LLB Hindu Law Chapter 7 Post 5 Book Notes Study Material PDF Free Download : Hi Students आज की इस पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी Hindu Law Books Chapter 7 दाय तथा उत्तराधिकार Study Material पढ़ने जा रहे है |
अभिनिर्धारित किया कि जहाँ जोरीदारी प्रथा के अन्तर्गत किसी पुरुष के द्वारा कोई सम्पत्ति निर्वसीयती दी जाती है वहाँ ऐसी सम्पत्ति के विभाजन के बीच पूर्ण रक्त सम्बन्धियों एवं अर्ध रक्त सम्बन्धियों
बीच सम्पत्ति के विभाजन के समय किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा बल्कि उनके बीच ऐसी सम्पत्ति का विभाजन सामान्य रूप से की जायेगी।
1956 के हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम पारित होने के पश्चात् विधायिका ने ऐसे विवाह की परम्परा को अविधिमान्य घोषित कर दिया और न्यायालय ने ऐसी सम्पत्ति के विभाजन के मामले में यह अभिनिर्धारित किया कि वर्ग (1) के दायाद मौजूद होने पर वर्ग (2) के दायादों को सम्पत्ति न्यागत नहीं होगी और वर्ग (2) के दायाद ऐसी छोड़ी गयी सम्पत्ति तभी प्राप्त कर पायेगें जब वर्ग एक (1) के सूची के कोई दायाद मौजूद न हों।
अनुसूची के वर्ग 2 में उल्लिखित दायादों की सूची
(1) पिता।
(2) (क) पुत्र की पुत्री का पुत्र, (ख) पुत्र की पुत्री की पुत्री, (ग) भाई, (च) बहिन।
(3) (क) पुत्री के पुत्र का पुत्र, (ख) पुत्री के पुत्र की पुत्री, (ग) पुत्री की पुत्री का पुत्र, (घ) पुत्री की पुत्री की पुत्री।
(4) (क) भाई का पुत्र, (ख) बहिन का पुत्र, (ग) भाई की पुत्री तथा (घ) बहिन की पुत्री।
(5) (1) पिता का पिता तथा (2) पिता की माता।
(6) (1) पिता की विधवा तथा (2) भाई की विधवा पत्नी।
(7) (1) पिता का भाई तथा (2) पिता की बहिन।
(8) (1) माता का पिता तथा (2) माता की माता।
(9) (1) माता का भाई तथा (2) माता की बहिन योग 23।
व्याख्या—इस अनुसूची में उल्लिखित भाई तथा बहिन सहोदर मातृपक्ष के भाई बहिन को सम्मिलित नहीं करते।
के० राज बनाम मुथ्थमा के वाद में उच्चतम न्यायालय ने हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 की अनुसूची 2 के अन्तर्गत यह निर्णय दिया कि अनुसूची 2 में बहन शब्द के अन्तर्गत सहोदर बहन अपने पितृपक्ष की सम्पत्ति में किसी प्रकार का कोई दावा अन्य पिता की सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए नहीं कर सकती, अर्थात् जहाँ एक ही माता हो लेकिन सन्तान कई पिता से उत्पन्न हुयी हों ऐसी स्थिति में सहोदर बहनों को अन्य पिता की सम्पत्ति में कोई अधिकार उत्पन्न नहीं होगा।
दृष्टान्त
(1) अ एक हिन्द्र परुष पिता, भाई तथा बहिन की पुत्री को छोड़कर मर जाता है। पिता वर्ग (2) की प्रथम प्रविष्टि में आने के कारण भाई तथा बहिन की पुत्री को अपवर्जित करके समस्त सम्पत्ति को ग्रहण कर लेगा, क्योंकि भाई तथा बहिन की पुत्रियाँ प्रविष्टि 3 तथा 4 में क्रमश: आती हैं।
