UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Adhigam Aur Shiksha Shastra Objective Question Answer

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Adhigam Aur Shiksha Shastra Objective Question Answer : स्वागत है आप सभी अभ्यर्थियो का हमारी वेबसाइट SscLatestNews.Com में, दोस्तों आज की पोस्ट में आप सभी UPTET and CTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books Chapter 3.6 Objective Type Questions Answers in Hindi PDF में Free Download करने जा है जिसे आप सबसे निचे दिए गये टेबल पर जाकर प्राप्त कर सकते है |

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Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 3.3 में आप अधिगम और शिक्षा शास्त्र में बच्चो का सोचना एवं सीखना, शिक्षण एवं अधिगम,बच्चा : एक समस्या स्मध्क तथा वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में, संज्ञान तथा संवेग, अभिप्रेरणा और अधिगम से लिए गये Questions with Answers पढ़ने जा रहे है | अभ्यर्थियो को बता दे की आज UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books का Last Chapter Objective Questions के रूप में हम शेयर कर रहे है बाकी सभी Chapter पर आप उपर दिए गये लिंक के माध्यम से प्राप्त कर सकते है |

हम अभ्यर्थियो के लिए रोजाना UPTET and CTET Books and Notes Chapter Wise / Topic Wise शेयर करते है रहते है जिन अभ्यर्थियो को UPTET Syllabus Books in Hindi English PDF Free Download करने में किसी भी तरह की कोई समस्या आ रही है तो कृपया हमें कमेंट कर बताएं | अभ्यर्थी निचे दिए गए टेबल से Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books Chapter 3.6 in Hindi PDF में Free Download कर सकते है |

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Abhiprerna aur Adhigam Study Material PDF

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Abhiprerna aur Adhigam Study Material PDF : आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET and CTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 3.5 अभिप्रेरण और अधिगम Study Material in Hindi with PDF Free Download करना जा रहे है जिसका लिंक आपको निचे टेबल में दिया जा रहा है |

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अभिप्रेरण और अधिगम Motivation & and | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 3.5 Study Material in Hindi

अभिप्रेरण Motivation

ली एवं लेविस (Reilly and Lewis) के अनुसार, अभिप्ररेण एक ऐसा बल है को व्यक्ति के अन्दर उत्पन्न होता है न कि कुछ ऐसी चीज जिसे शिक्षक छात्र में अपनी ओर से पैदा करते हैं।

ब्लेयर, जोंस एवं सिम्प्सन (Blair, Jones & Simpson) के अनुसार, अभिप्रेरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षार्थी की आंतरिक शक्ति वातावरण के विभिन्न लक्ष्य वस्तुओं की ओर निर्देशित होती है।

अभिप्रेरण का वर्गीकरण

मनोवैज्ञानिकों ने अभिप्रेरण को दो भागों में बाँटा है—

1. शारीरिक या जैविक अभिप्रेरण (Physical or Biogenic Motives) शारीरिक अभिप्रेरण वैसे अभिप्रेरण को कहा जाता है जो व्यक्ति को जीवित रहने के लिए आवश्यक है और यह जन्म से ही बालक में मौजूद रहता है।

> ये अभिप्रेरण सार्विक (Universal) होते हैं, क्योंकि ये सभी व्यक्तियों में एक ही रूप में पाये जाते हैं। इनमें भूख, प्यास, नींद, दर्द-परिवर्जन इत्यादि प्रमुख हैं तथा यह सभी देश एवं काल के लोगों में एक ही रूप में पाये जाते हैं।

→ शारीरिक अभिप्रेरण से बालकों में समस्थिति (Homeostasis) अर्थात् शरीर के भीतर संतुलन बनाये रखने का गुण होता है। जैसे जब व्यक्ति को भूख लगती है, तो उसके भीतर एक तनाव उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति भोजन की खोज करता है और भोजन मिलने पर तनाव कम हो जाता है।

2. अर्जित या सीखा हुआ अभिप्रेरण (Acquired or Learned Motives) अर्जित मरण ऐसे अभिप्रेरण को कहा जाता है, जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती है

स अभिप्रेरण जन्मजात नहीं होते अर्थात ऐसे अभिप्रेरकों को व्यक्ति अपने जन्म के बाद सीखता है।

आभप्रेरण सार्विक (Universal) नहीं होते हैं अर्थात ऐसे अभिप्रेरण सभी भक्तयों में नहीं होते तथा उनका रूप भी अक्सर भिन्न-भिन्न होता है। जामप्रेरण व्यक्तियों के जीवित (Survival) रहने के लिए आवश्यक नहीं होते है। जाभप्ररणों का समस्थिति (Homeostasis) से भी कोई संबंध नहीं होता है।

शक्षा के दृष्टिकोण से अर्जित अभिप्रेरण निम्नलिखित हैं-

1. उपलब्धि अभिप्रेरण (Achievement Motivation): उपलब्धि अभिप्रेरण से तात्पर्य एक ऐसे अभिप्रेरण से होता है जिससे प्रेरित होकर बालक अपने कार्य को इस ढंग से करता है कि उसे अधिक से अधिक सफलता मिल सके।

> रिली एवं लेविस (Reilly and Lewis) के अनुसार, किसी चीज को अपने में करने, उसे अच्छे से अच्छे ढंग से करने तथा उसमें विशिष्टता दिखाने की स्वीकारात्मक इच्छा को उपलब्धि अभिप्रेरण कहा जाता है।

2. संबंधन अभिप्रेरण (Affiliation motivation) अपने साथियों एवं अन्य लोगों के समूह में मान्यता प्राप्त करने की प्रवृति को संबंधन अभिप्रेरण कहा जाता है। यह अभिप्रेरण सभी उम्र के व्यक्तियों में होता है, परंतु प्रारंभिक किशोरावस्था में यानी 13___ 15 वर्ष की उम्र का अभिप्रेरण सबसे अधिक स्पष्ट एवं विशिष्ट होता है। इस अवस्था में किशोरों में अपने साथियों का समर्थन पाने तथा माता-पिता एवं शिक्षकों की प्रशंसा । पाने की इच्छा तीव्रतम होती है।

3. चिंता ह्रास (Anxiety Reduction) चिंता ह्रास का अभिप्राय बालकों में सीखे जाने वाले पाठ के प्रति तनाव तथा चिंता को बिल्कुल ही समाप्त करने से नहीं, बल्कि चिंता के स्तर को इस लायक बनाकर रखने से होता है जो उसे पाठ को सीखने में मदद कर सके।

> शिक्षकों के लिए चिंता ह्रास का आशय है उन्हें वर्ग में छात्रों के चिंता स्तर को

संतुलित बिंदु पर रखना चाहिए ताकि वे उनके शिक्षण से अधिकतम लाभ उठा सकें।

4. सत्ता अभिप्रेरण (Power motivation) सत्ता अभिप्रेरण मानव के बहुत से व्यवहारों का आधार होता है। उनके अनुसार व्यक्ति हीनता के भाव को नहीं बर्दाश्त कर सकता है, बल्कि उसके स्थान पर श्रेष्ठता का भाव विकसित कर लेता है। – इसी भावना के कारण वह उन सभी कार्यों को करने के लिए अभिप्रेरित हो उठता है, जिनसे उसमें नियंत्रण करने, प्रभुत्व दिखाने एवं सत्ता में रहने के भाव की उत्पत्ति होती है। बालक तीव्रता से उन क्रियाओं को करना सीख लेता है, जिनसे उनमें श्रेष्ठता, सत्ता एवं दूसरों को नियंत्रित करने का भाव उत्पन्न होता है। उन कार्यों से दूर रहना सीख लेता है, जिनसे उनमें हीनता या लाचारी का भाव उत्पन्न होता है।

5. आक्रमणशीलता का अभिप्रेरण (Motive of aggressiveness): आक्रम शीलता भी एक प्रमुख अर्जित अभिप्रेरक हैं, जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को शाब्दिक रूप से या शारीरिक रूप से चोट पहुँचाने या आघात पहुँचाने की कोशिश करता है अनमोदन अभिप्रेरण (Approval motivation) अनमोदन अभिप्ररण तात्पर्य व्यक्ति द्वारा धनात्मक मूल्यांकन यानी प्रतिष्ठा, प्रशंसा इत्यादि पाने की उम्मीद से होता है। 6 वर्ष से कम उम्र के बालकों में माता पिता का अनुमोदन पाने की तीव्र इच्छा होती है। जब बालक स्कूल में प्रवेश करते हैं तब वे शिक्षक, साथियों तथा अपने से अधिक उम्र के बालकों से अनुमोदन के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।

मैस्लो  का अभिप्रेरणा सिद्धांत Maslow’s Law of Motivation

सलो के अभिप्रेरणा सिद्धांत को आवश्यकता का सिद्धांत कहा जाता है। मैसले ने ध्यकता के सिद्धांत को 5 शृंखलाबद्ध क्रम में विभाजित किया है।

स्वयं यर्थाथीकरण

सम्मान/आदर

सामाजिक आवश्यकता

सुरक्षा आधारभूत आवश्यकता (रोटी. कपड़ा और मकान)

सीखने में अभिप्रेरण का महत्व Importance of Motivation in Learning – मेल्टन (Melton) के अनुसार, “अभिप्रेरण सीखने की एक आवश्यक शर्त है।” एण्डरसन (Anderson) के अनुसार, “सीखने की प्रक्रिया अच्छी तरह तभी होगी जबकि अभिप्रेरण होगा।’

