B.Com Business Economics Books Study Material Chapter 2 PDF Download : B.Com Business Economics Chapter 2 The Economics Problem and Functions of Economics System in Hindi Study Material की आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थियो का फिर से स्वागत करते है |
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अध्याय 2
विशिष्ट अर्थशास्त्र एवं व्यापक अर्थशास्त्र (Micro and Macro Economics)
विशिष्ट अर्थशास्त्र से अभिप्राय (Meaning of Micro Economics)
विशिष्ट अर्थशास्त्र में विशिष्ट आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है, जैसे कि विशिष्ट फर्मे विशिष्ट उपभोक्ता, विशिष्ट साधनों की कीमतों का अध्ययन आदि। विशिष्ट अर्थशास्त्र आधुनिक आर्थिक विश्लेषण की वह शाखा है, जिसमें विशेष आर्थिक इकाइयों एवं उनकी पारस्परिक क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं एवं विशेष आर्थिक मात्राओं व उनके निर्धारण का अध्ययन किया जाता है। जैसे इसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि कोई एक उपभोक्ता वस्तुओं को दी हुई कीमतों व आय से किस प्रकार अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है इसी प्रकार एक फर्म कितना उत्पादन करेगी, एक उद्योग में मूल्य का निर्धारण कैसे होगा, तथा उत्पत्ति के साधनों का प्रतिफल किस प्रकार निर्धारित होगा, आदि।
परिभाषाएँ- विशिष्ट अर्थशास्त्र की मुख्य परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं
(1) प्रो. चेम्बरलेन- विशिष्ट मॉडल पूर्णतया व्यक्तिगत व्याख्या पर आधारित रहता है तथा इसका सम्बन्ध “अन्तरा-वैयक्तिक सम्बन्धों से रहता है।”
(2) प्रो. जे. के. मेहता- “व्यक्तिगत इकाइयों से सम्बन्धित होने के कारण विशिष्ट अर्थशास्त्र को क्रूसो की अर्थव्यवस्था के नाम से पुकारा गया है।”
(3) हैण्डरसन क्वाट- “विशिष्ट अर्थशास्त्र व्यक्तियों तथा व्यक्तियों के निश्चित समूहों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है।”
(4) गार्डनर एकेल- “विशिष्ट अर्थशास्त्र फर्मों, उद्योगों एवं उत्पादनों में उत्पादन के विभाजन तथा साधनों के वितरण का अध्ययन करता है, जिसमें आय-वितरण की समस्या का अध्ययन किया जाता है जो कि विशेष सेवाओं व वस्तुओं के मूल्य निर्धारण से सम्बन्धित होता है।”
(5) प्रो. शूवज- “विशिष्ट अर्थशास्त्र का मुख्य यंत्र मूल्य सिद्धान्त होता है।”
(6) बोल्डिंग- “विशिष्ट अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विशिष्ट फर्मों, विशिष्ट परिवारों एवं विशिष्ट मूल्यों, मजदूरी, आय, व्यक्तिगत उद्योगों एवं वस्तु विशेष का अध्ययन किया जाता है।”
अत: उपयुक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि विशिष्ट अर्थशास्त्र का सम्बन्ध सभी इकाइयों से न होकर एक इकाई से होता है। विशिष्ट अर्थशास्त्र में सभी मनुष्यों का अध्ययन न करके विशिष्ट व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।
विलियम फैलेबर का मत है कि “विशिष्ट अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत निर्णय निर्माता इकाई से होता है।”
एडम स्मिथ के समय से विशिष्ट अर्थशास्त्र का आरम्भ होता है जिसे प्रतिष्ठित अर्थशस्त्रियों ने स्पष्ट रूप से ग्रहण किया. जिसमें मार्शल व उसके समर्थक मुख्य थे। वर्तमान समय में विशिष्ट अर्थशास्त्र के अध्ययन को कम महत्व दिया गया है। 18 वीं एवं 19वीं शताब्दी में इसे “मूल्य सिद्धान्त” कहा जाता था। विशिष्ट अर्थशास्त्र को “मूल्य तथा उत्पादन का सिद्धान्त’ तथा “सामान्य अर्थशास्त्र’ भी कहा जाता है। विशिष्ट आर्थिक इकाइयों एवं अर्थव्यवस्था के छोटे भागों को विशिष्ट चर या विशिष्ट
मात्राएँ भी कहा जाता है। इसमें अर्थव्यवस्था की विभिन्न इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, वह कैसे काम करते हैं और किस प्रकार साम्य की ओर पहुँच पाते हैं। अन्य शब्दों में इसमें अर्थव्यवस्था का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है।
विशिष्ट अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Micro Economics)
(i) उत्पादन मूल्य का सिद्धान्त (ii) घटक मूल्य का सिद्धान्त (iii) कल्याण अर्थशास्त्र का सिद्धान्त
