्टर्नबर्ग ने बुद्धि के त्रितंत्र का प्रतिपादन किया है। जो इस प्रकार है

(a)विश्लेषणात्मक वृद्धि (Analytical Intelligence) विश्लेषणात्मक बुद्धि से तात्पर्य कमा समस्या समाधान में समस्या को उसके विभिन्न अशों या भागों में बाँटकर समाधान करन की क्षमता से होता है। इस ढंग की क्षमता का मापन बुद्धि परीक्षणों तथा शैक्षिक मिन उपलब्धि परीक्षणों द्वारा होता है। इसे घटकीय बुद्धि भी कहा जाता है।

स्टर्नबर्ग के अनुसार विश्लेषणात्मक बद्धि में सूचना संसाधन क्षमता के कई इकाई जैसे किसी सूचना को संचित करने की क्षमता, उसका प्रत्याह्वान करने की क्षमता, सूचनाओं को अंतरित करने की क्षमता, समस्याओं के बारे में निर्णय लेने की क्षमता, अमूर्त चिंतन करने की क्षमता तथा चिंतन को निष्पादन में बदलने की क्षमता सम्मिलित होती है।

(b) सर्जनात्मक बद्धि (Creative Intelligence) सर्जनात्मक बुद्धि को अनुभवजन्य बुद्धि भी कहा जाता है। सर्जनात्मक बुद्धि में वैसे मानसिक कौशल सम्मिलित होते हैं, जिनकी आवश्यकता नयी समस्याओं के समाधान में पड़ती है तथा व्यक्ति इसमें किसी समस्या के नये समाधान पर पहुँचने की कोशिश करता है। इस तरह की बुद्धि में बदलते पर्यावरण या संदर्भ के समय अनुकूलन करने की क्षमता सम्मिलित होती है।

(c) व्यावहारिक बुद्धि (Practical Intelligence) : इस प्रकार की बुद्धि को__ संदर्भात्मक बुद्धि भी कहा जाता है। इस तरह की बुद्धि में वैसी क्षमता सम्मिलित होती

है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी जिंदगी में सूचनाओं को इस ढंग से उपयोग करने में सफल हो पाता है जिससे उसे अधिकाधिक लाभ हो पाता है। इस प्रकार की बुद्धि । में व्यक्ति में अपने वातावरण को एक खास ढंग से मोड़ने की क्षमता तथा परिवर्तित परिस्थिति के साथ अपने आप को ठीक ढंग से समायोजित करने की क्षमता इत्यादि… सम्मिलित होती है।

बहुआयामी बुद्धि Multidimensional Intelligence

> थर्स्टन एवं कैली नामक वैज्ञानिकों ने बताया कि बुद्धि का निर्माण प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के द्वारा होता है।

कैली के अनुसार, बुद्धि का निर्माण इन योग्यताओं से होता है—वाचिक योग्यता गामक योग्यता, सांख्यिकी योग्यता, यान्त्रिक योग्यता, सामाजिक योग्यता, संगीतात्मक योग्यता, स्थानिक सम्बन्धों के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता, रुचि और शारीरिक योग्यता।

थर्स्टन का मत है कि बुद्धि इन प्राथमिक मानसिक योग्यताओं का समूह होता है—प्रत्यक्षीकरण संबंधी योग्यता, तार्किक व वाचिक योग्यता, सांख्यिकी योग्यता स्थानिक या दृश्य योग्यता, समस्या समाधान की योग्यता, स्मृति संबंधी योग्यता आगमनात्मक योग्यता और निगमनात्मक योग्यता ।

परीक्षोपयोगी तथ्य

बुद्धि एक सामान्य मानसिक क्षमता (General Mental Ability) है। इसे कई तरह की क्षमताओं का एक संपूर्ण योग माना गया है जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ करता है, विवेकशील चिंतन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकार ढंग से समायोजन करता है।

थार्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार बतलाये हैं सामाजिक बुद्धि, मूर्त बुद्धि, अमूर्त्त बुद्धि

मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की अभिव्यक्ति बुद्धिलब्धि या IQ के रूप में की है।

मानसिक आयु (Mental Age)को तैथिक आयु (Chronological Age)से विभाजित करके उसमें 100 से गुणा करने के बाद जो मान (Value)प्राप्त होता है, उसे बुद्धिलब्धि कहा जाता है।

मानसिक आयु बुद्धिलब्धि =

– 100

तैथिक आयु

– बद्धि की माप भिन्न भिन्न तरह के परीक्षणों द्वारा की जाती है। इन परीक्षणों में बिने साइमन परीक्षण (Binet-Simon Test), वेशलर बुद्धि परीक्षण (Wechsler Intelligence Test), कैटेल संस्कृति मुक्त बुद्धि परीक्षण, रैवेन प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज इत्यादि मुख्य हैं।

मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि परीक्षणों को कई भागों में बाँटा है जिनमें प्रमुख है* शाब्दिक बुद्धि परीक्षण * अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण ★ क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण * अभाषाई बुद्धि परीक्षण मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरूप की व्याख्या करने के लिए दो तरह के प्रमुख सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है कारक सिद्धांत तथा प्रक्रिया प्रधान सिद्धांत । कारक सिद्धांत में स्पीयरमैन का सिद्धांत, थर्स्टन का सिद्धांत, थार्नडाइक एवं गिलफोर्ड का सिद्धांत तथा पदानुक्रमिक सिद्धांत को रखा गया है। – प्रक्रिया प्रधान सिद्धांत में पियाजे का सिद्धांत, स्टर्नबर्ग का सिद्धांत, जेन्सन का सिद्धांत प्रमुख है।