शिक्षा मनोवैज्ञिानिकों ने अभिप्रेरण को राजकीय मार्ग कहा है। अभिप्रेरण का प्रभाव सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। जो इस प्रकार हैसीखने का उद्देश्य (Purpose to Learn) पुरस्कार एवं दंड (Reward and Punishment) प्रगति तथा परिणाम का ज्ञान (Knowledge of Progress and Results) प्रशंसा एवं निंदा (Praise and Reproof) स्पर्धा, प्रतियोगिता तथा सहयोगिता (Rivalry, Competition and Operation) लक्ष्य निर्धारण व्यवहार या आकांक्षा स्तर प्रोत्साहन के रूप में सामाजिक अनुमोदन प्रोत्साहन के रूप में व्यावसायिक लक्ष्य परीक्षोपयोगी तथ्य आभप्रेरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षार्थी की आंतरिक शक्ति वातावरण के विभिन्न लक्ष्य वस्तुओं की ओर निर्देशित होती है। शारारिक अभिप्रेरण जन्म से ही बालक में मौजूद रहते हैं जैसे नीद, भूख, प्यास, दर्द-परिवर्जन इत्यादि।

> शारीरिक अभिप्रेरण से बालकों में समस्थिति (Homeostasis) अर्थात् शरीर के अंदर संतुलन बनाये रखने का गुण होता है।

> अर्जित अभिप्रेरण जन्म के बाद बालक सीखता है।

> मैसले के अभिप्रेरणा के सिद्धांत को आवश्यकता का सिद्धांत भी कहा जाता है।

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Sangyan Ttha Smveg Study Material PDF

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Sangyan Ttha Smveg Study Material PDF : नमस्कार दोस्तों आज की पोस्ट में आप UPTET and CTET Bal Vikas Evam shiksha Shastra Chapter 3.4 संज्ञान तथा संवेग in Hindi PDF में Free Download करने जा रहे है |

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हम अभ्यर्थियो के लिए रोजाना Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books Chapter Wise Study Material With PDF में शेयर कर रहे है उम्मीद है आपको हमार द्वारा बनाये जा रहे है UPTET and CTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter को अच्छे से पढ़ रहे होंगे | Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books सभी TET Exam Question Answer Paper के लिए बहुत ही म्हत्त्प्वूर्ण मानी जाती है जिसे हम रोजाना Chapter Wise Share कर रहे है |

अभ्यर्थियो को बता दे की हम इस पोस्ट से पहले भी UPTET and CTET All Books and Notes in Hindi English PDF में भी शेयर कर चुके है जिसका लिंक आपको उपर मेनूबार में दिया जा रहा है | अभ्यर्थी निचे दिए जा रहे टेबल पर जाकर Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books Chapter 3.4 संज्ञान तथा संवेग in Hindi PDF में Free Download कर सकते है |

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Baccha Study Material PDF

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Baccha Study Material PDF : नमस्कार दोस्तों आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books and Notes Chapter 3.3 बच्चा, एक समस्या-समाधक तथा वैज्ञानिक अनवेषक के रूप में जिसे आप in Hindi Free Download करने जा रहे है |

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अभ्यर्थियो को बता दे की रोजाना हम आपके लिए Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books Chapter Wise शेयर करते रहते है जिसके सभी Chapter आप उपर दिए गये लिंक पर क्लीक करने प्राप्त कर सकते है |

Bal Viaks Evam Shiksha Shastra Books All TET Exam Question Paper में बहुत ही म्हत्त्प्वूर्ण मानी जाती है यदि आप UPTET या CTET Exam Question Paper 2022 की तैयारी कर रहे है तो हमारे द्वारा बनाई जा रही है Bal Vikas Evam shiksha Shastra Books के सभी Chapter आप Free PDF में Download करके तैयारी कर सकते है | अभ्यर्थी निचे दिए जा रहे Table में Bal Vikas Evam shiksha Shastra Books Chapter 3.3 बच्चा, एक समस्या-समाधक तथा वैज्ञानिक अनवेषक के रूप में PDF download कर सकते है |

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Shikshan Evam Adhigam Study Material PDF

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Shikshan Evam Adhigam Study Material PDF : Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test (UPTET) and Central Teacher Eligibility Test (CTET) Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books & Notes Chapter 3.2 शिक्षण एवं अधिगम in Hindi PDF में Free Download करने जा रहे है जिसे आप सबसे निचे दिए गये टेबल पर download के लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते है | Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books सभी राज्यों के TET Exam में Questions के रूप में पूछी जाती है जो सभी TET Exam Question Answer Paper की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियो के लिए बहुत ही म्हत्त्प्वूर्ण है |

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Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books हम रोजाना Chapter Wise / Topic Wise in Hindi PDF and Study Material में शेयर कर रहे है जिसका लिंक भी हम आपको इसी पोस्ट में शेयर भी कर रहे है |

UPTET Exam Question Answer Model Sample Paper 2022 के लिए Online Notification जारी होने ही वाला है जिसकी तैयारी के लिए हम आपको रोजान UPTET and CTET Books and notes Chapter Wise शेयर भी कर रहे है | अभ्यर्थी निचे दिए गए लिंक के माध्यम से Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 3.2 in Hindi PDF में free Download कर सकते है |

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Samaveshi Shiksha Objective Question Answer

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Samaveshi Shiksha Objective Question Answer: नमस्कार दोस्त में दीपक कुमार आप सभी का फिर से स्वागत करता हूँ हमारी Website SscLatestNews.Com में, आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books & Notes Chapter 2.5 Objective Type Questions Answers in Hindi PDF में Free Download करने जा रहे है जिसका लिंक आपको सबसे निचे टेबल में दिया गया है |

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UPTET CTET और सभी राज्यों में TET Exam Question Answer Paper 2022 में Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books को बहुत ही म्हत्त्प्वूर्ण माना जाता है जिसकी तैयारी के लिए अभ्यर्थी कौचिग सेंटर भी ज्वाइन करते है | अभ्यर्थियो को बता दे की हमारी वेबसाइट के माध्यम से आप आने वाले UPTET Exam Paper 2022 की तैयारी के लिए All TET Books notes Previous year Questions Answers Sample Model Paper in Hindi and English PDF में Free Download कर सकते है जिसके लिए आपको हमारी वेबसाइट को किसी भी तरह का कोई भी शुल्क नही देना होगा |

हमारी इस पोस्ट में आपको समावेशी शिक्षा के सिद्धांत PDF और साथ ही Study Material in Hindi में दिए गये जिसे UPTET Exam Paper में बहुत ही म्हत्त्प्वूर्ण माना जाता है | अभ्यर्थी निचे दिए गये टेबल से UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Objective Question With Answer PDF में Free download कर सकते है |

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UPTET Baccho ka Sochna Evam Sikhna Study Material in Hindi

UPTET Baccho ka Sochna Evam Sikhna Study Material in Hindi : नमस्कार दोस्तों एक बार फिर से स्वागत करते है आप सभी का हमारी वेबसाइट SscLatestnews.Com में, आज की इस पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET and CTET Lucent’s Books Chapter 3.1 बच्चो का सोचना एवं सीखना Study Materail in Hindi PDF Download करने जा रहे है जिसके लिए आपको सबसे निचे दिए गए टेबल पर जाकर प्राप्त करना होगा |

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Baccho ka Sochna Evam Sikhna TET Exam Question paper 2022 के लिए बहुत ही म्हत्त्प्वूर्ण माना जा रहा है उम्मीद है की आन वाले UPTET and CTET Exam Question Paper 2022 में Chapter 3.1 बच्चो का सोचना एवं सीखना के Questions को जरुर पूछा जायेगा |

UPTET and CTET Exam Question की तैयारी के लिए हम अभ्यर्थियो को रोजाना UPTET Books and Notes Chapter Wise / Topic Wise Share करते रहते है जिसका लिंक भी हम आपको इसी पोस्ट में शेयर करेंगे | अभ्यर्थी निचे दिए गए टेबल पर जाकर UPTET Chapter 3.1 PDF में Free Download कर सकते है |

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Pratibhashali Study Material in Hindi

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Pratibhashali Study Material in Hindi : आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET and CTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books Chapter 2.4 प्रतिभाशाली, स्रजनात्मक तथा विशेष आवश्यकता वाले बालक Study Material in Hindi PDF Free Download करने जा रहे है |

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प्रतिभाशाली, सृजनात्मक तथा विशेष आवश्यकता वाले बालक | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 2.4 Study Material in Hindi

प्रतिभाशाली बालक Talented Children

पॉल विट्टी के अनुसार, “प्रखर बुद्धि बालक वह है जो किसी कार्य को करने प्रयास में निरन्तर उच्च स्तर बनाये रखता है।”

कॉलसनिक के अनुसार, “वह बालक जो अपनी आयु-स्तर के बालकों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्वपूर्ण नई देनदे।”

टरमन के अनुसार, “प्रतिभावान बालक शारीरिक विकास, शैक्षणिक उपलब्धि बनि और व्यक्तित्व में वरिष्ठ होते हैं।’

प्रतिभावान बालकों के अंतर्गत उच्च बुद्धिलब्धि वाले बालक के साथ-साथ वे सभी बालक सम्मिलित होते हैं, जो दूसरे बालकों से किसी भी क्षेत्र में अति वरिष्ठ होते हैं, जैसे—कलावर्ग, साहित्य, काव्य-रचना आदि।

प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएँ

प्रतिभाशाली बालकों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

★ प्रतिभाशाली बालकों में सीखने की गति तीव्र एवं शुद्ध होती है तथा स्मरण शक्ति उच्च स्तर की होती है।

प्रतिभाशाली बालकों की बुद्धिलब्धि 120 से अधिक होती है। ऐसे बालक अपनी कमियों को स्वयं पहचानते हैं त सुझाव आसानी से मान लेते हैं।

* ऐसे बालकों में सामान्य ज्ञान का स्तर उच्च होता है और शब्दकोश विस्तृत होता है।

* ऐसे बालकों का शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक विकास अन्य बालकों की अपेक्षा उच्च कोटि का होता है।