विशिष्ट अर्थशास्त्र में सीमान्त विश्लेषण का स्थान महत्वपूर्ण रहता है। विशिष्ट अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उपभोग सम्बन्धी नियम जो सीमान्त विश्लेषण पर आधारित है, आते हैं। उपभोग सम्बन्धी नियमों में उपभोक्ता की बचत, उपयोगिता ह्रास नियम, सम-सीमान्त उपयोगिता आदि को सम्मिलित करते हैं। इसी प्रकार उत्पादन के क्षेत्र में व्यक्तिगत फर्मों व्यक्तिगत उद्योगों का उत्पादन, विनिमय के क्षेत्र में मूल्य निर्धारण, वितरण के क्षेत्र में विभिन्न उत्पत्ति के साधनों के राष्ट्रीय आय का वितरण आदि विशिष्ट अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। विशिष्ट अर्थशास्त्र में निम्न भागों को सम्मिलित किया जाता है।
विशिष्ट अर्थशास्त्र के प्रकार (Types of Micro Economics)
विशिष्ट अर्थशास्त्र के मुख्य भेद निम्न प्रकार से हैं :
- विशिष्ट स्थिर (Micro Statics)
- (ii) तुलनात्मक विशिष्ट स्थिर (Comparative Micro Statics)
- (iii) विशिष्ट गतिशील (Micro Dynamics)
विशिष्ट अर्थशास्त्र के प्रयोग व आवश्यकता (Use and need of Micro Economics)
विशिष्ट अर्थशास्त्र के महत्वपूर्ण प्रयोग उसके क्षेत्र एवं आवश्यकता को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है
(1) सम्पूर्ण विश्लेषण में सहायक- विशिष्ट अर्थशास्त्र व्यक्तिगत आय, व्यय व बचत आदि के स्वभाव व स्त्रोतों पर प्रकाश डालकर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विश्लेषण में सहायक सिद्ध होता है।
(2) मूल्य निर्धारण व परितोषण विधि- विशिष्ट अर्थशास्त्र के द्वारा वस्तु विशेष के मूल्य निर्धारण एवं उत्पति के साधनों के परितोषण की विधि बतायी जाती है।
(3) समस्याओं का हल- विशिष्ट अर्थशास्त्र में विशिष्ट फर्म, विशिष्ट उद्योग व व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, जो कि व्यक्तिगत समस्याओं के हल प्रस्तुत करने में सहायक सिद्ध होता है।
(4) आर्थिक समस्याओं का अध्ययन- विशिष्ट अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था के अंगों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को जानने हेतु यह आवश्यक होता है कि व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाए, जो मिलकर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का निर्माण करती हैं। अत: सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समस्याओं के अध्ययन हेतु विशिष्ट अर्थशास्त्र का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
(5) निर्णय लेने में सहायक- यह व्यक्तिगत इकाइयों जैसे- फर्म, परिवार आदि को अपने-अपने क्षेत्रों में उचित निर्णय लेने में सहायता पहुँचाता है।
(6) कुल उत्पादन की संरचना-विशिष्ट अर्थशास्त्र कुल उत्पादन की संरचना तथा विभिन्न प्रयोगों के साधनों के वितरण का अध्ययन करता है। यह कुल आय के वितरण का अध्ययन करता है।
(7) आर्थिक कल्याण की जाँच- विशिष्ट अर्थशास्त्र का प्रयोग आर्थिक कल्याण की जाँच में किया जाता है, जिसमें व्यक्तियों की वस्तुओं एवं सेवाओं से प्राप्त सन्तुष्टि का अध्ययन विशिष्ट अर्थशास्त्र में किया जाता है।
(8) आर्थिक नीति के प्रयोग- विशिष्ट अर्थशास्त्र का प्रयोग आर्थिक नीति के निर्धारण में किया जाता है। इसमें सरकार की नीतियों का अध्ययन इस दृष्टि से किया जाता है कि उनका प्रभाव व्यक्तिगत इकाइयों के कार्यों पर पड़ता है, उसका अध्ययन किया जाता है। विशिष्ट आर्थिक इकाइयों के सम्बन्ध में सरकार को आर्थिक नीति के निर्माण के विशिष्ट अर्थशास्त्र से सहायता मिलती है।
विशिष्ट अर्थशास्त्र की सीमायें। (Limitations of Micro Economics)
यद्यपि विशिष्ट अर्थशास्त्र का आर्थिक विश्लेषण बहुत उपयोगी व आवश्यक है, परन्तु मुख्य सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) गलत निष्कर्ष- यह आवश्यक नहीं होता है व्यक्तिगत निर्णयों का योग सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर भी लागू होता है। प्राय: पाया गया है कि वैयक्तिक इकाइयों का विशिष्ट व्यवहार उनके सामहिक व्यवहार एवं औसत व्यवहार से सर्वथा भिन्न होता है। उदाहरणार्थ बचत करना एक व्यक्ति की दृष्टि से अच्छा व उपयोगी है, परन्तु यदि देश के सभी व्यक्ति बचत करने लगे तो वह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होगा, क्योंकि इससे उपभोग-वस्तुओं की माँग कम हो जाती है, राष्ट्रीय आय एवं रोजगार भी कम होगा।