बहुकारक सिद्धांत में थार्नडाइक एवं गिलफोर्ड के सिद्धांत को रखा गया है। पियाजे के अनुसार, ‘बुद्धि एक ऐसी अनुकूली प्रक्रिया है जिसमें जैविक परिपक्वता का पारस्परिक प्रभाव तथा वातावरण के साथ की गई अंतःक्रिया, दोनों ही सम्मिलित होते हैं।’

पियाजे का मत था कि बौद्धिक विकास संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है जैसे–प्रकृति के नियम को समझना, व्याकरण के नियम को समझना तथा गणितीय नियमों को समझना इत्यादि ।

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बाल केन्द्रित तथा प्रगतिशील शिक्षा | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 6 Study Material in Hindi

बाल-केन्द्रित शिक्षा Child-Centered Education

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Bal Kendrit Shiksha Study Material : बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत उन्हीं शिक्षण विधियों को प्रयोग में लाया जाता है जो बालकों के सीखने की प्रक्रिया, महत्वपूर्ण कारक, लाभदायक व हानिकारक दशाएँ, रुकावटें, सीखने के वक्र तथा प्रशिक्षण इत्यादि तत्वों को सम्मिलित करती हैं तथा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित होती हैं।

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बाल केन्द्रित शिक्षा का श्रेय शिक्षा मनोविज्ञान को दिया जाता है। जिसका उद्देश्य बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उसकी अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करना है।

वर्ष 1919 में प्रगतिशील शिक्षा सुधारकों ने (कोलम्बिया विश्वविद्यालय) बालकों के हितों के लिए सीखने की प्रक्रिया के केन्द्र में बालक को रखने पर बल दिया अर्थात . अधिगम प्रक्रिया में केन्द्रीय स्थान बालक को दिया जाता है।

भारत में गिजभाई बधेका (गुजरात) ने डॉ. मारिया मॉण्टेसरी के शैक्षिक विचारों एवं विधियों से प्रभावित होकर बाल शिक्षा को एक नया आयाम (Dimension) प्रदान किया। उन्होंने 1920 ई० में बाल मन्दिर नामक संस्था की स्थापना की, जिसका केन्द्र बिन्दु उन्होंने बालक को रखा।

बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत बालक की शारीरिक और मानसिक योग्यताओं के विकास के आधार पर अध्ययन किया जाता है तथा बालक के व्यवहार और व्यक्तित्व में असामान्यता के लक्षण होने पर बौद्धिक दुर्बलता, समस्यात्मक बालक रोगी बालक, अपराधी बालक इत्यादि का निदान किया जाता है।

मनोविज्ञान के ज्ञान के अभाव में शिक्षक मार पीट के द्वारा इन दोषों को दूर करने का प्रयास करता है, परन्तु बालकों को समझने वाला शिक्षक यह जानता है कि इन दोषों का आधार उनकी शारीरिक, सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं में ही कहीं न कहीं है। वैयक्तिक भिन्नता की अवधारणा ने शिक्षा और शिक्षण प्रक्रिया में व्यापक परिवर्तन किया है। इसी के कारण बाल केन्द्रित शिक्षा का प्रचलन शुरू हुआ।

बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम विद्यार्थी को शिक्षा प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु माना जाता है। बालक की रुचियों, आवश्यकता एवं योग्यताओं के आधार पर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। बाल केन्द्रित शिक्ष के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप निम्नलिखित है-

पाठ्यक्रम पूर्वज्ञान पर आधारित होना चाहिए।

है, जिसमें पलकर बालक के सामाजिक व्यक्तित्व का विकास हो सके और व जनतंत्र के योग्य नागरिक बन सके। डीवी ने शिक्षक को समाज में ईश्वर के प्रतिनिधि की संज्ञा दिया है। विद्यालय में स्वतंत्रता और समानता के मूल्य को बनाये रखने के लिए शिक्षक को अपने को बालकों से बड़ा नहीं समझना चाहिए। शिक्षकों को आज्ञाओं और उपदेशों के द्वारा अपने विचारों और प्रवृत्तियों का भार बालकों पर देने का प्रयास नहीं करना चाहिए। बालक को प्रत्यक्ष रूप से उपदेश न देकर उसे सामाजिक परिवेश दिया जाना चाहिए। और उसके सामने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किये जाने चाहिए कि उसमें आत्मानुशासन उत्पन्न हो और वह सही अर्थों में सामाजिक प्राणी बने । आधुनिक शिक्षा में वैज्ञानिक सामाजिक प्रवृत्ति प्रगतिशील शिक्षा का योगदान है प्रगतिशील शिक्षा के सिद्धान्तों के अनुरूप ही आजकल शिक्षा को अनिवार्य और सार्वभौमिक बनाने पर जोर दिया जाता है। शिक्षा का लक्ष्य व्यक्तित्व का विकास है और प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व का विकास करने के लिए शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाना चाहिए।