★ ऐसे बालकों में सीखने की गति एवं प्रश्नों के उत्तर देने की गति तीव्र होती है।

★ ऐसे बालक अधिक महत्वाकांक्षी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के होते हैं।

★ ऐसे बालक किसी घटना का निरीक्षण बारीकी के साथ करते हैं। प्रतिभावान बालकों की पहचान प्रतिभावान बालकों की पहचान के लिए अध्यापक निम्नलिखित विधियों का उपयोग कर सकते हैं

(a) प्रतिभावान बालकों के व्यक्तित्व के बारे में अध्यापक अन्य व्यक्तियों से भी सूचनाएँ एकत्रित कर सकता है।

(b) बुद्धि परी बद्धि परीक्षणों के द्वारा प्रतिभावान बालकों की पहचान अध्यापक कर सकते हैं।

डी डॉन और कफ ने प्रतिभावान बालक के गुणों की एक ऐसी सूची तैयार की जिसके आधार पर प्रतिभावान बालकों का पता लगाया जा सकता है। यह सूची इस प्रकार है-

* सामान्य बुद्धि का प्रयोग अधिक करते हैं।

★ शब्द ज्ञान बहुत विस्तृत होता है।

★ मौलिक चिन्तन कर सकते हैं। + ये स्पष्ट रूप से सोचने, अर्थों को समझने और सम्बन्धों की पहचान करने में श्रेष्ठ होते हैं।

कठिन कार्यों को आसानी से कर लेते हैं। (त) उपलब्धि परीक्षाओं के द्वारा भी प्रतिभावान बालक की पहचान अध्यापक करते हैं।

(e) अभिरुचि परीक्षाओं से भी छात्र की प्रतिभा का अनुमान लगाया जा सकता है। प्रतिभावान बालकों की शैक्षिक व्यवस्था प्रतिभावान बालकों के लिए कुछ विशेष शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है।  ये शैक्षिक व्यवस्थाएँ इस प्रकार होनी चाहिए

(a) अध्यापकों को चाहिए कि प्रतिभावान बालकों में सृजनात्मक शक्ति का उचित प्रयोग कर उन्हें समाज-विरोधी गतिविधि में सम्मिलित नहीं होने दें। ऐसी शिक्षा बालकों को प्रदान करनी चाहिए ताकि वे सामाजिक बुराइयों से दूर रह सकें। (b) कक्षा में छात्रों को तीव्र प्रोन्नति नहीं प्रदान करना चाहिए। (c) प्रतिभावान बालकों की शिक्षा ऐसे बालकों के ध्यानपूर्वक अध्ययन पर आधारित होना चाहिए।

(d) प्रतिभावान बालकों की शिक्षा उसके व्यक्तित्व के सभी पक्षों के विकास पर केन्द्रित होनी चाहिए। प्रतिभावान बालक को सर्वांगीण विकास के लिए अध्यापक को अत्यधिक परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। अतः इस कार्य के लिए उसे कक्षा और स्कूल में अधिक सक्रिय रखना चाहिए।

(e)प्रतिभावान बालकों को पाठ्यक्रम समझने में सामान्य बालकों से कम समय लगता है। यह बचा हुआ समय उन्हें किसी और कार्य में उपयोग करना चाहिए।

(f) प्रतिभावान बालकों को घर के लिए विशेष कार्य दिया जाना चाहिए ताकि वे अपनी प्रतिभा का उचित उपयोग कर सकें।

(g) प्रतिभावान बालकों की शिक्षा के लिए और उनमें नेतृत्व विकास के लिए उत्तरदायित्व का कार्य सौंपना चाहिए।

सृजनात्मकता (Creativity) “सृजनात्मकता वह अवधारणा है जिसमें उपलब्ध साधनों नवीन या अनजानी वस्तु, विचार या धारणा को जन्म दिया जाता है। सृजनात्मकता | अर्थ है रचना सम्बन्धी योग्यता नवीन उत्पाद की रचना। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जनात्मक स्थिति अन्वेषणात्मक होती है।”

रूश (Rush) के अनुसार, “सृजनात्मक मौलिकता वास्तव में किसी भी क्रिया में घटित होती है।’

सृजनात्मकता के तत्व Elements of Creativity

गिलफोर्ड के अनुसार सृजनात्मकता के तत्व निम्नलिखित हैं-

(a) तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता : जो व्यक्ति वर्तमान परिस्थिति से हटकर, उससे आगे की सोचता है और अपने चिन्तन को मूर्त रूप देता है सृजनात्मक तत्व पाया जाता है।

(b) समस्या की पुनर्व्याख्या : सृजनात्मकता का एक-एक तत्व समस्या की पना है। वकील, अध्यापक, व्याख्याता, नेता आदि इस रूप में सृजनात्मक कहलाते हैं कि समस्या की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं।

(c) सामंजस्य : जो बालक तथा व्यक्ति असामान्य किन्तु प्रासंगिक विचार तथा तथ्यों के साथ समन्वय स्थापित करते हैं, वे सृजनात्मक कहलाते हैं।

(d) अन्य के विचारों में परिवर्तन : ऐसे व्यक्तियों में भी सृजनात्मकता विद्यमान रहती है, जो तर्क, चिन्तन तथा प्रमाण द्वारा व्यक्तियों के विचारों में परिवर्तन कर देते हैं।

सृजनात्मकता की विशेषताएँ Characteristics of Creativity

हरलॉक के अनुसार सृजनात्मकता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(a) सृजनात्मकता एक प्रक्रिया या योग्यता है, यह उत्पादन नहीं है।

(b) सृजनात्मकता की प्रक्रिया लक्ष्य निर्देशित होती है अथवा यह समूह और समाज के लिए लाभदायक होती है।

(c) सृजनात्मकता मौखिक हो या लिखित, यह चाहे मूर्त हो या अमूर्त, प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति के लिए यह अभूतपूर्व होती है।

(d) सृजनात्मकता चिन्तन का एक तरीका है। यह बुद्धि का पर्यायवाची नहीं है। (e) सृजन (Creation) की योग्यता मान्य ज्ञान के अर्जन पर आधारित है।

(0 सृजनात्मकता एक प्रकार की नियमित कल्पना है जिससे किसी-न-किसी उपलब्धि का निर्देशन प्राप्त होता है।

सृजनात्मकता की पहचान Identification of Creativity

सजनात्मकता की पहचान करना शिक्षक के लिए अत्यन्त आवश्यक है। सृजनशाल बालकों की पहचान इस प्रकार की जा सकती है

(a) सृजनशील बालकों में मौलिकता के दर्शन होते हैं। सृजनशील बालकों का दृष्टिकोण सामान्य व्यक्तियों से अलग होता है।

(b) स्वतन्त्र निर्णय की क्षमता सृजनशील की पहचान है।

(c) परिहासप्रियता भी सृजनात्मकता की पहचान है।

उत्सुकता भी सृजनात्मकता का एक आवश्यक तत्व है।

सजनशील बालको मे संवेदनशीलता अधिक पायी जाती है।

सजनशील बालको मे स्वायत्तता का भाव पाया जाता है।

लकों के लिए सृजनात्मकता का महत्व importance of Creativity for Children

सजनात्मकता का बालकों के लिए बहुत अधिक महत्व है क्योंकि इससे बालकों को सन्तोष ही प्राप्त नहीं होता है बल्कि बालक को इससे व्यक्तिगत आनन्द भी प्राप्त होता है। सृजनात्मकता से प्राप्त सन्तोष और आनन्द का बालकों के व्यक्तित्व पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, बच्चे अपने खेल में जब किसी नई खोज का सृजन करते हैं तो उन्हें बहुत आनन्द आता है और सन्तोष प्राप्त होता है। वह अपने खेल में किसी डिब्बे को उल्टा कर लकड़ी से पीटने वाला बाजा बना सकते हैं, दो कुर्सियों पर चादर ढंक कर छुपने के लिए घर बना सकते हैं या दीवार पर अपने ढंग से स्याही, पेन्सिल या खड़िया से ड्राइंग बना सकते हैं।

सजनात्मकता का परीक्षण Experiments of Creativity

सृजनात्मकता की पहचान के लिए गिलफोर्ड ने अनेक परीक्षणों का निर्माण किया है। ये परीक्षण निरन्तरता (Fluency), लोचनीयता (Flexibility), मौलिकता (Originality) तथा विस्तार (Elaboration) का मापन करते हैं। ये परीक्षण निम्नलिखित हैं-

★ चित्र-पूर्ति परीक्षण → चित्रपूर्ति परीक्षण में अपूर्ण चित्रों को पूरा करना पड़ता है। ★ वृत-परीक्षण → इस परीक्षण में वृत्त (Circle) में चित्र बनाये जाते हैं। ★ प्रोडक्ट इम्प्रूवमेन्ट टारक → चूने के खिलौनों द्वारा नूतन विचारों को लेखबद्ध

करके सृजनात्मकता पर बल दिया जाता है। ★ टीन के डिब्बे → खाली डिब्बों से नवीन वस्तुओं का सृजन कराया जाता है। फायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त Freud’s Psycho-Analytical Theory – फ्रायड पहला व्यक्ति था जिसने सर्वप्रथम बाल्यावस्था के अनुभवों को वयस्क व्यवहार र चेतन्यता का आधार बताया। फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व के तीन भाग हैं- ld, Ego और Super Ego

इड (ID): अचेतन मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है। अचेतन में निहित विभिन्न कार की इच्छाओं, प्रेरणाओं और वासनाओं की तुरन्त सन्तुष्टि चाहता है। यह सुखवादी सिद्धान्तों से पूर्णतः प्रभावित होता है।