(2) सीमित आर्थिक अध्ययन- देश में कुछ ऐसी आर्थिक समस्याएँ होती हैं जिनका अध्ययन विशिष्ट अर्थशास्त्र में नहीं किया जा सकता। राजस्व के क्षेत्र की ऐसी अनेक समस्याएँ होती हैं जिसका अध्ययन विशिष्ट अर्थशास्त्र में सम्भव नहीं है, जैसे कि मौद्रिक नीति, प्रशुतक नीति आदि का निर्धारण।
(3) सही चित्र प्रस्तुत न करना- विशिष्ट अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर ध्यान न देकर उसके छोटे भागों के संचालन व संगठन पर ही ध्यान देता है, जिससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के संचालन का सामूहिक ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता।
(4) अवास्तविक मान्यताएँ- विशिष्ट अर्थशास्त्र अनेक अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है जो वास्तविक जीवन में नहीं पायी जाती हैं जैसे- पूर्ण रोजगार, निजी हित, पूर्ण प्रतियोगिता आदि। यह मान्यताएँ मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में नहीं पायी जाती हैं।
(5) पूर्ण रोजगार वाली अर्थव्यवस्था का अभाव- विशिष्ट विश्लेषण केवल पूर्ण रोजगार वाली अर्थव्यवस्था में ही लागू होता है, जबकि वास्तव में ऐसी अर्थव्यवस्था का होना असम्भव रहता है। कीन्स का मत है “पूर्ण रोजगार की कल्पना करना अपनी कठिनाइयों से मुख मोड़ना है।”
(6) वर्तमान आर्थिक समस्याओं में अनुपयुक्त- वर्तमान आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में विशिष्ट अर्थशास्त्र अनुपयोगी सिद्ध होता है। जैसे- रोजगार एवं प्रशुल्क नीति आदि।
व्यापक अर्थशास्त्र से अभिप्राय (Meaning of Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता सूक्ष्म अर्थशास्त्र की सीमाओं तथा कुछ अन्य बातों के परिणामस्वरूप प्रतीत होती है। ‘व्यापक अर्थशास्त्र’ में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है जैसे- राष्ट्रीय आय, रोजगार, सम्पूर्ण उत्पादन, बचत, कुल विनिमय आदि। इसी प्रकार कुल मांग, कुल पूर्ति, सामान्य मूल्य-स्तर आदि का अध्ययन व्यापक अर्थशास्त्र में ही किया जाता है। इसमें समूचे आर्थिक पद्धति का अध्ययन किया जाता है, किसी एक इकाई या एक पद्धति का नहीं। अत: यह स्पष्ट है कि व्यापक अर्थशास्त्र विशेष मदों का अध्ययन करके सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के योग एवं उनके औसतों का अध्ययन करता है। अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित बड़े योगों को व्यापक मात्राएँ या व्यापक चर कहा जाता है। इसे योग सम्बन्धी अर्थशास्त्र भी कहते हैं। राष्ट्रीय आय का अध्ययन केन्द्रीय स्थान रखने के कारण इसे आय व रोजगार विश्लेषण, या आय सिद्धांत या राष्ट्रीय आय विश्लेषण कहा जाता है। इसे योग सम्बन्धी अर्थशास्त्र भी कहा जाता है।
व्यापक अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ–
व्यापक अर्थशास्त्र की मुख्य परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं–
(1) प्रो. चेम्बरलेन- “व्यापक मण्डल कुल सम्बन्धों की व्याख्या करता है।”
(2) गार्डन एकेल-“व्यापक अर्थशास्त्र आर्थिक समस्याओं का वृहद रूप से विचार करता है। इसका सम्बन्ध आर्थिक जीवन के सम्पूर्ण पहलू से होता है। यह सम्पूर्ण आकार को प्रदर्शित करता है।”
(3) प्रो. बोल्डिंग- “व्यापक अर्थशास्त्र विशेष मदों की अपेक्षा आर्थिक मात्रा के योगों, औसतों की प्रकृति, सम्बन्धों एवं व्यवहार का अध्ययन करता है।”
(4) प्रो. शूल्ज- “व्यापक अर्थशास्त्र का मुख्य उपकरण राष्ट्रीय आय विश्लेषण ही है।”
व्यापक अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक माना जाता है, जिसमें अर्थव्यवस्था के बड़े समूहों, योगों एवं औसतों का अध्ययन किया जाता है। इसमें राष्ट्रीय आय, रोजगार की स्थिति, कुल उत्पादन, मौद्रिक व बैकिंग समस्याएँ, सामान्य मूल्य स्तर, विदेशी विनिमय, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, राजस्व एवं आर्थिक विकास के सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है। व्यापक अर्थशास्त्र को ‘आय एवं रोजगार’ का सिद्धांत कहा गया है। कुछ राष्ट्रीय आय व उससे सम्बन्धित कार्यों व तत्वों का अध्ययन व विश्लेषण करने के कारण इसे ‘आय सिद्धांत’ कहा गया है। आय सिद्धांत को रोजगार सिद्धांत भी कहा गया है, क्योंकि इसमें कुल राष्ट्रीय व उससे सम्बन्धित कार्यों का अध्ययन किया जाता है। आय के निर्धारक तत्व देश के पूर्ण रोजगार को निर्धारण करने में सहायक सिद्ध होते हैं। आय के निर्धारण तत्वों का समस्त रोजगार पर प्रभाव पड़ने के कारण इसे रोजगार सिद्धांत भी कहा जाता है। लार्ड कीन्स ने ही आय व रोजगार सिद्धांत या व्यापक अर्थशास्त्र को आगे बढ़ाया है। इसे ‘कीन्सीथन अर्थशास्त्र’ भी कहा जाता है। व्यापक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में निम्न को सम्मिलित किया जा सकता है