परीक्षोपयोगी तथ्य बाल केन्द्रित शिक्षा का उद्देश्य बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना तथा उसकी अधिगम संबंधी कठिनाइयों को दूर करना है। बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत बालक की शारीरिक और मानसिक योग्यताओं के विकास के आधार पर अध्ययन किया जाता है। > बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम में बालक की रुचियों, आवश्यकताओं एवं योग्यताओं के

आधार पर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य बालकों में शिक्षा के माध्यम से जनतंत्रीय मूल्यों की स्थापना करना है। जॉन डीवी का प्रगतिशील शिक्षा के विकास में सराहनीय योगदान है। इन्होंने प्रगतिशील शिक्षा में दो तत्वों को विशेष महत्वपूर्ण माना है-मचि और प्रयास।

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Anuvanshikta Evam Vatavaran Ka Prabhav

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Anuvanshikta Evam Vatavaran Ka Prabhav : UPTET (Uttar Prdesh Teacher Eligibility Test) Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book and Notes Chapter 3 आनुवंशिकता तथा वातावरण का प्रभाव Study Material in Hindi में Online पढ़ने जा रहे है | अभ्यर्थियो को बता दे की हम UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book Chapter 3 in Hindi PDF में Free download का लिंक भी सबसे निचे दे रहे है |

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आनुवंशिकता तथा वातावरण का प्रभाव | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 3 Study Material in Hindi

परिचय Introduction >

प्राचीनकाल के विद्वानों का यह मत था कि बीज के अनुसार वृक्ष और फल उत्पन्न होते हैं अर्थात् माता पिता के अनुसार ही उसकी संतान होती है (Like Begeta Like)। आधुनिक काल में, विशेष रूप से व्यवहारवादियों ने वातावरण को महत्व दिया है। वाटसन (J. B. Watson, 1920) का विचार है कि “वातावरण के प्रभाव से शिश को डॉक्टर, वकील, कलाकार, नेता आदि कुछ भी बनाया जा सकता है, भले ही शिशु का आनुवंशिकी कुछ भी रहा हो तथा एक समाज के व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दृष्टि से असमान होते हैं।” इन असमानताओं या विभिन्नताओं का कारण कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार वंशानुक्रम है तथा अन्य के अनुसार, भिन्नताओं का कारण वातावरण है। विज्ञान के क्षेत्र में इन अध्ययनों का आरंभ डार्विन तथा मनोविज्ञान के क्षेत्र में इन अध्ययनों का आरंभ गाल्टन ने किया। जहाँ एक ओर कुछ मनोवैज्ञानिक वंशानुक्रम को महत्व देते हैं और कुछ वातावरण को, वहीं दूसरी ओर दोनों वर्ग के विद्वान एक-दूसरे के विचारों का खंडन भी करते रहे हैं। पीटरसन (Peterson) (1948) के अनुसार, ‘व्यक्ति को उसके माता-पिता के द्वारा उसके पूर्वजों से जो प्रभाव (Stock) प्राप्त होता है, वही उसका वंशानुक्रम है।” वुडवर्थ और मारिक्वस (1956) के अनुसार, ‘वंशानुक्रम में वे सभी कारक अ = जाते हैं, जो व्यक्ति में जीवन आरंभ के समय उपस्थित होते हैं, जन्म के समय नहीं, वरन् गर्भाधान के समय अर्थात् जन्म से लगभग 9 माह पूर्व उपस्थित होते हैं।” डिंकमेयर (Dinkmeyer, 1965) के अनुसार, ‘वंशानुगत कारक वे जन्मजात विशेषताएँ हैं जो बालक में जन्म के समय से पायी जाती हैं।” माता के रज औ । पिता के वीर्य कणों में बालकों का वंशानुक्रम निहित होता है। गर्भाधान के समय जीन (Genes) भिन्न प्रकार से संयुक्त होते हैं। अतः एक ही माता-पिता की संतान प में भिन्नता दिखायी देती है। यह भिन्नता का नियम (Law of Variation) है म प्रत्यागमन के नियम (Law of Regression) के अनुसार, प्रतिभाशाली माता-पित द की संतानें दुर्बल बुद्धि कि भी हो सकती हैं।

बालकों के विकास में आनुवंशिकता तथा वातावरण का महत्व

Importance of Heredity and Environment in Development of Children व्यक्ति के व्यवहार के निर्धारण में आनुवंशिकता (Heredity) तथा वातावरन (Environment) के तुलनात्मक महत्व (Relative Importance) को दिखाने के लिए मनोवैज्ञानिक ने निम्नांकित दो तरह के अध्ययन (Studies) किये हैं.