(2) निर्वसीयती ने (1) पुत्री के पुत्र की पुत्री, (2) पुत्री की पुत्री के पुत्र, (3) पुत्री की पुत्री की पुत्री, (4) भाई का पत्र तथा (5) पिता के पिता को अपने पीछे छोड़ा है। दायाद 1 से लेकर 3 तक तृतीय प्रविष्टि के हैं, चौथा दायाद चौथी प्रविष्टि का है तथा पाँचवाँ दायाद पाँचवीं प्रविष्टि का है। अत: तृतीय प्रविष्टि के दायाद अधिमान्य होंगे तथा 1 से लेकर 3 तक के दावेदार बराबर अंश में सम्पत्ति प्राप्त करेंगे, अर्थात् प्रत्येक को 1/2 अंश प्राप्त होगा।
जहाँ दो भाई किसी भूमि सम्पत्ति के समान स्वामी थे। एक भाई लापता हो गया और कई वर्षों
- ए० आई० आर० 2001 एस० सी० 1720।
उपर्युक्त आरेख में प, फ, ट, ठ तथा य एवं र वंशज-बन्धु हैं जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सुसंगत
डिग्रियों की संगणना (Computation of Degrees)—धारा 13 में डिग्री की परिभाषा दी गई है तथा संगणना की विधि विहित की गई है। धारा 13 इस प्रकार है-
(1) गोत्रजों एवं बन्धुओं में उत्तराधिकार-क्रम के निर्धारण के प्रयोजन के लिए निर्वसीयत से दायाद की नातेदारी की गणना यथास्थिति ऊपर की या नीचे की डिग्री या दोनों के अनुसार होगी।
(2) ऊपर की डिग्री तथा नीचे की डिग्री की गणना निर्वसीयत को सम्मिलित करके की जायेगी।
(3) प्रत्येक पीढ़ी या तो ऊपर की या नीचे की डिग्री निर्मित करती है।
ऊपर की तथा नीचे की डिग्री-दायाद मृतक का पूर्वज अथवा वंशज अथवा बन्धु हो सकता है। प्रथम दशा में सम्बन्ध ऊपर से ही हो सकता है, द्वितीय दशा में सम्बन्ध नीचे की डिग्री से हो सकता है, किन्तु तीसरी दशा में सम्बन्ध ऊपर तथा नीचे दोनों ढंग से हो सकता है।
ऊपर तथा नीचे की डिग्री की संगणना मृतक को सम्मिलित करके की जायेगी; अत: निर्वसीयत को स्वयं एक (प्रथम) डिग्री मान लिया जाता है, उसका पिता दूसरी डिग्री और इस प्रकार ऊपर का क्रम चला जाता है। उसी प्रकार निर्वसीयत प्रथम डिग्री माना जाता है, उसका पुत्र द्वितीय डिग्री और इस प्रकार नीचे का क्रम चला जायेगा। बन्धु की दशा में, जैसे भाई का पुत्र आदि में, ऊपर तथा नीचे की दोनों डिग्रियों को देखा जाता है। निर्वसीयत, ऊपर की प्रथम डिग्री, उसका पिता द्वितीय डिग्री तथा नीचे से उसका भाई प्रथम डिग्री तथा उसके भाई का पुत्र द्वितीय डिग्री माना जाता है।
गोत्रजों एवं बन्धुओं के मध्य उत्तराधिकार का क्रम-धारा 12, जो अधिकार के क्रम का उल्लेख करती है, इस प्रकार है
“यथास्थिति गोत्रजों एवं बन्धुओं में उत्तराधिकार का क्रम नीचे दिये हुए अधिमान नियमों के अनुसार होगा-
नियम 1-दो दायादों में परस्पर उसे अधिमान्यता प्राप्त होगी जिसकी ऊपर की डिग्रियाँ अपेक्षाकृत कम हैं या बिल्कुल नहीं हैं।
नियम 2-जहाँ ऊपर की ओर की डिग्रियों की संख्या समान है अथवा बिल्कुल नहीं है, वहाँ उस दायाद को अधिमान्यता प्राप्त होगी जिसकी नीचे की ओर डिग्रियाँ अपेक्षाकृत कम हैं अथवा बिल्कुल नहीं हैं।
नियम 3–जहाँ नियम 1 अथवा 2 के अन्तर्गत एक दायाद दूसरे की तुलना में अधिमान्यता प्राप्त करने के हकदार नहीं हैं वहाँ वे एक अंशभागी होंगे।”
लिंग के आधार पर अधिमान्यता का कोई नियम नहीं है कोई पुरुष दायाद स्त्री दायाद की अपेक्षा लिंग के आधार पर अधिमान्य नहीं समझा जायेगा।
नियम 1-प्रथम नियम निम्नलिखित चार अवस्थाओं में अनुवर्तित किया जाता है