- आय, उत्पादन एवं रोजगार का सिद्धांत, जिसमें उपभोग कार्य का सिद्धान्त एवं विनियोग कार्य के सिद्धांत को सम्मिलित किया जाता है।
- (ii) मूल्यों के सिद्धांत, जिसमें मुद्रा प्रसार, मुद्रा संकुचन एवं मुद्रा पुन: स्फीति के सिद्धांत आदि आते हैं।
व्यापक अर्थशास्त्र के विश्लेषण के प्रकार (Types of Macro-Economics Analysis)
प्रकार
समष्टि स्थैतिक तुलनात्मक समष्टि स्थैतिक समष्टि प्रावैगिक
(1) समष्टि स्थैतिक (Macro-Statics)-इसमें सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन स्थायी स्थिति में किया जाता है परन्तु इसमें यह नहीं बताया जाता कि आर्थिक दशा उस साम्य स्थिति पर किस प्रकार पहुंची है। यह केवल साम्य का अध्ययन है। वर्तमान संसार में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं और विभिन्न यौगिक अपनी क्रिया एवं प्रतिक्रिया द्वारा नवीन सन्तुलन स्थापित करते हैं। इन विभिन्न सन्तुलन स्थितियों का अध्ययन समष्टि स्थैतिक विश्लेषण कहलाता है। इसे निम्न समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
Y=C+1 यहाँ Y = कुल आय, C = कुल उपभोग एवं I = कुल विनियोग समीकरण से स्पष्ट है कि कुल आय सदैव कुल उपभोग एवं कुल विनियोग के बराबर रहती है। परन्तु यह स्थिति किस प्रकार पहुँचती है, यह समीकरण से स्पष्ट नहीं हो पाता। इस समीकरण में समय का विचार नहीं किया गया है। इसमें न तो समय का विवेचन और न ही परिवर्तन की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। इसे निम्न चित्र द्वारा दिखाया जा सकता है
चित्र | से C उपभोग वक्र हैं, जो आय के प्रत्येक स्तर पर उपभोग की मात्रा को बताता है। C+1 वक्र उपभोग एवं विनियोग पर होने वाले व्यय को व्यक्त करता है। 45° कोण पर Y =C+ I या कुल आय = कुल व्यय रेखा के बराबर है। चित्र में OY बिन्दु पर अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की स्थिति बनी रहती है। राष्ट्रीय आय इसी स्तर पर कुल आय एवं कुल व्यय के बराबर होती है।
चित्र x अक्ष पर आप, Y अक्ष पर उपभोग एवं विनियोग को लिया गया है।
(2) तुलनात्मक समष्टि स्थैतिक (Comparative Macro Statics)-अर्थव्यवस्था में सदैव परिवर्तन होने से उसमें कभी भी स्थिरता नहीं पायी जाती। अर्थव्यवस्था में इन परिवर्तनों के कारण ही नवीन सन्तुलन बिन्दु स्थापित होते रहते हैं। तुलनात्मक समष्टि स्थैतिक में इन विभिन्न सन्तुलन बिन्दुओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। अत: इस प्रणाली में सन्तुलन की दो पृथक स्थितियों की एक-दूसरे से तुलना की जाती है। इसमें उस परिवर्तन का अध्ययन नहीं किया जाता जिसमें एक सन्तुलन स्थिति से हटकर दूसरी
C+1वक्र प्रारम्भिक कुल व्यय वक्र है। व्यय वक्र उपभोग पर किया गया व्यय एवं कुल विनियोग का योग होता है। जब विनियोग में वृद्धि हो जाती है तो कुल व्यय वक्र C+ | बढ़कर C+1+AI हो जाता है तथा सन्तुलन आय-व्यय बिन्दु A से हटकर A’ हो जाता है समष्टि सन्तुलन आय में वृद्धि किस प्रकार होती है इसकी प्रक्रिया को ABCDE रेखा द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
व्यापक अर्थशास्त्र का प्रयोग एवं इसकी आवश्यकता (Use and Need of Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता सूक्ष्म अर्थशास्त्र की सीमाओं तथा कुछ अन्य बातों के परिणामस्वरूप प्रतीत होती है। सरकारी नीतियों के पालन करने एवं सफलतापूर्वक संचालन करने हेतु व्यापक अर्थशास्त्र का अध्ययन करना आवश्यक माना जाता है। व्यापक अर्थशास्त्र के प्रयोग एवं उसकी आवश्यकता को निम्न प्रकार रखा जा सकता है
(1) आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक- सरकार की आर्थिक नीतियों का सम्बन्ध समूहों व योगों से रहता है तथा व्यक्तियों से नहीं होता है। समय-समय पर सरकार द्वारा वैयक्तिक इकाइयों पर भी ध्यान दिया जाता है, परन्तु मुख्य कार्य कल रोजगार, कुल आय, मूल्य स्तर, व्यापार में सामान्य स्तर आदि के नियंत्रण में होता है। विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित समस्याओं का व्यापक आर्थिक विश्लेषण की सहायता से सरकार आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायता प्रदान करती है।