। जुड़वाँ बच्चों का अध्ययन (Studies of Tiwin Children)

2. पोष्य बच्चों का अध्ययन (Studies Of Foster Children)

1 जुड़वाँ बच्चों का अध्ययन (Studies of Twin Children) जुड़वाँ बच्चे

(Twin Children) दो तरह के होते हैं एकांकी जुड़वाँ बच्चे (Identical Twin Children) तथा भ्रात्रीय जुड़वाँ बच्चे (Fraternal Twin Children) एकांकी जुड़वाँ बच्चों की आनुवंशिकता ( Heredity) बिल्कुल ही समरूप (Identical) होती है, क्योंकि ऐसे बच्चे का जन्म माँ के एक अंडाणु (Ovum) के गर्भित होने के फलस्वरूप होता है। कोशिका विभाजन (Cell Divison) के दौरान एक ही गर्भित अंडाणु किसी कारण से दो स्वतंत्र भागों में बँटकर दो बच्चे को जन्म देता है। ऐसे बच्चे या तो दोनों लड़का या दोनों ही लड़की होते हैं।

भ्रात्रीय जुड़वाँ बच्चों का जन्म इसलिए हो पाता है कि माँ के दो अंडाणु (Ovum) एक ही साथ पिता के दो अलग अलग शुक्राणु (Sperm) द्वारा गर्भित हो जाते हैं। स्वभावतः ऐसे जुड़वाँ बच्चों की आनुवंशिकता समान या समरूप नहीं होती है, क्योंकि इसमें दो अलग अलग गर्भित अंडाणु होते हैं । ऐसे बच्चों का यौन (Sex)कुछ भी हो सकता है अर्थात् एक लड़का तथा एक लड़की या दोनों लड़का या दोनों लड़की ।

मनोवैज्ञानिकों ने आनुवंशिकता तथा वातावरण के तुलनात्मक महत्व को दिखाने के लिए जुड़वाँ बच्चों पर अध्ययन किया; जो इस प्रकार है

(a) एकांकी जुड़वाँ बच्चे जिनका पालन पोषण एक समान वातावरण में हुआ है सेल तथा थॉम्प्सन (Gesell and Thompson, 1929) ने इस पर अध्ययन किया । इन्होंने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष दिया कि व्यक्तित्व का निर्धारण वातावरण की समानता तथा आनुवंशिकता की समानता दोनों के आधार पर होता है।

(b) एकांकी जुड़वाँ बच्चे जिनका पालन पोषण अलग अलग वातावरण में हुआ है : यह अध्ययन मनोवैज्ञानिक न्यूमैन, फ्रीमैन तथा हालजिगर (Newman, Freeman & Holzinger, 1937) ने किया। इन्होंने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि व्यक्तित्व कुछ तो आनुवंशिकता द्वारा तथा कुछ वातावरण द्वारा निर्धारित होता है। अतः व्यक्तित्व आनुवंशिकता तथा वातावरण दोनों की अंतःक्रिया (Interaction) द्वारा निर्धारित होता है।

2 पोष्य बच्चों का अध्ययन (Studies of Foster Children) मनोवैज्ञानिकों ने पोष्य बच्चों का अध्ययन करके वातावरण तथा आनुवंशिकता (Heredity) के तुलनात्मक महत्व का अध्ययन किया है। इस अध्ययन के द्वारा मनोवैज्ञानिकों ने दो प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास किया है.

क्या पोष्य बच्चों के व्यवहार में अपने वास्तविक माता पिता के व्यवहार से अधिक समानता होती है?

यदि अनुकूल वातावरण में ऐसे बच्चों को रखकर पाला पोसा जाय तो क्या उनके कुछ खास गुणों, जैसे बुद्धि (Intelligence) आदि में परिवर्तन आता है ?

पहले प्रश्न के संबंध में मनोवैज्ञानिक बक्स (Burks 192S), स्काल्स (Skeels. 1938) और स्कोडक (Skodak 1930) ने किया। इन सभी मनोवैज्ञानिक के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि बद्धि के निधोरण मे वातावरण तथा आनुवंशिकता दोनों का महत्व है, न कि किसी एक का।

दूसरे प्रश्न के संदर्भ में मनोवैज्ञानिकों ने कुछ अध्ययन करके यह दिखा दिया कि पोष्य बच्चे (Foster Children) को कुछ अनुकूल वातावरण (Fal our able Environment) मिलने पर उनकी बुद्धि के स्तर में थोड़ी सी वृद्धि होती है।

> एच ई गैरेट (H. E. Garrett 1960) का विचार है कि यह निश्चित है कि वशानुक्रम और वातावरण एक दुसरे को सहयोग देनेवाले प्रभाव या कारक है तथा दोनों ही बालक की सफलता के लिए आवश्यक है।

आर एस वुडवर्थ (RS Hoodivorth 1050) का कथन है कि व्यक्ति के जीवन और विकास पर प्रभाव डालने वाली प्रत्येक बात वशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में आ जाती है, परतु ये बातें इतने पेचीदा ढंग से संयुक्त होती है कि प्राय वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभावों में अंतर करना कठिन हो जाता है।”

अतः बालक के व्यक्तित्व और व्यवहार को समझने में वातावरण और वंशानुक्रम की पारस्परिक अतः क्रियाओं (Interactions) तथा इन प्रभावों से संबंधित कारको की अंत क्रियाओं को समझना आवश्यक है। वंशानुक्रम एक निर्धारक कारक है तथ वातावरण एक सामान्य शक्ति या कारक है। ये दोनों ही कारक एक-दूसरे के पूरक है।

आनुवंशिकता के नियम Law of Heredity

» आनुवंशिकता की क्रियाविधि (Mechanisms) का वर्णन करने के लिए जोहान (गियर मेडल (Johan Gregor Mendel) ने महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने विभिन्न तरह के मटरों (Peas) को संकरित (Crossing) कर आनुवंशिकता के आधारभूत नियमों (Cardinal Principles) का प्रतिपादन किया।