इगो (Ego): यह इड का ही विकसित रूप है, व्यक्तित्व का तार्किक व्यवस्थित कपूर्ण भाग है। परन्तु इसे शक्ति इड से ही प्राप्त होती है। यह वातावरण के साथ माता करके इड की Super Ego इच्छाओं को पूरा करने में मदद कराता है।

सुपर इगो (Super Ego): व्यक्ति का अन्त में विकसित होने वाला नैतिक पक्ष यह बाल्यावस्था में इगो से ही विकसित होता है।

उदाहरण माना कि एक लड़की सड़क पर जा रही है। उसी दिशा में जा रहे लड़के के मन में उस लड़की के साथ कुछ गलत करने की इच्छा उठती है फिर लडकी मन में दूसरी इच्छा उठती है कि यह जगह उपयुक्त नहीं है, कोई देख लेगा तो पिटा होगी। आगे जाने के बाद जहाँ सुनसान है वहाँ इसके साथ यह करना उपयुक्त होगा। लड़की के पीछे चलते-चलते उसके मन में तीसरी इच्छा उठती है कि यह एक असहाय लड़की किसी की बहन हो सकती है, हमारी बहन के समान हो सकती है तथा किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं करना चाहिए।

अतः लड़के के मन में उत्पन्न पहली इच्छा इड (ID) की है, दूसरी इगो (Ego) की इच्छा है और तीसरी सुपर इगो (Super Ego) की इच्छा है।

विशिष्ट बालक Special Children

 > विशिष्ट बालक को हेवार्ड एवं औरलैन्स्की (Heward & Orlansky) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एक्सेप्शनल चिल्ड्रेन’ में इस प्रकार परिभाषित किया है “विशिष्ट एक ऐसा अंतर्रोशित पद है जिसका तात्पर्य किसी भी वैसे बालक से होता है जिसका निष्पादन मानक (Norm) से ऊपर या नीचे इस हद तक विचलित होता है कि उसके लिए विशेष शिक्षा के कार्यक्रम की जरूरत होती है।”

विशिष्ट बालकों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(a) विशिष्ट बालक सामान्य या औसत बालकों से कई तरह के गुणों में (जिसमें मानसिक एवं शारीरिक गुण मुख्य होता है) विचलित होते हैं।

(b) विशिष्ट बालकों का विचलन इस सीमा तक होता है कि उन्हें विशेष शिक्षा देने की जरूरत होती है।

(c) विशिष्ट बालकों से शिक्षकों को सबसे अधिक चुनौती मिलती है। अतः ऐसे बालकों पर शिक्षकों का ध्यान सबसे अधिक होता है।

(d) ऐसे बालकों पर माता-पिता, अभिभावक एवं सामाजिक संगठन द्वारा भी विशेष नजर रखी जाती है।

अधिगम अक्षम बालकों की शिक्षा

अधिगम अक्षम बालकों की शिक्षा के लिए दो उपागम का प्रयोग किया जाता है+ कौशल प्रशिक्षण उपागम

→ यह उपागम बालक के विशिष्ट कौशलों के विषय

में सीधे मापन पर आधारित है। योग्यता प्रशिक्षण उपागम → ऐसे उपागम का प्रयोग बालक की आधारभूत योग्यताओं में व्याप्त अक्षमताओं में सुधार के लिए निर्देशात्मक प्रक्रियाओं के निर्माण पर मुख्य रूप से किया जाता है।

अधिगम अक्षमता के प्रकार

पढने की अक्षमता मौखिक रूप से | लिखने की

गणित सम्बन्धी सीखने की अक्षमता | अक्षमता

समस्याएँ एलेक्सिया अफेजिया

अग्रेफिया वर्बल डिस्कैल्कुलिया (Alexsia) (Aphasia)

→ अँप्रेक्सिया डिस्लैक्सिया > डिस्फेजिया

ग्राफिकल डिस्कैल्कुलिया

> डिस्ग्राफिया (Dyslexia) (Dysphasia)

लैक्सिल डिस्कैल्फुलिया > डिस्प्रैक्सिया

परीक्षोपयोगी तथ्य

प्रतिभाशाली बालक वे हैं जिनकी बुद्धिलब्धि 120 से ऊपर होती है।

> प्रतिभाशाली बालक वह है जो लगातार उच्च स्तर का कार्य निष्पादन किसी भी सामान्य प्रयास के क्षेत्र में प्रदर्शित करता है।

> गिलफोर्ड ने ‘अभिसारी चिन्तन’ शब्द का प्रयोग सृजनात्मकता के लिए किया है।

> सृजनशीलता के पोषण के लिए अध्यापक को ब्रेल स्टॉर्मिंग विधि की सहायता लेनी चाहिए। > सृजनात्मक शिक्षार्थी वह है जो पार्श्व चिंतन और समस्या समाधान में अच्छा है।

> सृजनशीलता वह अवधारणा है जिसमें उपलब्ध साधनों से नवीन विचारों को जन्म दिया जाता है। मौलिकता, धारा-प्रवाहिता तथा लचीलापन इसके प्रमुख तत्व हैं।

→ पढ़ने की अक्षमता संबंधी विकार को डिस्लैक्सिया कहते हैं। ऐसे बालक ‘चोटी’ को __ ‘रोटी’ एवं ‘दरवाजा’ को ‘वाजा’ पढ़ते हैं।

– गणित संबंधी अधिगम अक्षमता के विकार को डिस्कैल्कुलिया (Dyscalculia)कहते हैं।

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Pichade Study Material in Hindi

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Pichade Study Material in Hindi : आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET and CTET Chapter 2.3 Pichade Viklang Tatha Mansik Rup Se Pichde Balak Study Material in Hindi साथ में PDF भी Free Download करने जा रहे है जिसे आप सबसे निचे दिए गये Table पर जाकर प्राप्त कर सकते है |

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Pichade Study Material in Hindi

पिछडे, विकलांग तथा मानसिक रूप से पिछड़े बालक | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 2.3 Study Material in Hindi

पिछडे बालक (Backward Children): पिछड़े बालक का तात्पर्य वैसे बाल होता है जो बद्धि, शिक्षा इत्यादि में अपने समकक्षों से काफी पीछे रह जाते ।

कछ लोग बालकों के पिछड़ेपन (Backwardness) को दो आधारों पर मापते हैं बटि के आधार पर तथा शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर ।

बद्धि के आधार पर पिछड़ेपन को मानसिक मंदता (Mental Retardation) कहते शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर पिछड़ेपन को शैक्षिक मंदता (Educational Retardation) कहा जाता है।

बर्ट (Burt) के अनुसार, “पिछड़ा बालक वह है जो अपने स्कूल जीवन के बीच अपनी आयु के समकक्ष से नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ हो ।

पिछड़े बालक को मूलतः शैक्षिक लब्धि (Educational Quotient or EQ) के रूप में परिभाषित किया है।

EQ=EAx 100

EA = Educational Age (शिक्षा आयु)

CA = Chronological Age (arafach 371°)

बर्ट के अनुसार जिस बालक की शैक्षिक लब्धि 85 से कम होती है उसकी पहचान निश्चित रूप से पिछड़े बालक के रूप में की जाती है।

उदाहरण के लिए किसी छात्र की वास्तविक आयु 15 वर्ष की तथा शैक्षिक आयु जो विभिन्न विषयों में बालक की मानसिक आयु का औसत होता है, 12 वर्ष की है तो उसकी शैक्षिक लब्धि 12×100 = 80 होगी और इस तरह के बालक को एक पिछड़ा बालक कहा जाता है।

– पिछड़े बालक की पहचान निम्नांकित आधार पर की जाती है-

* पिछड़े बालक की मानसिक आयु अपने समकक्षों से कम होती है।

★ पिछड़े बालक की शैक्षिक आयु भी अपने समकक्षों से कम होती है।

* ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धि सामान्य या औसत से कम होती है।

बालकों के पिछड़ेपन के कारण Causes of Backwardness Among Children

बालकों के पिछड़ेपन के कारण निम्नलिखित हैं-

बौद्धिक क्षमता की कमी (Lack of Intellectual Ability): बट Ability): बर्ट के अनुसार

बालको के पिछड़ेपन का सबसे महत्वपूर्ण कारण उम्र के अनुसार बौद्धिक क्षमता का कम बिल्कुल नहीं होना है। बौद्धिक क्षमता के अभाव में वे सामान्य या औसत बुद्धि के लिए बनाये गये पाठ्यक्रम को समझ नहीं पाते हैं और परिणामस्वरूप पिछड़ जाते हैं।

(b) वातावरण का प्रभाव (Effect of Environment) छात्रों के पिछड़ेपन में वातावरण का भी काफी प्रभाव पड़ता है। यदि बालक का घरेलू वातावरण तथा स्कूली वातावरण शिक्षा की दृष्टि से उत्साहवर्धक नहीं होता है तो इससे बालकों की शैक्षिक आयु वास्तविक आयु के अनुकूल नहीं बढ़ पाती है और बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं।

(c) शारीरिक दोष (Physical Defects): शारीरिक दोष के कारण भी बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं। अंधे, बहरे, गूंगे बालकों में पिछड़ेपन का मूल कारण उनकी शारीरिक विकलांगता ही होती है। शारीरिक दोष के कारण ऐसे बालकों की अभिरुचि शिक्षा में कम होने लगती है। > बर्ट (Burt) के अध्ययन के अनुसार करीब 9% बालकों के पिछड़ेपन का कारण शारीरिक दोष है।

(d) स्वभाव संबंधी दोष (Tempramental Defects) कुछ बालक स्वभाव संबंधी दोष के कारण अपने साथियों से पिछड़े जाते हैं। ऐसे बालक प्रायः तुनुकमिजाजी, आक्रामक (Aggressive) एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं। इसी अवगुण के कारण उनका समायोजन कक्षा में न तो शिक्षक के साथ और न ही अपने साथियों के साथ हो पाता है। परिणामस्वरूप ऐसे छात्र कक्षा में पिछड़ जाते हैं।