(2) जटिल अर्थव्यवस्था का सामूहिक संचालन करना- वर्तमान अर्थव्यवस्था अत्यन्त जटिल होने के कारण आर्थिक तत्व एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। व्यापक अर्थशास्त्र में समस्त अर्थव्यवस्था के आर्थिक संगठन एवं संचालन का सही ज्ञान प्राप्त किया जाता है, जबकि विशिष्ट अर्थशास्त्र में केवल वैयक्तिक इकाइयों का ही ज्ञान कराया जाता है।
(3) विरोधाभासों के कारण भी आवश्यक- व्यापक अर्थशास्त्रीय विरोधाभास से आशय उन धारणाओं से है जो किसी एक व्यक्ति के लिए तो सही सिद्ध हो सकती हैं, लेकिन उनका प्रयोग सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू करने से यह व्यर्थ सिद्ध होगा। उदाहरणार्थ बचत एक व्यक्ति की दृष्टि से लाभदायक है, परन्तु यदि सभी व्यक्ति बचत करने लगे तो सम्पूर्ण देश के लिए हानिकारक होगा। इन विरोधाभासों के कारण भी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के पृथक अध्ययन की आवश्यकता रहती है।
(4) व्यापक क्षेत्र- व्यापक अर्थशास्त्र में अनेक व्यापक विषयों का अध्ययन किया जाता है जैसे कि राष्ट्रीय आय, रोजगार के सिद्धांत, सामान्य मूल्य स्तर, मुद्रा एवं वित्त आर्थिक विकास के सिद्धान्त, विदेशी विनिमय आदि। इन समस्त विषयों की जानकारी, में व्यापक अर्थशास्त्र की अवश्यकता रहती है, जिसमें सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था एवं बड़े योगों व औसतों का अध्ययन किया जाता है।
(5) उपभोक्ता वस्तुओं व पूँजीगत वस्तुओं के साधनों का वितरण- व्यापक अर्थशास्त्र एक ओर उपभोक्ता वस्तुओं तथा दूसरी और पूँजीगत वस्तुओं के मध्य साधनों के विवरण से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन करता है। व्यापक अर्थशास्त्र में साधनों के वितरण का अध्ययन दो बड़े भागों में किया जाता है और यह दो बड़े भाग ही मिलकर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का निर्माण करते हैं।
(6) विशिष्ट अर्थशास्त्र में आवश्यक- विशिष्ट अर्थशास्त्र के विकास के लिए भी व्यापक अर्थशास्त्र आवश्यक माना गया। है। विशिष्ट अर्थशास्त्र विभिन्न नियमों व सिद्धातों का प्रतिपादन करता है, परन्तु उसे ऐसा करने में व्यापक अर्थशास्त्र की सहायता लेनी होती है। जैसे एक फर्म के सिद्धांत का निर्माण अनेक फर्मों के व्यवहार को सामूहिक रूप से अध्ययन करके ही किया गया। इसी प्रकार व्यक्तियों के समूहों के व्यवहार का अध्ययन करके ही उपयोगिता द्वारा नियम का निर्माण किया गया।
व्यापक अर्थशास्त्र के दोष एवं सीमायें (Defects and Limitation of Macro Economics)
यद्यपि व्यापक आर्थिक विश्लेषण अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर चुका है, परन्तु इसकी कुछ सीमायें एवं खतरे हैं, जिन्हें निम्न प्रकार से रखा जा सकता है
जाता है। तो परिणाम वास्तविकता से दूर ही रहते हैं इसी दोष के कारण बैल्डिंग का मत है कि समूह को बनाने वाली मदें परस्पर सम्बन्धित, रोचक एवं महत्वपूर्ण होनी चाहिए।
उदाहरणार्थ-
(अ) 6 आम + 8 आम = 14 आमः यह समूह कुछ महत्व रखता है और रोचक है।
(ब) 6 आम + 7 सन्तरे = 13 फल: यह समूह भी महत्व रखता है और रोचक भी है।
(स) 6 आम +7 मकान = ०: समूह निरर्थक व महत्वहीन है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि व्यापक अर्थशास्त्र की कठिनाइयाँ या तो वैयक्तिक इकाइयों के योग के आधार पर निष्कर्ष निकालने के कारण हैं या सीधे ही योग के अध्ययन करने से है, क्योंकि ऐसा करने में ही योग के विभिन्न अंगों तथा उनके पारस्पारिक सम्बन्धों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
विरोधाभास (Paradox)
समाज में कुछ ऐसी अवस्थाएँ होती हैं जो एक व्यक्ति पर लागू होने पर, सत्य सिद्ध होती हैं, परन्तु जब उन्हें समूचे समाज एवं समूची आर्थिक व्यवस्था पर लागू किया जाये तो ये बातें असत्य सिद्ध होती हैं। इनमें से महत्वपूर्ण विरोधाभास निम्न प्रकार हैं
(1) रोजगार और मजदूरी पर- पीगू जैसे प्रतिपादित अर्थशस्त्रियों का मत था कि मजदूरी में कटौती करके बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है तथा रोजगार के स्तर में वृद्धि सम्भव हो सकती है। इस सम्बन्ध में गणितीय सूत्र दिया गया –
N_OY
R.