मेंडल ने अपने विस्तृत प्रयोगों के परिणाम को 1866 में प्रकाशित किया, लेकिन कई कारणों से उनके प्रयोगों की ओर 1900 ई. तक लोगों का ध्यान बहुत नहीं गया।

1900 ई. में ही तीन शोधकर्ता (Researcher) नीदरलैंड, आस्ट्रिया तथा जर्मनी में स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर उसी परिणाम पर पहुँचे, जिस पर मेडल 34 साल पहले पहँच चके थे। इन तीन शोधकर्ताओं ने मेंडल के नियम को वैध ठहराया और उन्हें आनुवंशिकता का आधारभूत नियम (Cardinal Principle or Larot Heredity) की संज्ञा दी।

मेंडल के इस आनुवंशिकता में दो नियम सम्मिलित हैं

a) पृथक्करण का सिद्धांत (Principle of Segregation)

(b) स्वतंत्रछटायी का सिद्धात (Principle of Independent Assortment पथक्करण का सिद्धांत (Principle of Segregation) यह बताता है कि जो गुण पहली सकर पीढ़ी (First Hybrid Generation) में दबा रहता है या छिपा रहत है, वे समाप्त नहीं हो जाते, बल्कि बाद की संकर पीढ़ी के कुछ सदस्यों में दिखायी देते हैं।

पृथक्करण के सिद्धांत में उनका कहना था कि दबे हुए गुण अन्य गुणों के साथ मिलकर अपना अस्तित्व नहीं खो देते हैं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी फिर दूसरी पीढ़ी से तीसरी पीढ़ी तक अपने मूल रूप मे अलग अस्तित्व (Segregated Enistence) बनाये रखते हैं।

मानव शिशुओं में पृथक्करण के सिद्धांत का क्रियान्वयन स्पष्ट रूप से होता पाया गया है। विशेष रूप से आनुवंशिक रोग (Genetic Disease) में इस सिद्धांत की क्रियान्वयनता देखने को मिलती है।

स्वतंत्र फुटायी का सिद्धांत (Principle of Independent Assortment) यह बताता है कि किसी एक आनुवंशिक गुण (Genetic Treat) का वितरण दूसरे आनुवंशिक गुण के वितरण से प्रभावित नहीं होता, अर्थात् स्वतंत्र होता है। जैसेमेंडल ने अपने प्रयोग में पाया कि मटर के पौधे के फूल का रंग मटर के फली (Pods) के आकार, डंठल की लंबाई इत्यादि गुणों से स्वतंत्र (Independent) होता है। व्यक्तियों की आनुवंशिकता के संबंध में निम्नलिखित बिन्दु महत्वपूर्ण हैं—

(a) बालक की आनुवंशिकता में सिर्फ उसके माता पिता की देन नहीं होती, बल्कि बालक की आनुवंशिकता का आधा भाग माता-पिता से, एक-चौथाई भाग दादा-दादी से, नाना नानी से, शेष भाग परदादा परदादी, परनाना परनानी इत्यादि से मिलता है। अर्थात् एक शिशु पूर्णतः अपने माता-पिता पर ही निर्भर नहीं करता, अपने पूर्वजों के गुणों को अपने में कुछ हद तक सम्मिलित किये रहता है।

(b) क्रोमोजोम्स सदा जोड़े में रहते हैं। क्रोमोजोम्स में जीन भी जोड़े में होते हैं। इन्हीं जीन के आधार पर शिशुओं के गुणों का निर्धारण होता है।

(c) किसी भी नवजात शिशु को 23 क्रोमोजोम्स माता से तथा 23 क्रोमोजोम्स पिता से मिलते हैं। इस तरह कुल 46 क्रोमोजोम्स बालक या नवजात शिशु में होते हैं। इनमें । 22 जोड़े यानी 44 क्रोमोजोम्स बालक या बालिका में आकार एवं विस्तार में समान होते हैं। इन्हें ऑटोजोम्स (Autosomes) कहा जाता है ।

23वाँ जोड़ा यौन क्रोमोजोम्स (Sex Chromosomes) होता है, जो बालिका में । समान अर्थात् XX होता है, परंतु बालक में भिन्न अर्थात् XY होता है। Y क्रोमोजोम्स X क्रोमोजोम्स की अपेक्षा छोटा होता है तथा इसमें X क्रोमोजोम्स की तुलना में कम जीन होते हैं। मानव में शिशु के यौन (Sex) का निर्धारण माता-पिता द्वारा होता है न कि माता द्वारा।

नवंशिकता तथा वातावरण का बालकों की शिक्षा के लिए महत्व importance of Heredity and Environment for Education of Children

बालकों की शिक्षा में आनुवंशिकता ( Heredity)तथा वातावरण (Environment) दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में शारीरिक, मानसिक, सावेगिक, नैतिक तथा चारित्रिक विकास करना है।