(e) कर्त्तव्यव्यागिता (Trunacy) : कुछ बालक ऐसे होते हैं जो कक्षा में ठीक ढंग से शिक्षक के व्याख्यान पर ध्यान नहीं देते और मौका मिलते ही कक्षा से भाग खड़े होते हैं। जब कक्षा में वे नियमित रूप से बैठते ही नहीं हैं, तो उन्हें पाठ्यक्रम (Curriculum) ठीक ढंग से नहीं समझ में आता है और इससे उनकी शैक्षिक अभिरुचि उत्तरोत्तर घटती जाती है और कक्षा में वे पिछड़ते चले जाते हैं।

पिछड़े बालकों की समस्याएँ Problems of Backward Children

पिछड़े बालकों की समस्याएँ निम्नलिखित हैं

* पिछड़े बालकों की सबसे बड़ी समस्या कक्षा में समायोजन से संबंधित होती है। ऐसे बालकों को कक्षा का पाठ्यक्रम काफी कठिन लगता है जिसे वे समझ नहीं पाते और वे अन्य सहकक्षी बालकों की तुलना में पीछे रह जाते हैं।

* ऐसे बालकों की मनोवृत्ति स्कूल एवं शिक्षकों के प्रति नकारात्मक (Negative) होती है, क्योंकि उनका स्कूल में साथियों द्वारा अक्सर मजाक उड़ाया जाता

* ऐसे बालकों में पढ़ने लिखने एवं सीखने की अभिप्रेरणा बहुत ही कम होती है, क्योंकि इनकी घरेलू एवं व्यक्तिगत अनुभूतियाँ इतनी तीखी एवं कंठापर्ण (Frustrating) होती हैं कि उनके ऐसे अभिप्रेरणों को वे बिल्कुल ही समाप्त कर देती हैं।

ऐसे बालकों को प्रायः लगातार असफलता ही मिलती है. अ विश्वास, मनोबल, एवं आत्म-निर्भरता जैसा कोई गण नहीं विक ऐसे बालक अधिक चिंतित एवं तनावग्रस्त रहते हैं, क्योंकि

लगते हैं कि उनकी शैक्षिक उपलब्धियाँ काफी पीछे पड़ रही हैं। पिछडे बालक की शिक्षा एवं समायोजन Education and Adjustment of Backward Child शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने पिछड़े बालक की शिक्षा एवं समायोजन के उपाय बताये हैं न के निम्नलिखित

(a) मानसिक क्षमता के अनुकूल शिक्षा (Education According to Mental Abil पिछड़े बालक को उनके बुद्धि-स्तर के अनुकूल अलग से पाठ्यक्रम तैयार करने शिक्षा देनी चाहिए। ऐसी परिस्थिति में पिछड़े बालक उन्नत शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे अपनी कक्षा में अन्य लोगों के साथ समायोजन भी ठीक ढंग से कर सकेंगे। जहाँ तक संभव हो ऐसे बालकों की शिक्षा व्यवस्था विशिष्ट बनाकर या विशिष्ट स्कूल बनाकर दी जानी चाहिए।

(b) व्यक्तिगत ध्यान (Individual Attention): पिछड़े बालकों पर व्यक्तिगत ध्यान देने से छात्र की असफलता के सही कारणों का पता शिक्षक को चलता है और तब वे उसी के अनुसार अपना कार्यक्रम तय कर बालकों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए प्रयत्नशील हो उठते हैं।

(c) उपयुक्त वातावरण प्रदान करना (To Provide Adequate Environment). पिछड़े बालकों में उपयुक्त घरेलू वातावरण एवं स्कूली वातावरण की कमी एक प्रमुख कारण है। बालकों का घरेलू वातावरण शिक्षा के दृष्टिकोण से उत्तेजक (Stimulating) एवं अनुकूल (Favourable) होना चाहिए।

(d) शारीरिक दोषों में सुधार लाकर (By Treating Physical Defects): पिछड़ बालकों का कुछ प्रतिशत ऐसा होता है जिनमें शारीरिक दोष के कारण ही पिछड़ापन मूल रूप से पाया जाता है। इन दोषों में दृष्टि-दोष (Visual Defects), श्रवण-दोष (Auditory Defects), भाषा संबधी दोष (Speech Defects) आदि प्रधान होते हैं।

(e) शिक्षक को चाहिए कि ऐसे बालकों की अभिरुचि (Interest) उन विषयों में जाग्रत करें जिनमें वे अधिक पिछड़े हुए हैं। इसके लिए शिक्षकों को विशेष प्रयास (efforts/ करना चाहिए बालकों की अभिरुचि बनाये रखने के लिए (विशेषकर छोटे बालका का खिलौनों तथा श्रव्य दृष्टि साधनों (Audio-VisualAids) का प्रयोग अधिक करना चाहिए |

आपराधी बालक Delinquent Child

– जब कोई बालक सामाजिक, आर्थिक, नैतिक या शैक्षणिक नियम का उल्लंघन है, तो उसके इन व्यवहारों को बाल-अपराध तथा उस बालक को अपराधा (Delinquent Child) कहा जाता है।

चोरी करना , स्कूल से भाग जाना, घर से समय पर स्कूल के लिए निकलना किंतु नहीं स्कल में अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न करना, कक्षा में साथियों के साथ कामक व्यवहार करना इत्यादि बाल अपराध के कुछ उदाहरण हैं। बाल अपराधी में कुछ गुण सामान्य पाये जाते हैं, जो इस प्रकार हैं..

शारीरिक गुण (Physical Characteristics): अक्सर बाल अपराधी शरीर

पाट होते हैं तथा उनके शरीर की मांसपेशियाँ एवं हड्डियाँ समान उम्र के अन्य हालकों से अधिक विकसित होती हैं।

का स्वभावगत गुण (Temperamental Characteristics): ऐसे बालक स्वभाव से

मक (Aggressive), सांवेगिक रूप से अस्थिर (Emotionally Unstable), बेचैन Rastless), आवेगशील (Impulsive) एवं विध्वंसक होते हैं।

ह) मनोवृत्ति-संबंधी गुण (Attitudinal Characteristics): ऐसे बालकों की मनोवृत्ति कल अधिकारियों के प्रति नकारात्मक होती है। वे प्रायः शक्की (Suspicious), बैरपूर्ण, अवज्ञाकारी (Defiant) मनोवृत्ति दिखाते हैं। माता-पिता एवं स्कूल के अधिकारियों एवं शिक्षकों के प्रति वे प्रायः अनादर का व्यवहार दिखाते हैं।

(d) सामाजिक सांस्कृतिक गुण (Socio-Cultural Characteristics): ऐसे बालकों में दूसरों के प्रति स्नेह, प्यार एवं अनुकंपा (Compassion) नहीं होते हैं। इनका नैतिक स्तर काफी नीचा होता है, जिसके फलस्वरूप उन्हें कोई सामाजिक एवं सांस्कृतिक नियमों के प्रतिकूल काम करने में हिचकिचाहट नहीं होती।

(e) मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ (Psychological Characteristics): ऐसे बालक किसी समस्या के समाधान में मात्र सीधा एवं सुगम रास्ते को अपनाते हैं। अपराधी व्यवहार के प्रकार Types of Delinquent Behaviour

हम यह स्वीकार करते हैं कि उनके व्यक्तित्व के उतने ही विभिन्न पहल होते हैं जितने सामान्य बालकों के व्यक्तित्व के होते हैं।’

जन्दबद्धि बालक की विशेषताएँ characteristics of Mental by Retarded Children

स्किनर के अनुसार

+ सीखी हुई बात को नई परिस्थिति में प्रयोग करने में कठिनाई।

* व्यक्तियों और घटनाओं के प्रति ठोस और विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ।

★ मान्यताओं के सम्बन्ध में विशिष्ट विश्वास ।

★ दूसरो की थोड़ी भी चिन्ता न करने की बजाय अपनी चिन्ता ।

सामान्य रूप से मन्दबुद्धि बालक में पायी जाने वाली विशेषताएँ निम्नलिखित है

(a) सीखी हुई बात का प्रयोग नई परिस्थिति में कठिनाई से कर पाते हैं।

(b) विद्यालय में असफलता के कारण शीघ्र निराश होते हैं।

(c) कार्य-कारण के सम्बन्ध में सही धारणाएँ बनाने में असफल होते हैं।

(d) सामाजिक मान्यताओं के सम्बन्ध में इनके दृढ़ विश्वास होते हैं।

(e) ये दूसरों की बजाय अपनी अधिक चिन्ता करते हैं।

(f) समस्याओं के सम्बन्ध मे उपयुक्त निर्णय नहीं ले पाते हैं और इनका जो भी निर्णय होता है उसे ये परिस्थितियों की दुर्बलता के कारण महत्व नहीं दे पाते हैं।

(g) ये नये प्रत्ययों को ग्रहण करने में कमजोर होते हैं।

(h) इनका व्यक्तित्व अनुपयुक्त होता है।

(i) इनका विभिन्न प्रकार का समायोजन विशेष रूप से दुर्बल होता है।

(j) इनमें आत्म-विश्वास का अभाव पाया जाता है। इनके अधिगम की गति मन्द होती है तथा सीखने में त्रुटियाँ अधिक होती हैं। इनका ध्यान विस्तार सीमित होता है।

मन्दबुद्धिता के कारण Causes of Mental Deficiency

(a) वंशानुक्रम (Heredity)

(b) सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors)

(c) छूत की बीमारियाँ (Infectious Disease)

(d) ग्रन्थीय असन्तुलन (Glandular Imbalance)