यहाँ पर N= राष्ट्रीय श्रमिकों की संख्या
OY = राष्ट्रीय आय का वह भाग जो मजदूरी के रूप में दिया जाता है।
R = मजदूरी की दर
Y = राष्ट्रीय आय मजदूरी की दरों में कमी करके श्रमिकों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है। मजदूरी की दर नीची करने पर सभी श्रमिकों को रोजगार प्राप्त हो सकेगा।
परन्तु इसके विरोध में कहा जाता है कि सभी मजदूरों की मजदूरी दर कम करने से क्रय घटकर माँग गिर जाती है, जिससे उत्पादन में कमी होकर रोजगार घटेगा, बढ़ेगा नहीं।
(2) आय व व्यय का अन्तर- किसी व्यक्ति विशेष की आय उसके व्यय से कम या अधिक हो सकती है, परन्तु समूचे समाज की आय उसके व्यय से कम या अधिक नहीं हो सकती।
(3) आयात व निर्यात- एक देश का निर्यात उसके आयात से कम या अधिक हो सकता है, जबकि सभी देशों का सामूहिक आयात उसके निर्यात के सदैव बराबर रहता है।
(4) संचय द्वारा वृद्धि- एक व्यक्ति अपनी बचत में वृद्धि करके मुद्रा के परिणाम में वृद्धि कर सकता है, परन्तु एक राष्ट्र ऐसा नहीं कर सकता। सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि करने हेतु समाज में नवीन मुद्रा छापी जाएँगी। इससे देश में मुद्रा स्फीति फैलाने का भय बना रहता है। तथा वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होने का भय बना रहता है।
(5) व्यक्ति और समाज की बचतें- समाज में एक व्यक्ति द्वारा बचत करना अच्छा माना जाता है, परन्तु राष्ट्र के सभी व्यक्तियों द्वारा बचत करना एक अभिशाप होगा, क्योंकि बचत करने से उपभोग में कमी आकार उत्पादन, रोजगार एवं आय में निरन्तर कमी आयेगी और समाज में गरीबी आकार बचत सम्भव ही नहीं हो सकेगी। इस तथ्य को निम्न तरीके द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
एक विशेष अवधि में बचत SS से बढ़कर SS’ हो जाने पर कुल आय X से घटकर A रह जाती है और बचत की मात्रा Cx से घटकर BA हो जाती है। अत: स्पष्ट है कि अधिक बचत करने पर आय एवं बचत में कमी हो जाती है।
(6) अन्य विरोधाभास-प्रो. सेम्युल्सन का मत है कि कुछ ऐसे तथ्य हैं जो स्वयं तो सब होते हैं, परन्तु वह बाहर से विरोधी होते हैं जैसे कि
(i) व्यवहार- एक व्यक्ति के लिए जो व्यवहार बुद्धिमत्तापूर्ण होता है वह एक राष्ट्र के लिए मूर्खतापूर्ण हो सकता है।
(ii) ऊँची कीमतों में प्रभाव- ऊँचा मूल्य लेने से उद्योग की सभी फमें लाभान्वित होती हैं, परन्तु प्रत्येक वस्तु के मूल्य के समान अनुपात में बढ़ जाने पर किसी को भी लाभ प्राप्त नहीं हो पाता यदि जापान द्वारा माल के आयात करने पर प्रशुल्क दर घटा दी जाए, तो उसके आयातक राष्ट्र को लाभ होगा चाहे अन्य देश ऐसा करने से इन्कार ही कर दें।
(iii) आय का सम्बन्ध- यदि एक कृषक की पैदावार बढ़ती है तो उससे उसकी आमदनी बढ़ जाती है, परन्तु सभी कृषकों की पैदावार में वृद्धि होने से आमदनी घट जाती है। यदि देश के सभी कृषक कठोर परिश्रम करके, अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर अच्छी फसल प्राप्त करें तो उससे उत्पादन बढ़ेगा, जिससे मूल्य कम होकर कृषकों की आय पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
(iv) रोजगार पर प्रभाव‘– एक व्यक्ति कम मजूदरी स्वीकार करके या चतुराई के आधार पर अपनी बेरोजगारी की समस्या का समाधान कर सकता है। परन्तु इस ढंग से समाज में रहने वाले सभी व्यक्तियों की बेरोजगारी को समाप्त नहीं किया जा सकता। प्रो. कीन्स का मत है कि विशिष्ट फर्म या कारखाने में मजदूरी में कटौती करके रोजगार में वृद्धि की जा सकती है, परन्तु सामान्य मजदूरी में कटौती करके रोजगार में वृद्धि नहीं की जा सकती।
(v) मन्दीकाल- मन्दीकाल में व्यक्तियों द्वारा अधिक बचत करने से समूचे समाज की कुल बचत कम हो जाती है। यदि कुछ ही व्यक्ति बचत करें तो कोई प्रभाव नहीं होगा, परन्तु जब पूरा समाज ही बचत करने लगे तो पूरे देश की बचत कम हो जाती है।
उपर्युक्त ढंग के अर्थशास्त्र में अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनसे यह बात सिद्ध हो जाती है कि जो बात एक व्यक्ति के लिए सही है वह पूरे समाज के लिए सही नहीं होगी। इससे स्पष्ट है कि समाज में व्यापक अर्थशास्त्र का अधिक महत्व है।
विशिष्ट तथा व्यापक अर्थशास्त्र की पारस्पारिक निर्भरता (Mutual Dependence of Micro and Macro Economics)