इन उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए आनुवंशिकता और वातावरण दोनों पहलू महत्वपूर्ण हैं, जैसे—अगर बालक की आनुवंशिकता काफी अच्छी है परंतु उसे अच्छा वातावरण नहीं मिल पाया है, तो उसका शैक्षिक विकास (Educational Development) ठीक से नहीं हो पायेगा। यदि बालक आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से निम्न तथा पिछड़ा हुआ है, परंतु उसे यदि एक अच्छे, वातावरण, जैसे अच्छे स्कूल में शिक्षा-दीक्षा दी जाये तो तुलनात्मक दृष्टिकोण से उसका विकास भी उतना श्रेष्ठ नहीं होगा। कुछ प्राकृतिक प्रवृतियाँ ऐसी हैं जिनका वातावरण के माध्यम द्वारा काफी हद तक विकास नहीं किया जा सकता। जैसे—कितना भी हम शैक्षिक वातावरण को उन्नत क्यों न कर दें, सभी बालक को वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, चित्रकार, प्रशासक नहीं बनाया जा सकता है।

बालको की आनुवंशिकता तथा वातावरण का शिक्षकों के लिए महत्व

शिक्षकों के लिए बालकों की आनुवंशिकता तथा वातावरण की जानकारी रखना महत्वपूर्ण है। जागरूक एवं अच्छे शिक्षकों को लिए यह आवश्यक होता है कि वे बालकों की आनुवंशिकता एवं अन्य जैविक गुणों (Biological Traits) से परिचित हो जाये तथा उनके घर, परिवार एवं सामाजिक वातावरण, जिसमें वे रहते हैं उससे भलीभाँति अवगत हो जाएँ। उससे बालकों के बौद्धिक विकास, समायोजन तथा अनुशासन संबंधी समस्याओं को शिक्षक स्वयं हल कर सकने में समर्थ हो जायेंगे। उदाहरणस्वरूप-

एक बालक स्कूल में इसलिए दुर्व्यवहार (Misbehave) कर सकता है क्योंकि उसमें एक असामान्य ग्रंथीय अवस्था (Abnormal Glandular Condition) हो सकता है या वह इसलिए भी दुर्व्यवहार कर सकता है क्योंकि वह एक ऐसे परिवार से आता है जहाँ अच्छा तौर-तरीका कभी सिखाया ही नहीं गया हो। वर्ग में एक बालक कुछ सीखने में इसलिए असमर्थ हो सकता है क्योंकि उसमें उपयुक्त विटामिन की मात्रा पर्याप्त नहीं है या वह ढंग से सीखने के लिए प्रेरित भी नहीं हो सकता है।

यदि शिक्षक को बालक की आनुवंशिकता एवं जैविक पृष्ठभूमि का ज्ञान हो तथा साथ ही साथ यदि वह पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण से भली-भाँति परिचित हो, तो वह इससे स्वयं ही शिक्षार्थियों की कई समस्याओं का समाधान आसानी से , कर सकता है।

ब्लेयर, जोन्स तथा सिम्प्सन (Blair, Jones & Simpson, 1965) ने इस सबध में कहा है “बालकों को समझने के लिए शिक्षक (a) उन्हें एक जैविक प्राणी जिनकी अपनी आवश्यकताएँ एवं लक्ष्य होते हैं, के रूप में निश्चित रूप से समझें तथा > (B) उनके सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक वातावरण को पहचानें जिनका वे एक हिस्सा है।

शिक्षक को बालकों की कुछ मूल प्रवृत्तियों के बारे में उनके आनुवंशिक तथ्यों से पता चलता है। इससे शिक्षक को बालकों में वांछनीय प्रवृत्तियों (Desired Tendencies » के विकास के लिए तथा अवांछनीय प्रवृतियों (Undesired Tendencies) को> समाप्त कर उसके प्रभाव से बचाने में मदद मिलती है।

शिक्षक विद्यालय में विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन करके शैक्षिक वातावरण को उन्नत बना सकते हैं, जिसका प्रभाव बालकों के समन्वित विकास पर अनुकूल पड़ सकता है।

आनुवंशिकी/वंशानुक्रम के प्रचलित सिद्धांत

★ बीजकोष की निरंतरता का सिद्धांत * समानता का सिद्धांत

प्रत्यागमन का सिद्धांत * अर्जित गुणों के संक्रमण का सिद्धांत

* मेडल का सिद्धांत

बालक पर आनुवंशिकी/वंशानुक्रम का प्रभाव

* मूल शक्तियों पर प्रभाव * शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव

★ प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव ___ * व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव

* सामाजिक स्थिति पर प्रभाव * चरित्र पर प्रभाव

* महानता पर प्रभाव * वृद्धि पर प्रभाव

परीक्षोपयोगी तथ्य

आनुवंशिकता से तात्पर्य शारीरिक एवं मानसिक गुणों के संचरण (Transmission) से होता है, जो माता पिता से बच्चों में जीन के माध्यम से प्रवेश करता है।

वातावरण (Environment) का तात्पर्य व्यक्ति में उन सभी तरह की उत्तेजनाओं (Stimulations) से होता है जो गर्भधारण से मृत्यु तक उसे प्रभावित करती है।

1950 ई. में विशेषज्ञों द्वारा यह पता लगाया कि जीन में मुख्य रूप से दो जैविक अणु (Organic Molecule) होते हैं, जिन्हें DNA (Deoxyribonucleic Acid) तथा RNA (Ribonucleic Acid) कहा जाता है।