(e) एक्स-रे का प्रभाव (X-ray Effect)

(1) शारीरिक आघात (Pysical Injuries)

(g) नशीले पदार्थ (Toxic Agents)

(h) माता-पिता की आयु (Age of Parents)

(1) पारिवारिक वातावरण (Home Environment)

 शैक्षिक वातावरण (Educational Environment)

(K) अपरिपक्व जन्म (Pre-Mature Birth)

(1) माँ के संक्रामक रोग (Mother’s Infectious Disease)

मन्दबुद्धिता के स्तर Level of Feeble Mindedness

मुख्य रूप से मन्दबुद्धिता तीन प्रकार की होती हैं-

(a) जड़ बुद्धि (Idiot): मानसिक दुर्बलता की दृष्टि से यह सर्वाधिक दर्जन वाले होते हैं। इनकी I. Q. अधिक से अधिक 25 होती है। इनका मानसिक कि अधिक से अधिक दो वर्ष के बालक की तरह होता है। इनको भोजन कराना पडला वस्त्र पहनाना पड़ता है इत्यादि ।

(b) मूढ़ (Imbecile) : यह ऐसे दुर्बल बुद्धि बालक हैं जिनकी IQ 25 से 50 तक होती है। इन बालकों का मानसिक स्तर 3-7 वर्ष तक के बालक की तरह होता है। इन्हें अक्षर ज्ञान तो कराया जा सकता है परन्तु पढ़ाया-लिखाया नहीं जा सकता है। इन बालकों के संरक्षण की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है।

(c) मूर्ख (Moron) : ये वे बालक हैं जिनकी IQ50 से 70 तक होती है। इनका मानसिक विकास 7 से 10 वर्ष तक के बालकों के स्तर का होता है। इनमें अन्तर्दृष्टि और मौलिकता बहुत कम मात्रा में पायी जाती है। ये व्यक्ति साधारण रोजी-रोटी कमाने का काम सीख जाते हैं और अपना जीवन निर्वाह कर सकते हैं।

मन्दबुद्धि बालकों की समस्याएँ Problems of Mentally Retarded Children

1. परिवार में समायोजन की समस्या : जन्म के बाद जब कोई बालक अपने माता-पिता की आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहता है तो माता-पिता का व्यवहार उस बच्चे के प्रति उपेक्षा व लापरवाहीपूर्ण हो जाता है। वे अपने उस बच्चे को अधिक महत्व देने लगते हैं जो शारीरिक व मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होता है, जबकि मन्दबुद्धि के बालकों को अपने माता-पिता से अधिक सहयोग और प्रेरणा की आवश्यकता होती है।

परिवार समायोजन समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए-

★ उचित शारीरिक देखभाल

★ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार

★ अच्छी आदतों का विकास

2. सामाजिक समायोजन की समस्या : मन्दबुद्धि बालकों का सामाजिक समायोजन बहुत ही निम्न स्तर का होता है, क्योंकि अपनी आयु के बच्चों से कम बुद्धि हान कारण उन्हें बुद्ध, बेवकूफ इत्यादि शब्दों द्वारा चिढ़ाया जाता है। बच्चे इनके साथ खलना पसन्द नहीं करते क्योंकि खेलों में भी ये अधिक त्रुटियाँ करते हैं।

ऐसे बच्चों में सामाजिक समायोजन के लिए निम्नलिखित तथ्य आवश्यक है-

★ समाज द्वारा इन्हें सामाजिक सदस्य के रूप में स्वीकार किया जाये।

इनका उपहासन किया जाये न ही इन पर दया दिखायी जाये अपितु आवश्यकतानुसार सहयोग प्रदान किया जाये।

शिक्षण और प्रशिक्षण योग्य मन्दबुद्धि बालकों के लिए अलग स्कूलों की व्यवस्था की जाये जहाँ उन्हें निःशुल्क शिक्षण व प्रशिक्षण मिले और वे आत्मनिर्भर बन सकें।

समाज द्वारा इन बच्चों की मानसिक योग्यता को ध्यान में रखकर खेलकूद व मनोरंजन के स्थान, पार्क तथा स्कूल की व्यवस्था की जाये।

3. विद्यालय में समायोजन की समस्या : ऐसे बालक जो मन्दबुद्धि तो हैं लेकिन सनी बद्धिलब्धि रखते हैं कि उन्हें पढ़ाया लिखाया जा सकता है। यदि इन बालकों नपढ़ने लिखने की व्यवस्था सामान्य बालकों के साथ की जाती है, तो यह पढ़ाई में पिछड जाते हैं। एक ही कक्षा मे कई बार फेल होते हैं जिससे ये विद्यालय में समायोजन स्थापित नहीं कर पाते हैं। इन बालकों के अन्दर शिक्षण, स्कूल के साथ और स्कूल के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति का विकास होता है।

बालकों की इस समस्या के समाधान के लिए विद्यालयी समायोजन को पहले बच्चे का नसिक स्तर समझना चाहिए और उसी के अनुसार शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।

बौद्धिक स्तर के आधार पर मंद बुद्धि बालक तीन प्रकार के होते हैं

(a) शिक्षा पाने योग्य मंदबुद्धि जो मन्दबुद्धि बालक शिक्षण ग्रहण कर सकते हैं उन्हें सामान्य बालकों के साथ नहीं पढ़ाया जाना चाहिए।

(b) प्रशिक्षण योग्य मंदबुद्धि ऐसे बालक जिनकी बुद्धिलब्धि 70 से कम और 50 से 60 के बीच होती है उन्हें पढ़ना-लिखना नहीं सिखाया जा सकता। ऐसे बालकों को धीरे-धीरे प्रशिक्षित किया जा सकता है।

> इन बालकों को खेल, गीत व कविताओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण जैसे स्वयं की देखभाल करना, भोजन करना, वस्त्र पहनना, नियत स्थान पर मल त्याग करना इत्यादि बातों की जानकारी देनी चाहिए।

(c) अयोग्य मंद बुद्धि

AAMD (American Association on Mental Deficiency) an APA (American Psychiatric Association) ने मानसिक रूप से मंदित बालकों को चार भागों में बाँटा गया है-

(a) साधारण मानसिक मंदता (Mild Mental Retardation) इस श्रेणी में आनेवाले बालकों की बुद्धिलब्धि (Intelligence Quotient)52-67 के बीच होती है। ऐसे बालकों को कुछ शिक्षा दिया जाना संभव है और वयस्क होने पर इनका बौद्धिक स्तर 8 से 11 वर्ष के सामान्य बालक के बौद्धिक स्तर के बराबर होता है।

(b) अल्पबल मानसिक मंदता (Moderate Mental Retardation) : इस श्रेणी में आनेवाले बालक की बुद्धिलब्धि 36 से 51 होती है। ऐसे बालकों को प्रशिक्षण देकर उन्ह साधारण कार्य करने के लायक बनाया जा सकता है। ऐसे बालकों को प्रशिक्षणीय (Trainable) की शैक्षिक श्रेणी (Educational Category) में रखा जाता है। ऐसे बालकों के सीखने की दर धीमी होती है।

शारीरिक रूप से ऐसे बालक बेढंगा (Clumsy) दिखते हैं तथा उनमें शारीरिक अनियमितता देखने को मिलती है। उनका क्रियात्मक समन्वय (Motor Coordination) असंतलित होता है।

गंभीर मानसिक मंदता (Severe Mental Retardation) : इस श्रेणी में और वाले बालक की बुद्धिलब्धि 20 से 35 के बीच होती है। ऐसे बालकों को सदा दसरों निर्भर रहने वाला अर्थात् आश्रित बालक (Dependent Child) कहा जाता है।

मानसिक रूप से मंद बालकों का क्रियात्मक विकास (Motor Development विकास (Speech Development) गंभीर रूप से मंदित होते हैं तथा इनमें: मक दोष (Sensory Defects) एवं क्रियात्मक विकलांगता (Motor handians सामान्य रूप से पाये जाते हैं।

– ऐसे बच्चे अपनी देख रेख एवं सामान्य क्रियाओं के लिए भी दूसरों पर आश्रित रहते हैं।

(d) गहन मानसिक मंदता (Profound Mental Retardation) : इस श्रेणी में आनेवाले बालकों की बुद्धिलब्धि 20 से नीचे होती है। ऐसे बालकों को सम्पूर्ण जीवन तक देख-रेख चाहनेवाला बालक (Life Support Retarded Children) की श्रेणी में रखा जाता है।

 > ऐसे बालकों में गंभीर रूप से शारीरिक अनियमितता पायी जाती है तथा केन्द्रीय स्नायुमंडल (Central Nervous System) के रोग होते हैं। ऐसे बालकों में बहरापन एवं मूकता भी अधिक देखने को मिलती है।

दोषपूर्ण अंग वाले बालक Children with Defective Organs

ऐसे बालक, जिनके शारीरिक दोष उन्हें शारीरिक क्रियाओं में भाग लेने से रोकते। हैं या सीमित रखते हैं, शारीरिक अक्षमता से युक्त बालक कहे जाते हैं। दोषपूर्ण अंगों वाले बालकों का प्रकार निम्नलिखित है-

1. दृष्टिदोष से ग्रसित बालक (Children with Visual Defects) : दृष्टिकोण ऐसा विकार है जिसके कारण बालक अपनी आँखों से कुछ भी नहीं देख सकता है। दृष्टिदोष वाले बालक दो प्रकार के होते हैं

(a) अंधे बालक (Blind Children): अंधे बालक वे हैं जो पूर्ण रूप से अंधे होत हैं और अंधेपन के कारण उनकी सीखने की क्षमता काफी प्रभावित होती है। इन्हे ब्रल (Braille) पद्धति द्वारा ही पढ़ना-लिखना सिखाया जा सकता है। प्रायः पूर्ण अधापन जन्मजात होता है, परन्तु किसी-किसी व्यक्ति में जन्म के बाद भी किसी तरह की बीमारा या दुर्घटना के शिकार होने से पूर्ण अंधापन आ जाता है।