विशिष्ट आर्थिक विश्लेषण एवं व्यापक आर्थिक विश्लेषण दोनों ही एक-दूसरे से धनिष्ठ सम्बन्ध रखते हैं। यह दोनों विश्लेषण एक-दूसरे के प्रतियोगी न होकर पूरक हैं। दोनों पद्धतियों की अपनी विशेषताएँ व सीमाएँ हैं। परन्तु एक प्रणाली की सीमाएँ दूसरी प्रणाली द्वारा स्वत: ही दूर हो जाती हैं। इस प्रकार दोनों ही रीतियाँ एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं। विशिष्ट अर्थशात्र का अध्ययन व्यापक अर्थशास्त्र पर निर्भर करता है दोनों पद्धतियों की पारस्पारिक निर्भरता को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) विशिष्ट अर्थशास्त्र को व्यापक अर्थशास्त्र का सहारा आवश्यक है (Micro Economic Analysis needs the Support of Macro Economic Analysis)
अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्ट अर्थशास्त्र को व्यापक अर्थशास्त्र की आवश्यकता रहती है। इसे निम्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है–
(1) एक फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु का मूल्य उसी फर्म के उत्पादित लागत व्यय से निर्धारित नहीं होता, वरन् इसके लिए दूसरी अन्य फर्मों के मूल्यों को भी ध्यान में रखा जाता है।
(2) प्रत्येक फर्म अपनी उत्पादन की मात्रा का निर्धारण आयु, समाज की माँग, रोजगार आदि को देखकर करती है। प्रत्येक फर्म में मूल्य व मजदूरी आदि का निर्धारण स्वतन्त्र रूप से न होकर अन्य फर्मों द्वारा निर्धारित होता है। इससे स्पष्ट है कि आर्थिक विश्लेषण में व्यापक आर्थिक विश्लेषण की आवश्यकता बनी रहती है।
(3) एक फर्म के श्रमिकों को कितनी मजदूरी प्राप्त होनी चाहिए, इसका निर्धारण विशिष्ट अर्थशास्त्र से सम्बन्धित है। परन्तु इसका निर्धारण विशिष्ट आर्थिक विश्लेषण द्वारा सम्भव नहीं है, क्योंकि एक फर्म में दी जाने वाली मजदूरी का ही प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त केवल स्थानीय मजदूरों की दरों का ही प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि देश के अन्य भागों में उसी उद्योग में संलग्न अन्य फर्मों में दी जाने वाली मजदूरी तथा देश में प्रचलित मजदूरी की दरों का भी इस फर्म की मजदूरी पर प्रभाव पड़ता है।
(4) कोई फर्म कितना माल बेचेगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि समाज में कुल क्रय-शक्ति कितनी है तथा उस फर्म की उत्पादन लागत का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि विशिष्ट अर्थशास्त्र की विभिन्न व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान व्यापक अर्थशास्त्र पर ही निर्भर करता है।
(II) व्यापक अर्थशास्त्र को विशिष्ट अर्थशास्त्र का सहारा आवश्यक है (Macro Economic Analysis needs the Support of Micro Economic Analysis)
व्यापक अर्थशास्त्र के अध्ययन में विशिष्ट अर्थशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता रहती है, इस बात की निम्न उदाहरणों द्वारा पुष्टि की जा सकती है
(1) व्यापक अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण अर्थशास्त्र का अध्ययन किया जाता है। व्यक्तियों से मिलकर समाज बनता है और फर्मों से मिलकर उद्योग बनता है और अनेक उद्योगों से मिलकर अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जाता है। अत: सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को समझने हतु फर्मा, व्यक्तियों, परिवारों एवं उद्योगों का ज्ञान प्राप्त होना आवश्यक होता है। यदि देश की राष्ट्रीय आय को ज्ञात करना हो तो उसक लिए देश के सभी व्यक्तियों की आयों की गणना करनी होगी, जिसके योग से राष्ट्रीय आय का निर्माण होगा।
(2) अर्थव्यवस्था की सामान्य प्रवृत्ति को समझने हेतु उसके सिद्धांतों का अध्ययन करना होगा, जो कि व्यक्तियों, परिवारों एवं फमा के व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। अत: व्यापक अर्थशास्त्र के अध्ययन करने हेतु विशिष्ट अर्थशास्त्र का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है।
(3) यदि लोगों की आय बढ़ जाए और बढ़ी आय को लकड़ी फर्नीचर की अपेक्षा स्टील फर्नीचर पर व्यय किया जाए तो इससे स्टील फर्नीचर उद्योग का अधिक विकास होगा।
(4) यदि वस्तुओं की मांग बढ़ती हो, परन्तु जिन फर्मों का उत्पादन लागत वृद्धि नियम में हो रहा हो, उनके लिए यह सम्भव नहीं होगा कि मूल्य बढ़ने पर वे उत्पादन को बढ़ा सकें।
अतः स्पष्ट है कि व्यापक आर्थिक विश्लेषण का कार्य विशिष्ट आर्थिक विश्लेषण के अभाव में अपूर्ण ही रहता है। व्यक्तिगत अध्ययन से ही पूर्ण अध्ययन किया जा सकता है। सेम्युलसन का मत है कि यह कहना कठिन है कि विशिष्ट अर्थशास्त्र महत्वहीन है, बड़ा चित्र स्वयं छोटे-छोटे भागों से मिलकर ही बनता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