जीन द्वारा आनुवंशिक गुणों का संचरण होता है। मानव जीवन की शुरुआत एक गर्भित अंडाणु (Fertilized egg) से होती है। एक गर्भित अंडाणु में क्रोमोजोम्स के 23 जोड़े होते हैं । इस 46 क्रोमोजोम्स में 23 क्रोमोजोम्स माँ से तथा 23 क्रोमोजोम्स पिता से मिलता है।

क्रोमोजोम्स में एक ही विशेष संरचना (Structure) होती है, जिसे जीन (Gene) कहा जाता है। इसी जीन द्वारा माता-पिता या अपने पुरखों के गुण अपने शिशुओं में आते हैं।

बालकों की शिक्षा में आनुवंशिकता एवं वातावरण का महत्वपूर्ण स्थान है। बालको की आनुवंशिकता एवं वातावरण से अच्छी तरह परिचित होने पर शिक्षक बालकों के बौद्धिक विकास, समायोजन तथा अनुशासन संबंधी समस्याओं को हल करने में समर्थ रहते है।

आनुवंशिकता का नियम (Law of Heredity) (जिसे मेण्डल ने अपने शोध के आधार पर प्रतिपादित किया था) से यह पता चलता है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में व्यक्तियों में गुणों में विभिन्नता क्यों और कैसे होती है ?

मानव व्यक्तित्व आनुवंशिकता और वातावरण की अंतःक्रिया का परिणाम है।

व्यक्तित्व एवं बुद्धि में वंशानुक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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UPTET Handwritten Notes Free Download PDF in Hindi : दोस्तों में आपका Online Teacher Deepak Kumar एक बार फिर से आप सभी का स्वागत करता हूँ हमारी वेबसाइट SscLatestNews.Com में, यदि आप भी Uttar Pradesh राज्य में Primary and Higher Primary Teachers बनने का सपना देख रहे है तो आज की पोस्ट आपके लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होने जा रही है | दोस्तों आज की पोस्ट में आप सभी सभी अभ्यर्थी UPTET Book in PDF Hindi and English PDF में Free Download करने जा रहे है |

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अभ्यर्थियो को UPTET Books के अलावा भी हम UPTET Study Material in Hindi and English दोनों ही भाषा में दे रहे है जिसे आप बिना PDF में Download किये हुए भी Online पढ़ सकते है | हम अपनी इस पोस्ट में अभ्यर्थियो के लिए Handwritten Notes PDF में भी लेकर आयें है जो हमारे द्वारा तैयार किये हुए है जो आने वाले UPTET Exam Questions Papers Answers के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है | हम अभ्यर्थियो को निचे UPTET की Book and Notes PDF में Download करने के लिए दे रहे है | अभ्यर्थियो को बता दे की इसी पोस्ट में आपको UPTET Previous Year Question Paper का लिंक भी दिया जा रहा है |

UPTET Exam Question Paper 2021-2022 Pattern

हम अभ्यर्थियो को निचे टेबल में UPTET Exam Question Model Paper 2021-2022 के Pattern को दर्शा रहे है जिसे आपको UPTET Exam Paper के लिए तैयार करना होगा |

UPTET SubjectUPTET Number of QuestionsTotal Number
Bal Vikas aur Shikshan VidhiyanQuestion 3030 Number
Hindi Language 1stQuestion 3030 Number
Sanskrit/English/Urdu Language 2ndQuestion 3030 Number
MathematicsQuestion 3030 Number
EVSQuestion 3030 Number
TotalQuestion 150150 Number

Note:- दोस्तों हम आपको बता दे की Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test (UPTET) Exam Question Paper को पास करने के लिए Reserved Category Students के लिए करीब 82 Number लाने अनिवार्य है, और वही Unreserved Category Students करीब 90 Number लाने अनिवार्य होते है | सबसे बड़ी बात यह है की जब आप UPTET Exam Paper देते है तो आपको Negative Marking नही दी जाती है | अभ्यर्थियो को UPTET Exam Questions Papers को हल करने के लिए 150 Minute का समय दिया जाता है |

UPTET Handwritten Notes क्यों जरूरी है

दोस्तों यदि आप Primary and Higher Primary Teachers बनने का सपना देख चुके है तो उम्मीद है आप UPTET Exam Questions Answer Paper के लिए तैयारी भी कर रहे होंगे | कुछ अभ्यर्थी ऐसे भी होते है जो UPTET Exam Paper की तैयारी ठीक UPTET Exam Paper से 2-4 महीने पहले शुरू करते है तो ऐसे में उनका UPTET Study Material in Hindi इतने कम समय में पढ़ पाने मुश्किल होते है | दोस्तों आपके पास भी यदि UPTET Exam Paper की तैयारी करने के लिए कम समय है तो आपके लिए UPTET Handwritten Notes for Primary Level बहुत ही जरूरी है जिसे करने के बाद आप पास होने तक की तैयारी आराम से कर सकते है |

UPTET Hindi Bhasha Books & Notes in PDF Download

हम अभ्यर्थियो को निचे टेबल में Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test (UPTET) Exam Question Paper 2021-2022 के लिए Hindi Bhasha Book and Notes in PDF में Free Download करने के लिए दे रहे है जिसमे अभ्यर्थी खूब मेहनत करते है और अच्छे नंबर प्राप्त करने की कोशिश करते है |