(1) जहाँ दोनों दायाद ऊपर की पीढ़ी के हैं वहाँ वह अधिमान्य होता है जिसके ऊपर डिग्री अपेक्षाकृत कम है।
दृष्टान्त
दो गोत्रज परस्पर स्पर्द्धा दायाद हैं–(1) पिता के पिता के पिता के पिता तथा (2) पिता के पिता की माता। इससे पूर्वोक्त ऊपर की पाँच डिग्री में है तथा दूसरा ऊपर से चार डिग्री में है; अत: दूसरी यद्यपि एक स्त्री है, पूर्वोक्त की अपेक्षा अधिमान्य होगी।
(2) जहाँ एक दायाद ऊपर की पीढ़ी का है तथा दूसरा नीचे की पीढ़ी का है, वहाँ वह अधिमान्य
होगा जिसके ऊपर कोई डिग्री नहीं है।
दृष्टान्त
परस्पर स्पर्द्धा दायाद (1) पुत्र के पुत्र के पुत्र के पुत्र तथा (2) पिता के पिता के पिता हैं। इनमें पूर्वोक्त पाँच डिग्री नीचे से है तथा दूसरा चार डिग्री ऊपर से है। पूर्वोक्त को ऊपर से किसी डिग्री के न होने के कारण अधिमान्य समझा जायेगा।
(3) जहाँ दो दायाद बन्धु पीढ़ी के हैं, किन्तु ऊपर की डिग्री की संख्या वही नहीं है, वहाँ ऊपर की कम डिग्री वाले दायाद अधिमान्य समझे जायेंगे।
दृष्टान्त
स्पर्धी दायाद (1) बहन की पुत्री की पुत्री तथा (2) माता के भाई के पुत्र की पुत्री है। यहाँ पूर्वोक्त, दूसरे की अपेक्षा ऊपर से दो डिग्री होने के कारण अधिमान्य होगी।
(4) जब एक दायाद नीचे की पीढ़ी का है तथा दूसरा बन्धु वर्ग का है, उस अवस्था में पहला दूसरे की अपेक्षा अधिमान्य होगा; क्योंकि पहली अवस्था में उस दायाद के ऊपर की डिग्री कोई नहीं
दृष्टान्त
स्पर्द्धा दायाद (1) माता के पिता की पुत्री तथा (2) पुत्री के पुत्र के पुत्र का पुत्र है। पूर्वोक्त बन्धु पीढ़ी में ऊपर की तीन डिग्री तथा नीचे की दो डिग्री होने के कारण तथा दूसरा नीचे की पाँच डिग्री के अन्तर्गत है। दूसरा ऐसी स्थिति में पूर्वोक्त की अपेक्षा अधिमान्य समझा जायेगा, क्योंकि दूसरे की ऊपर की कोई डिग्री नहीं है।
नियम 2–दूसरा नियम निम्नलिखित अवस्थाओं में अनुवर्तनीय होता है
(1) जब ऊपर की डिग्री की संख्या समान है तो यह दायाद जिसके नीचे की डिग्री अपेक्षाकृत ङ्केका है, अधिमान्य सHD जायेगा।
दृष्टान्त
स्पर्धी दायाद (1) भाई के पुत्र के पुत्र का पुत्र तथा (2) भाई के पुत्र की पुत्री है। यहाँ दोनों दायाद ऊपर की दो डिग्री के हैं, किन्तु प्रथम नीचे की चार डिग्री का है तथा दूसरा नीचे की तीन डिग्री का है; अत: दूसरा यद्यपि स्त्री है, फिर भी अधिमान्य होगा।
(2) जहाँ ऊपर की डिग्री समान है, वहाँ वह अधिमान्य होगा जिसके नीचे की डिग्री में कोई नहीं है।
दृष्टान्त
स्पर्धी दायाद (1) माता के पिता की माता तथा (2) पिता के पिता की बहन का पुत्र है। दोनों दायादों के ऊपर की डिग्री की संख्या समान है, किन्तु प्रथम की नीचे की डिग्री नहीं किन्तु दूसरे की ऐसी दो डिग्री हैं। प्रथम, इसलिये अधिमान्य होगा। __(3) जब ऊपर की डिग्री की संख्या कुछ नहीं है तो वह दायाद अधिमान्य होगा जिसकी नीचे की संख्या अपेक्षाकृत कम है।
दृष्टान्त
स्पर्धी दायाद (1) पुत्र के पुत्र की पुत्री के पुत्रं का पत्र तथा (2) पत्र की पुत्री की पुत्री की पुत्रा है। दोनों प्रकार की डिग्री में कोई नहीं है, किन्तु प्रथम 6 डिग्री नीचे का है, जब कि दूसरा पाँच डिग्री
का है; अत: दूसरा अधिमान्य होगा।