विशिष्ट एवं व्यापक अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं और एक-दूसरे के बिना इनका अध्ययन करना सम्भव नहीं है। विशिष्ट तथा व्यापक अर्थशास्त्र के तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष के रूप में निम्न तथ्य रखे जा सकते हैं
(1) ‘विशिष्ट अर्थशास्त्र’ तथा ‘व्यापक अर्थशास्त्र’ आर्थिक विश्लेषण की दो पृथक-पृथक विधियाँ हैं। परन्तु यह दोनों ही विधियाँ स्वतन्त्र न होकर एक-दूसरे पर पारस्परिक रूप से निर्भर हैं।
राष्ट्रीय आय ( व्यापक आर्थिक विश्लेषण) में परिवर्तन एक वस्तु के बाजार को प्रभावित कर सकता है, परन्तु एक उद्योग (जो विशिष्ट आर्थिक विश्लेषण है) में विकास या संकुचन सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को शिथिल या विस्तृत कर सकती है।
(2) दोनों ही रीतियाँ एक-दूसरे की पूरक हैं। देश की अर्थव्यवस्था के कार्यकरण को सही ढंग से समझने हेतु दोनों पद्धतियों के अध्ययन की आवश्यकता रहती है।
प्रो. सेम्युलसन का मत है कि “वास्तव में विशिष्ट तथा व्यापक अर्थशास्त्र में कोई विरोध नहीं है। दोनों ही अति-आवश्यक हैं। आप अर्द्ध-शिक्षित रहते हैं, यदि आप एक को समझते हैं तथा दूसरे से अनभिज्ञ रहते हैं।”
परीक्षोपयोगी प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
1. विशिष्ट अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है? What is meant by micro economics?
2. विशिष्ट अर्थशास्त्र का क्षेत्र स्पष्ट कीजिये। Explain the scope of micro economics.
3. व्यापक अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है? What is meant by macro economics?
4. व्यापक अर्थशास्त्र की सीमायें क्या हैं? What are the limitations of macro economics?
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
1. विशिष्ट अर्थशास्त्र से क्या आशय है? इसकी आवश्यकता एवं हानियाँ बताइए। What is meant by micro economics? Mention its uses and demerits.
2. व्यापक अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए। व्यापक अर्थशास्त्र के प्रयोग एवं हानियाँ बताइए। Define macro economies. Give the uses and demerits of macro Economics.
३ वास्तव में विशिष्ट एवं व्यापक अर्थशास्त्र में कोई विरोध नहीं है। दोनों अत्यन्त आवश्यक हैं। “यदि आप एक का समझते हैं और दूसरे से अनभिज्ञ रहते हैं तो केवल अर्धशिक्षित हैं।”- सेग्युलसन। इस कथन की विवेचना कीजिये। “There is really no opposition between micro and macro economics. Both are absolutely vital and you are only half educaed, if you understand the one while being ignarnat of the other.”’ Samuelson discuss the above statement.
4. “अर्थशास्त्र की आर्थिक विशिष्ट विश्लेषण तथा आर्थिक समष्टिभाव दोनों प्रकार की समस्याओं का अध्ययन करना होता है। आर्थिक व्यष्टि भाव एवं आर्थिक समष्टि भाव रीतियाँ दोनों एक-दूसरे की विकल्प न होकर पूरक हैं।” इस कथन की विवेचना कीजिये। “The economist has to study micro as well as macro economics problems. The two studies are complementary to each other rather than being the alternate methods of study.” Discus the above statement.
5. विशिष्ट अर्थशास्त्र एवं व्यापक अर्थशास्त्र में अन्तर बताइये। विशिष्ट अर्थशास्त्र के सिद्धांत व्यापक अर्थशास्त्र पर कहाँ तक लागू होते हैं। Differentiate between micro and macro economics. How for the principles of micro economics aplly to macro economics.
6. व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र का भेद स्पष्ट स्पष्ट कीजिये तथा इनकी महत्ता समझाइये। Differentiate between micro and macro economics and explain its importance.
7. व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र के अर्थ एवं उपयोगों में क्या अन्तर है? समझाइये। What is the difference of meaning and uses of micro and macro economics? Explain.
8. व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों में क्या सम्बन्ध है? Differentiate between micro and macro economics. What is the relation between the two?
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