Hindi Bhasha Handwrite Notes in PDFDownload

UPTET Sanskrit Books & Notes in PDF Download

दोस्तों Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test (UPTET) Exam Paper 2021-2022 की तैयारी बहुत सारे अभ्यर्थी कर रहे होंगे लेकिन Sanskrit Subject एक ऐसा सब्जेक्ट होता है जिसे बहुत ही कम अभ्यर्थी करते है लेकिन जो अभ्यर्थी UPTET Sanskrit को अच्छे से समझ लेते है तो वो Sanskrit Subject के अच्छे शिक्षक बन जाते है |

UPTET Sanskrit Handwritten Notes in PDFDownload

UPTET Environment Books & Notes in PDF Download

UPTET Exam Question Paper का एक और Subject Environment भी बहुत लोकप्रिय subject होता है जिसे हम Handwritten Notes के रूप में आपको तैयार करके दे रहे है जिसे आप Free PDF में Download कर सकते है | Environment (EVS) Subject में आपसे पर्यावरण से सम्बन्धित Questions पूछे जाते है जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है |

UPTET Environment Handwritten in PDF Download

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निचे दिए गये टेबल में आपको UPTET Bal Manovigyan Handwritten Notes in PDF में दिए जा रहे है जिसकी तैयारी के लिए अभ्यर्थी कौचिंग सेंटर का इस्तेमाल करते है लेकिन हम अभ्यर्थियो को बता दे की UPTET Manovigyan Subject को आप घर बैठे आसानी से तैयार कर सकते है जिसका लिंक आपको निचे टेबल में दिया हुआ है |

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UPTET Exam Question Paper में यदि किसी Subject को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया जाता है तो वो है Mathematics Subject जिसकी तैयारी करने के लिए अभ्यर्थी सहारा तलाशते रहते है | दोस्तों हम Mathematic Subject को दो भागो में बाँट रहे है जिन्हें आप PDF में Donwood कर सकते है | UPTET Mathematic Subject के Questions दो खंडो में आते है अंकगणित और ज्यामिति जो दोनों ही महत्त्वपूर्ण है |

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UPTET New Syllabus Notes in Hindi PDF Free Download : Hello Friends UPTET Exam November 2021-2022 आने ही वाला है जिसकी तैयारी के लिए सभी अभ्यर्थियो ने अपनी कमर कस ही ली होगी और तैयारी भी अच्छी तरह से कर ली होगी | दोसोत आज हम बात करने जा रहे है UPTET Handwritten Notes in Hindi & English in PDF Free Download करने की जिसको तैयार करने के बाद आप UPTET Exam Question Model Sample Paper in PDF में अच्छे नंबर प्राप्त कर सकते है |

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दोस्तों UPTET (Uttar Pradesh Techer Eligibility Test) Exam Questions Papers की तैयारी आज के समय में जो अभ्यर्थी Teacher बनना चाहते है वो सभी लोग कर रहे है | UPTET Exam paper पास करने के बाद ही आप राज्य में Teacher बनने योग्य हो जाते है जिसके बाद आप किसी भी Teachers Bharti Exam Paper में भाग लेकर उसे पास कर सकते है |

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UPTET Books & Notes in Hindi PDF Free Download : UPTET (Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test) Exam Questions Paper 2021-2022 की तैयारी कर रहे सभी अभ्यर्थियो के लिए आज की पोस्ट में हम UPTET Books in Hindi & English PDF Free Download करने के लिए लेकर आयें जिन्हें आप टेबल में दिए गये लिंक के माध्यम से प्राप्त कर सकते है | अभ्यर्थियो को बता दे की UPTET (Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test) 2021-2022 Online Notification जारी कर दिया गया है जिसके लिए अभ्यर्थियो ने Form भरने की भी तैयारी कर दी है |

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यदि आप भी UPTET Exam Questions Answers Model Sample Paper with Mcq की तैयारी कर रहे है तो आप हमारी वेबसाइट के माध्यम से रोजाना UPTET Study Material in Hindi में पढ़ सकते है जिसके लिए आपको किसी भी तरह का कोई भी शुल्क हमें नही देना होगा | UPTET Exam Paper State Level पर आयोजित कराया जाता है जिसमे उत्तर प्रदेश के अभ्यर्थी काफी संख्या में हिस्सा भी लेते है यदि आप भी Teacher बनने का सपना देख रहे है तो उसके लिए आपको भी UPTET Exam Paper पास करना होगा तभी आप शिक्षक बनने के योग्य माने जाते है |

दोस्तों हम आपको हर हर रोज UPTET Notes Study Material जैसी पोस्ट शेयर करते रहते है जिन्हें आप हमारी वेबसाइट के सबसे उपर दिए गये मन्यु से PDF में Free Download कर सकते है | आज की पोस्ट के माध्यम से हम अभ्यर्थियो के लिए Baal Vikas Evam Shiksha Shastra जैसी Books PDF में Free लेकर आयें है जिन्हें आप निचे दिए गये टेबल से अपने मोबाइल या कंप्यूटर में Free Download कर सकते है | Youth Competition UPTET Book PDF Free Download करने के लिए अभ्यर्थी हमारे द्वारा बनाई गयी UPTET Previous Year Model Questions Answers Papers Post को जरुर पढ़े जिसका लिंक भी हम आपको अपनी आज की पोस्ट में शेयर करने जा रहे है |

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