(b) निम्न दृष्टिवाले बालक (Low Vision Children): निम्न दृष्टिवाले बालका समस्या अंधापन वाले बालकों से अधिक गंभीर इसलिए होती है कि इनकी दृष्टि का होने से वे सामान्य पुस्तकों के उन अक्षरों को नहीं पढ़ पाते जिनके आकार छोटे हात तथा शिक्षक इन्हें ब्रेल पद्धति से सीखने-पढ़ने की आदत भी नहीं डालते हैं। अतः इन स्थिति बीचोबीच की होने से गंभीरता अधिक होती है।

अंधे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन (Adjustment and Education of Children): ऐसे बालकों को शिक्षित करने एवं अन्य तरह की समायोजनशीलता क बढ़ाने के लिए निम्नांकित पद्धतियाँ हैं

 दारा 1830 के लगभग किया गया था। इस पद्धति में छात्रों को ब्रेल पस्तक. इत्यादि द्वारा पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। ब्रेल अक्षरों को छात्र स्टाइलस की मदद से लिखते हैं । उभरे हुए विन्दुओं पर छात्र अपनी अंगुली की नोक से (Finger Tips) ब्रेल अक्षरों को पढ़ते हैं।

आजकल ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए कुछ विशेष इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी मित किये गये हैं। बालक इन उपकरणों में ऊनमर एबाकस (Cranmer Abacus) सा स्पीच प्लस कैलकुलेटर (Speech Plus Calculator) का प्रयोग गणित से संबंधित करने के लिए करते हैं। ऑप्टाकोन (Optacon), इसके द्वारा सामान्य अक्षरों को भी कंपनों में बदला जाता है, ऐसे छात्रों को सामान्य पुस्तकों की सामग्री को पढ़ने में काफी मदद करता है। कुर्जविल रीडिंग मशीन (Kurzweil Reading Machine) एक ऐसा कंप्यूटर है जो छपी हुई सामग्री को बोल-बोलकर पढ़कर सुनाता है। इससे भी अंधे बालकों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद मिलती है।

(b) विशेष पाठ्यक्रम (Special Curriculum) ऐसे बालकों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इनके पाठ्यक्रम में सामान्य सामग्री के अलावा कुछ अन्य क्रियात्मक कौशल सामग्री को भी रखने की सिफारिश की है।

(c) विशिष्ट आवासीय स्कूल (Special Residential School) कुछ मनोवैज्ञानिकों ने ऐसे छात्रों को शिक्षा देने के लिए अलग से स्कूल स्थापित करने की सिफारिश की है। । इन स्कूलों में ऐसे छात्रों की जरूरत के अनुकूल सामग्री एवं साधन जुटाने तथा शिक्षकों को भी छात्रों पर विशेष ध्यान देने में मदद मिलेगी।

निम्न दृष्टि के बालकों की शिक्षा एवं समायोजन (Adjustment and Education of Low Vision Children) ऐसे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाते हैं

(a) निम्न दृष्टि साधन (Low Vision Aids) : अधिकतर निम्न दृष्टिवाले छात्रों को दृष्टि-संबंधी सहायता पहुँचानेवाले उपकरण देने पर वे शिक्षा से अधिक लाभान्वित होते हैं। जैसे—चश्मा संस्पर्श लेंस, टेलीस्कोप या दूरबीन ।

(b) कक्षा अनकलन (Classroom Adaptation) : कक्षा सामग्री छात्रों के अनुकूल होना चाहिए, जैसे-श्यामपट्ट, रोशनी (Light), डेस्क इत्यादि ।

(C) सुनकर दोहराने का अभ्यास (Practice of Repeating by Listening) : ऐसे बालकों को सामान्य दृष्टि के बालकों द्वारा पाठ या विषय को बोल-बोलकर दोहराने तथा उसे सुनने का अभ्यास कराना चाहिए।

2. भाषा-दोष से ग्रसित बालक (Children with Speech Defects) : वान राइपर (Van Riper) के अनुसार यदि किसी बालक द्वारा बोले गये शब्द या वाक्यों में निम्नांकित विशषताएँ हों तो बालक को भाषा संबंधी दोष से ग्रसित बालक माना जायेगा

* दूसरे लोगों का ध्यान बालक द्वारा बोले गये शब्द या वाक्य की ओर अनावश्यक रूप से चला जाय।

* यदि दोष या अनियमितता विचारों की अभिव्यक्ति में बाधक हो।

* बालक को सामाजिक रूप से कुसमायोजित होने में उससे मदद मिलती हो।

भाषा दोष से ग्रसित बालकों के प्रकार-

गंगे बालक (Dumb Children): गूंगे बालक वैसे बालक को कहा चाहकर भी अपनी इच्छा को अर्थपूर्ण भाषा के रूप में अभिव्यक्त नहीं कर बालक प्रायः कछ संकेतों के माध्यम से ही अपनी इच्छा की अभिव्यक्ति का उच्चारण-संबंधी दोषवाले बालक (Children with Articulation Dia उच्चारण-संबंधी दोष स्कूल के बालकों में अधिक देखा गया है। इसी बालक प्रायः शब्दों को गलत ढंग से उच्चारण करते हैं। जैसे—’चोटीको दरवाजाको वाजाकहना इत्यादि। Articulation Disorder): है। इस दोष से ग्रसित आवाज संबंधी दोषवाले बालक (Children with Voice Disorder): जब द्वारा बोले गये शब्द या आवाज की गुण में उच्चता या तारत्व की असाम्यता तो इससे भाषा-संबंधी दोषवाले बालक के रूप में पहचान की जाती है। कर्कश आवा में बोलनेवाले बालक एवं नकियाकर या नाक से बोलनेवाले बालकों को इस श्रेणी रखा जाता है।

(d) प्रवाहिता संबंधी दोषवाले बालक (Children Associated with Fluency Disorders): इस श्रेणी में उन बालकों को रखा जाता है जिनकी वाणी की सामान्य प्रवाहिता बाधित हो जाती है। जैसे—हकलाने वाले बालक ।

(e) व्याख्यान संबंधी दोषवाले बालक (Children with Language Disorder): इस श्रेणी में उन बालकों को रखा जाता है जिन्हें खास-खास शब्दों को बोलने में कठिनाई होती है और यदि कोशिश करते हैं तो उनके मुँह से कोई शब्द नहीं निकल पाता यानी वे पूर्णतः अवाक् रह जाते हैं।

3. श्रवण-संबंधी दोष (Children with Hearing Impairments): श्रवण सबधा दोष दो प्रकार के होते हैं—पूर्ण बहरापन (Complete Deafness) तथा आंशिक बहरापन (Partial Deafness)। पूर्ण बहरापन से ग्रसित बालक भाषा प्रवर्धक के प्रयोग के बाद भी कुछ नहीं सुनते तथा दूसरों की भाषा नहीं समझ पाते हैं। आंशिक बहरापन में छात्र प्रवर्धक का प्रयोग करके दूसरों की बोली को समझ लेते हैं या यदि इनसे उच्च स्वर में बोला जाय तो वे उसे सुनकर समझ लेते हैं। श्रवण संबंधी दोष के कई कारण होत हैं जैसे—आनुवंशिकता, मातृत्व रूबेला, प्राथमिक परिपक्व जन्म (Premature Birush मेनिन्जाइटिस (Meningitis) इत्यादि प्रधान हैं।

पूर्णरूपेण बहरे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन

(i) पूर्ण रूप से बहरे बालकों को शिक्षा देने में क्रियात्मक कार्य (Motor Work अधिक महत्व देना चाहिए।

(ii) शिक्षकों को चाहिए कि ऐसे बालकों को शिक्षा देने में शब्दों का प्रयाग कम करें तथा प्रदर्शन (Demonstration) का उपयोग अधिक-से-अधिक कर।

(iii) ऐसे बालकों के लिए अलग से आवासीय विद्यालय की स्थापना की जान आंशिक रूप से बहरे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन

(1) ऐसे बालकों को कक्षा में श्रवण साधन का प्रयोग करने के लिए कहा। स्थापना की जानी चाहिए।

आशिक रूप से बहरे बालकों को स्कूल में दाखिला कराने से पहले कुछ विशिष्ट जिनमें ध्वनि प्रवर्धन (Amplification) एवं माता पिता का प्रशिक्षण इत्यादि मिलित हैं) प्रदान करना जरूरी है।

कछ शिक्षाशास्त्रियों ने ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए संपूर्ण संचार उपागम के बान पर बल डाला है; जैसे—चिह्न भाषा (Sign Language), सांकेतिक भाषा (Code Sneech), आंगुलिक हिज्जे (Finger Spelling) इत्यादि ।

१) ऐसे बालकों को शिक्षा ग्रहण करने में सामाजिक प्रोत्साहन देना चाहिए। दोषपूर्ण अंग वाले बालक के कुछ सामान्य कारण निम्नलिखित हैं

(a) कुछ दोष जन्मजात होते हैं।

(b) दोषपूर्ण वातावरण (Defective Environment)

(c) अधिक बीमारी या गम्भीर बीमारी

(d) सामाजिक-आर्थिक स्तर

(e) प्रायः 6-7 वर्ष की अवस्था में बालकों में ऐसी दुर्घटनाएँ होती हैं।

परीक्षोपयोगी तथ्य

> पिछड़े बालकों से तात्पर्य वैसे बालक से होता है जो शैक्षिक रूप से मंदित  होते हैं।