4) जब नीचे की डिग्री की संख्या कुछ नहीं है, तो वह दायाद अधिमान्य होगा जिसका नीचे डिग्री का कोई नहीं है। यह तभी सम्भव है जब कि मृतक की विधवायें परस्पर-विरोधी दावेदार है।
नियम 3-एक साथ उत्तराधिकार ग्रहण करने वाले दायाद-इस नियम के अनुसार जब कोई टायाद एक-दूसरे की तुलना में अधिमान्य नहीं है जैसा कि नियम 1, 2 में दिया गया है, तो वे क साथ मिलकर ग्रहण करते हैं। ऐसी अवस्था में दोनों दायाद एक साथ उत्तराधिकार प्राप्त करते हैं। वितरण की किसी स्पष्ट रीति के अभाव में वे सम्पत्ति व्यक्तिपरक रूप में प्राप्त करते है तथा सह-आभोगी के रूप में धारण करते हैं। यह स्थिति निम्नलिखित दशाओं में उत्पन्न हो सकती है
1) जहाँ दोनों दायाद नीचे की पीढ़ी के हैं तथा उनमें प्रत्येक नीचे की एक ही डिग्री का है।
दृष्टान्त स्पर्द्धा दायाद (1) पुत्र के पुत्र की पुत्री का पुत्र तथा (2) पुत्र की पुत्री के पुत्र का पुत्र है। इनमें किसी का ऊपर की डिग्री का कोई नहीं है तथा प्रत्येक पाँच डिग्री नीचे का है; अत: दोनों एक साथ ग्रहण करेंगे।
(2) जब दोनों दायाद ऊपर की पीढ़ी के हैं, किन्तु उनमें से प्रत्येक ऊपर की एक ही डिग्री का है तथा नीचे की डिग्री का कोई नहीं है।
दृष्टान्त
स्पर्धी दायाद (1) पिता के माता के पिता तथा (2) माता के पिता के पिता हैं। इन दोनों अवस्थाओं में ऊपर की डिग्री की संख्या समान है तथा नीचे की डिग्री का कोई नहीं है; अत: वे एक साथ ग्रहण करेंगे।
(3) जहाँ दोनों दायाद बन्धु दायादों में से हैं, किन्तु प्रत्येक ऊपर तथा नीचे की समान डिग्री
दृष्टान्त स्पर्धी दायाद (1) बहिन के पुत्र के पुत्र तथा (2) बहिन की पुत्री का पुत्र है। दोनों दायाद समान रूप से एक ही डिग्री के हैं। अत: वे एक ही अंश ग्रहण करेंगे।
उपर्युक्त नियम उस दशा में अनुवर्तित किया जाता है जबकि दोनों दायाद गोत्रज है अथवा बन्धु। किन्तु जब एक दायाद गोत्रज होता है तथा दूसरा बन्धु तो गोत्रज दायाद अधिमान्य माना जाता
जहाँ दो दायाद एक साथ ग्रहण करते हैं, वहाँ सगा नातेदार चचेरे नातेदार की अपेक्षा अधिमान्य समझा जाता है, यदि अन्य मामलों में सम्बन्ध एक ही प्रकार का हो (धारा 18)।
दायादों के अभाव में सम्पत्ति का राजगामी होना-निर्वसीयत के सभी दायादों के अभाव में सम्पत्ति सरकार में न्यागत हो जाती है। वस्तुत: उस दशा में सम्पत्ति राजगामिता द्वारा सरकार को चली जाता है। सरकार के ऊपर यह प्रमाणित करने का भार होता है कि निर्वसीयत बिना ऐसे किसी दायाद
मर गया जो इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार दायाद होने का अधिकारी था। राजगामी हुई। सम्पदा ऐसे समस्त प्रभारों तथा न्यासों से प्रतिबन्धित रहती है जो उसके पहले प्रभावित करते थे। पानयम की धारा 29 में इस प्रकार की सम्पत्ति का उल्लेख किया गया है जो इस प्रकार है
“यदि निर्वसीयती ऐसा कोई दायाद अपनी मृत्यु के बाद नहीं छोड़ता जो उसकी सम्पत्ति का इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुकूल उत्तराधिकार में प्राप्त करने के लिए सक्षम है तो एसी सम्पत्ति सरकार को न्यागत होगी। ऐसी सम्पत्ति उन सभी प्रभारों और दायित्वों के अधीन