> बालकों में पिछड़ेपन का मुख्य कारण बौद्धिक क्षमता की कमी, वातावरण का प्रतिकूल प्रभाव, शारीरिक दोष, स्वभाव-संबंधी दोष, कर्त्तव्यत्यागिता इत्यादि है।

> साधारण मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 52-67 के बीच होती है। ऐसे  बालकों के वयस्क होने पर इनका बौद्धिक स्तर 8 से 11 वर्ष के सामान्य बालक के बौद्धिक स्तर के बराबर होता है।

> अल्पबल मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 36 से 51 तक होती है। ऐसे बालकों की सीखने की दर धीमी होती है।

> गंभीर मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 20 से 35 के बीच होती है। ऐसे बालकों को आश्रित बालक कहा जाता है।

> गहन मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 20 से नीचे होती है। – अपराधी बालक वह है जो सामाजिक, आर्थिक, नैतिक या शैक्षणिक नियम का उल्लंघन करता है।

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UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Vividh Prishthbhumi Se Vanchit Balak Study Material

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विविध पृष्ठभूमि से वंचित बालक | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book Chapter 2.2 Study Material in Hindi

बंचित बालक Disadvantaged Children

अलाभान्वित बालक वैसे बालक को कहा जाता है जो सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से अलाभान्वित समुदाय से आते हैं। भारत में अधिकतर दलित एवं आदिवासी जाति के समुदाय से आनेवाले बालकों को अलाभान्वित बालक की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में अनुसूचित जाति (SC) तथा अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय में 95% परिवार ऐसे हैं जो सामाजिक-आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से पिछड़े हुए हैं और ऐसे परिवार के बालकों को अलाभान्वित बालक की संज्ञा दी जाती है। कुछ ऐसी पिछड़ी जातियाँ (backward castes) भी हैं जो सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण से तथा साथ ही साथ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से काफी पीछे हैं। अतः ऐसे समुदाय के बालकों को भी हम अलाभान्वित बालक कहेंगे। वंचित बालकों की विशेषता इस प्रकार है-

★ ऐसे बालक निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के परिवार से आते हैं। अतः गरीबी (Poverty) एवं वंचन (Deprivation) इनकी प्रमुख विशेषता होती है ।

ऐसे बालकों का आत्म-संप्रत्यय (Self-Concept) नकारात्मक (Negative) होता है। फलस्वरूप, वे अपने आपको अन्य बालकों की तुलना में हीन (Inferior), कमजोर एवं बिल्कुल ही साधारण आकांक्षा (Aspiration) रखने वाले होते हैं।

वंचित बालकों में सीखने की अभिप्रेरणा कम होती है तथा इनमें दूरदर्शिता की कमी पायी जाती है। अलाभान्वित बालकों की भाषा लाभान्वित बालकों की भाषा से भिन्न होती है। वंचित बालकों का बौद्धिक निष्पादन (Intellectual Performance) सीमित एवं अपर्याप्त होता है। अलाभान्वन एव वंचन का बालकों पर प्रभाव

अलाभान्वन एवं वंचन का बुरा प्रभाव बालकों के व्यक्तित्व पर पड़ता है। इस प्रभाव को भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित भागों में बाँटा है-

संज्ञानात्मक पैटर्न पर प्रभाव (Impact Upon Cognitive Pattern): संज्ञान एक ऐसा सामान्य पद (Common Term) है जिसके अंतर्गत बालक के चिंतन, प्रत्यक्षण, बुद्धि, संवेदन स्मृति इत्यादि प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। – भारतीय मनोवैज्ञानिक जे० पी० दास, जाचुक एवं टी० पी० पण्डा (J. P. Das Jachuk  and TP Panda) ने अपने अध्ययन में पाया कि दलित परि का स्तर बाह्मण परिवार के बालको के बौद्धिक स्तर से काफी नीर लत परिवार के बालकों का काफी नीचे था। निष्पादन सामान्य बालकों के मार वंचित बालकों का प्रत अपर्त चिन्तन (Abstract मनोवैज्ञानिक एन० चट्टोपाध्याय (N. Chattopadhyay) ने अपने में पाया कि बुद्धि परीक्षण जनजाति के बालकों का निष्पादन सापा निष्पादन की तुलना में काफी कम थी। जे०पी० दास एवं डी० सिन्हा (J. P. Das &D.Sinha) के अनुसार वंचित बा. यक्षणात्मक कौशल (Perceptual Skill) लाभान्वित बालकों के प्रत्यक्षणात्मक की तुलना में बहुत अविकसित था। > हेभिंगहर्स्ट (Havinghurst) के अनुसार, वंचित बालकों में अमूर्त चिन्तन । Reasoning) की क्षमता काफी कम होती है। (b) अभिप्रेरणात्मक पैटर्न पर प्रभाव (Impact Upon Motivational Patterna, वंचित बालकों का अभिप्रेरणात्मक पैटर्न लाभान्वित बालकों के अभिप्रेरणात्मक से सर्वथा भिन्न एवं निम्न होता है। डी. सिन्हा एवं जी. मिश्रा (D. Sinha & G. Mishra) तथा उदय पारीक (Ud Pareek) के अनुसार, अलाभान्वन एवं वंचन से बालकों में उपलब्धि आवश्यकता कम हो जाती है तथा निर्भरता आवश्यकता अधिक हो जाती है। रथ (Rath) के अनुसार अलाभान्वन एवं वंचन का प्रभाव बालकों के आकांक्षा स्तर (Level of Aspiration) पर गलत पड़ता है।

(c) शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव (Impact Upon Academic Achievement) अलाभान्वन एवं वंचन का प्रभाव बालकों के शैक्षिक उपलब्धि पर बुरा पड़ता है। – उषाश्री (Ushashree) के अनुसार, अलाभान्वित बालकों की शैक्षिक उपलब्धि  (Educational Achievement) तथा शैक्षिक समायोजन (Educational Adjustment) लाभान्वित बालकों की तुलना में काफी निम्न थी। वंचित/अलाभान्वित बालकों की शिक्षा Education of Disadvantaged Children > वंचित बालकों की शिक्षा में सुधार के लिए देश एवं विदेश में विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। अमेरिका में ऐसे बालकों के शैक्षिक स्तर में सुधार के लिए एक विशेष कानून बनाया गया है जिसे Elementary and Secondary Education Act, 1967 की संज्ञा दी गयी है। इसके अंतर्गत ऐसे बालकों को शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। – अमेरिका मे बुजिंग (Busing) एवं हेड स्टार्ट प्रोग्राम (Head-Start Programme इत्यादि जैसे विशेष योजना वंचित बालकों की शिक्षा के लिए चलाई गयी है। बुजिंग प्रोग्राम में अलाभान्वित बालकों को लाभान्वित बालकों के साथ बैठाकर ३० उम्मीद से शिक्षा दी जाती है कि इससे अलाभान्वित बालकों में लाभान्वित बालक को देखकर अधिक प्रेरणा (Motivation) एवं अभिरुचि (Interest) जगगा उनका शैक्षिक स्तर ऊँचा उठेगा।

हेड स्टार्ट प्रोग्राम एक तरह की क्षतिपूर्ति शिक्षा का कार्यक्रम है और यह इस उम्मीद के साथ प्रारंभ की गयी है कि इससे अलाभान्वित बालक भी अपने घर पर कुछ वैसे ही कौशलों को सीख पायेंगे जो लाभान्वित बालक अपने घर पर सीख पाते हैं।

भारत में वंचित बालकों के शैक्षिक स्तर को ऊँचा उठाने का काफी प्रयल किया गया है। इसके लिए भारत सरकार ने निःशुल्क शिक्षा योजना, दोपहर भोजन योजना इत्यादि आरंभ किये हैं।

सरकार ने वंचित बालकों के लिए स्कूल तथा कॉलेज में भी कुछ विशेष प्रावधान किया है, जैसे कम अंक प्राप्त करने पर भी उनका अच्छे कॉलेज में दाखिला, कम अंक प्राप्त करने पर भी छात्रवृत्ति देने इत्यादि की व्यवस्था करके भी इनके शैक्षिक स्तर को उठाने का प्रयल किया गया है।

इन सभी उपायों के अलावा अलाभान्वित बालकों की शिक्षा में सुधार के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है—

★ वंचित बालकों में विशेष शिक्षा देने के लिए यह आवश्यक है कि उनके घरेलू वातावरण में सुधार किया जाए।

ऐसे क्षेत्र जहाँ वंचित बालकों की संख्या ज्यादा हो, वहाँ कुछ विशेष शैक्षिक अभियान (Special Educational Campaign) चलाना चाहिए।

वंचित बालकों के शैक्षिक उत्थान के लिए आश्रम की तरह के स्कूल की स्थापना की जानी चाहिए। सरकार को समय-समय पर वंचित बालकों की शिक्षा के लिए चलायी जा रही योजना की सफलता का मूल्यांकन करना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि योजना कितनी सफल है।

वंचित बालकों के शिक्षा स्तर को ऊँचा करने के लिए कुछ शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने व्यवहार परिमार्जन (Behavioural Modifications) की विभिन्न प्रविधियों, प्रत्यक्षणात्मक प्रशिक्षण (Perceptual Training) आकार विभेद (FormDiscrimination) करने की प्रविधियों का विशेष उपयोग करने की सिफारिश की है।

परीक्षोपयोगी तथ्य

अलाभान्वित बालक वैसे बालक को कहा जाता है जो सामाजिक-आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से अलाभान्वित समुदाय से आते हैं। अलाभान्वित या वंचित बालकों की प्रमुख विशेषता गरीबी एवं वंचन है। वंचित बालकों का आत्म-संप्रत्यय नकारात्मक होता है। वंचित बालकों का बौद्धिक निष्पादन सीमित एवं अपर्याप्त होता है।

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